सोरायसिस त्वचा की एक बीमारी है, जिसमें लाल रंग के पपड़ीदार चकत्ते त्वचा पर बनने लगते हैं। यह रोग ज़्यादातर जवान या बड़े उम्र के लोगों में पाया जाता है। पर कभी कभार बचपन में भी यह समस्या देखी जा सकती है। महिलाएं और पुरुष समान रूप से प्रभावित होते हैं। सोरायसिस किसी तरह का संक्रमण नहीं है, और न ही यह संक्रामक है। यानी यह छूने या हाथ मिलाने से नहीं फैलता।
भारते में क्या स्थिति है?
भारत में सोरायसिस की स्थिति 0.44-2.8 प्रतिशत है। हालांकि अभी भी इस रोग के लिए समग्र आंकड़े जुटाए नहीं जा सके हैं। अलग-अलग अस्पतालों में आने वाले मरीजों के आधार पर भारत के अलग-अलग शहरों में इसका डाटा दर्ज किया जाता है। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन का भी मानना है कि इस रोग के उपचार के लिए जिस तरह के शोध और तकनीक की आवश्यकता है, उसमें अभी हम बहुत पीछे हैं। त्वचा पर होने वाली यह समस्या पीड़ित व्यक्ति के पूरे जीवन को प्रभावित करने लगती है। यह रोग छूने या हाथ मिलाने से नहीं फैलता, इसके बावजूद पीड़ित को कई तरह के स्टिग्मा का सामना करना पड़ता है। यह किसी व्यक्ति के भावनात्मक, मानसिक स्वास्थ्य और रिश्तों को भी प्रभावित करने लगता है। जबकि कुछ लोग समय के साथ इसके प्रति इतने सहज हो जाते हैं कि उपचार को भी बीच में ही छोड़ देते हैं। सोरायसिस के संदर्भ में यह एक और समस्या है।
डॉक्टर और वैज्ञानिक अब तक सोरायसिस के असल कारण तक नहीं पहुंच पाए हैं। फिर भी कुछ सामान्य कारण हैं जो सोरायसिस के लक्षणों को ट्रिगर कर सकते हैं। अकसर कहा जाता है कि यदि आपके परिवार में किसी को सोरायसिस की बीमारी है, तो आपको सोरायसिस होने की संभावना बढ़ जाती है। पर वास्तव में इसके बिना भी किसी की त्वचा पर सोरायसिस विकसित हो सकता है।
सोरायसिस होने के क्या कारण हैं?
सोरायसिस के कुछ ट्रिगर फैक्टर होते हैं जो आपके सोरायसिस को और खराब कर सकते हैं। सामान्य सोरायसिस ट्रिगर्स में शामिल हैं:
तनाव
मानसिक तनाव सबसे आम सोरायसिस ट्रिगर्स में से एक है। साथ ही, एक सोरायसिस फ्लेयर तनाव पैदा कर सकता है। विश्राम यानी रिलैक्सिंग तकनीक और तनाव प्रबंधन तनाव को सोरायसिस को प्रभावित करने से रोकने में मदद कर सकता है।
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त्वचा पर चोट लगना
सोरायसिस त्वचा के उन क्षेत्रों में दिखाई दे सकता है जो घायल या क्षतिग्रस्त हो गए हैं। खरोंच, सनबर्न, कीड़ो के काटने और टीकाकरण सभी सोरायसिस को बढ़ा सकते हैं।
इन्फेक्शन
कोई भी इन्फेक्शन सोरायसिस बढ़ा सकता है। आप कान के इन्फेक्शन, ब्रोंकाइटिस, टॉन्सिलिटिस या श्वसन संक्रमण के बाद सोरायसिस भड़कने का अनुभव कर सकते हैं।
मौसम
ठंडा मौसम अक्सर सोरायसिस को बढ़ा सकता है। प्राकृतिक धूप और उच्च आर्द्रता के कारण गर्म मौसम अक्सर सोरायसिस में सुधार कर सकता है।
स्मोकिंग
स्मोकिंग एक बहुत आम ट्रिगर है सोरायसिस का। सोरायसिस के मरिज़ो को हम अक्सर सलाह देते हैं की स्मोकिंग को छोड़ दे।
अन्य संभावित ट्रिगर
हालांकि ऐसा बहुत कम होता है, पर सोरायसिस से पीड़ित कुछ लोगों को संदेह है कि एलर्जी, कुछ खाद्य पदार्थ, शराब या पर्यावरणीय कारक उनके सोरायसिस को ट्रिगर करते हैं। अपने लक्षणों और ट्रिगर्स का रिकॉर्ड रखने से आपको अपने फ्लेयर्स का अनुमान लगाने और उनका इलाज करने में मदद मिल सकती है।
सोरायसिस के लक्षण
- जोड़ों का दर्द, सूजन या अकड़न
- त्वचा के ऊपर लाल रंग के पापड़ीदार उभरे हुए चक्कते
- नाखूनों में असामान्यताएं, जैसे कि गड्ढेदार, बदरंग, या टेढ़े-मेढ़े नाखून।
- खोपड़ी, जननांगों, कानों के पीछे, हथेलियों या तलवों पर या फिर त्वचा में कही भी हो सकते हैं। इनमें खुजली होती है
सोरायसिस का पता कैसे करें
सोरायसिस का पता त्वचा परीक्षण के बाद ही किया जा सकता है। इसके लिए यह जरूरी है कि व्यक्ति उपरोक्त लक्षण महसूस होने पर त्वचा विशेषज्ञ से संपर्क करे। त्वचा रोग विशेषज्ञ त्वचा का परीक्षण कर रोग की गंभीरता की जांच करते हैं। उसी के आधार पर उपचार की शुरुआत होती है।
सोरायसिस का निदान मुख्य रूप से क्लीनिकल प्रक्रिया है। कुछ क्लीनिकल फीचर्स के आधार पर, आपके त्वचा रोग विशेषज्ञ (डर्मेटोलॉजिस्ट) इसका सही-सही निदान करते हैं। ज्यादातर मामलों में मरीज़ की त्वचा पर लाल या लाल-भूरी रंगत के रैशेज़ जिन पर गोलाकार, अंडाकार या कई बार अनियमित आकार के सिल्वर-व्हाइट रंग के चकत्ते भी उभरते हैं जिनका साइज़ कई बार सिक्के के बराबर होता है और कई बार ये पूरी पिंडली या जांघ को ढक लेते हैं।
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त्वचा पर बने ये घाव काफी तकलीफदेह होते हैं और अक्सर इनमें खुजलाहट भी होती है। कई बार इनमें दरारें आ जाती हैं या ये संक्रमित भी हो जाते हैं, तब ये काफी पीड़ादायक हो जाते हैं। ये रैशेज़ शरीर में कहीं पर भी उभर सकते हैं, ज्यादातर ये खोपड़ी, हथेलियों, एड़ियों, कुहनियों और घुटनों पर दिखायी देते हैं। इनके अलावा, ये पीठ, छाती और बाजुओं या पैरों पर भी हो सकते हैं, लेकिन चेहरे पर काफी कम देखे जाते हैं।
बहुत बार तो ऐसा भी हुआ है कि सोरायसिस के कारण नाखूनों तक पर असर पड़ता है और वे काफी सख्त तथा बैरंग हो दिखते हैं। कुछ मामूली मामलों में सोरायसिस का असर जोड़ों पर भी देखा गया है और इनकी वजह से जोड़ों में दर्द, खासतौर से उंगलियों के जोड़ों में, देखा गया है।
डर्मेटोलॉजिस्ट कई बार सोरायसिस के निदान के बाद रोग की पुष्टि करने के लिए कुछ क्लीनिकल टैस्ट भी करवाते हैं, वे डर्मेटोस्कोप जैसे उपकरणों का भी इस्तेमाल करते हैं लेकिन स्किन बायप्सी काफी कम इस्तेमाल की जाने वाली प्रक्रिया है जो आमतौर पर तब की जाती है जबकि सोरायसिस के लक्षण काफी असामान्य दिखायी दें।
सोरायसिस का उपचार क्या है?
जो लोग सोरायसिस से प्रभावित हैं वो ठीक ही सकते हैं और यदि कुछ बातों का ध्यान दें तो सोरायसिस दोबारा होने की संभावना कम होती है। उपचार रोग की गंभीरता को देख कर शुरू किया जाता है। सोरायसिस की गंभीरता इस बात से निर्धारित होती है कि शरीर की कितनी सतह प्रभावित है और यह किसी व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता को कितना प्रभावित करती है।
सोरायसिस को जड़ से नहीं हटाया जा सकता, लेकिन इसके लिए कई उपचार उपलब्ध हैं। ये ट्रीटमेंट त्वचा को नॉर्मल कर देते हैं और परेशान करने वाले लक्षणों से छुटकारा दिला सकते हैं। सुधार को बनाए रखने के लिए दवा के निरंतर उपयोग की आवश्यकता भी पड़ सकती है।
इसके इलाज के लिए बहुत से उपचार उपलब्ध हैं जैसे कि त्वचा पर लगाई जाने वाली दवाएं/ मलहम। सर्वोत्तम परिणामों के लिए, रोगियों को निर्देशानुसार उपचार का उपयोग करना चाहिए। सोरायसिस के इलाज के लिए कुछ खाने की दवाइयां भी उपलब्ध हैं, जो डर्मेटोलॉजिस्ट देखकर शुरू करते हैं। यदि उन दवाओं की ज़रूरत पड़ती है। कुछ स्पेशल टाइप के इलाज जैसे फोटो-थेरेपी जिसमें रोशनी की किरणों से सोरायसिस को ठीक किया जाता है, भी आजमाए जा सकते हैं। किसी भी तरह का उपचार केवल विशेषज्ञ की सलाह पर ही शुरू करें।