मौत के बाद होने वाले पोस्टमॉर्टम की प्रक्रिया ही ऐसी है कि इसके नाम से ही लोग घबरा जाते हैं. इसमें डेड बॉडी की चीरफाड़ की जाती है और शरीर के अंदर के अंगों को निकाला जाता है. मुर्दे के सीने को काट के उसका हार्ट, लिवर, किडनी और अन्य बॉडी पार्ट्स निकाले जाते हैं और फिर डॉक्टरों की टीम इनकी जांच कर मौत की वजह का पता लगाती है. इसके बाद अंगों को वापस उसी में लगाकर सिल दिया जाता है. अक्सर संदिग्ध मौतों में पुलिस की मौजूदगी में पोस्टमॉर्टम किया जाता है, लेकिन अब पोस्टमॉर्टम को लेकर अच्छी खबर सामने आई है.
पर अब पोस्टमॉर्टम से घबराने की जरूरत नहीं है. डेडबॉडी का पोस्टमॉर्टम तो होगा लेकिन उसके लिए शव की चीरफाड़ नहीं की जायेगी बल्कि डेडबॉडी को सीधे मशीन में डाला जाएगा और बाहर निकाल लिया जाएगा. शव को बिना काटे-पीटे ही मौत की वजह सामने आ जाएगी.
इस अस्पताल में यह सुविधा
ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज नई दिल्ली में पहला वर्चुअल ऑटोप्सी सेंटर खोला गया है. इसमें डेडबॉडी का पोस्टमॉर्टम वर्चुअली यानि मशीनों से किया जा रहा है. इस सेंटर में मुर्दों की जांच के लिए एमआरआई मशीनें, सीटी स्कैन मशीनें, डिजिटल एक्सरे से डेडबॉडी के अंदरूनी पार्ट्स को भी आसानी से स्कैन कर लिया जाता है और उसकी मौत की वजह का पता लगा लिया जाता है. खास बात ये है कि घंटों की प्रक्रिया वाला पोस्टमॉर्टम की वर्चुअल ऑटोप्सी से रिपोर्ट सिर्फ 15 मिनट में आ जाती है और शव को कोई नुकसान भी नहीं होता.
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एम्स ने बनाया ऐसा भी टूल
एम्स के वर्चुअल ऑटोप्सी सेंटर के चीफ और फोरेंसिक साइंस डिपार्टमेंट के हेड प्रोफेसर सुधीर गुप्ता बताते हैं कि एम्स में वर्चुअल ऑटोप्सी के अलावा पोस्टमॉर्टम या फॉरेंसिक जांच को लेकर कई बड़ी चीजें की जा रही हैं. यहां पायलट प्रोजेक्ट के तहत शुरू हुए वर्चुअल पोस्टमॉर्टम के लिए कई प्रकार के टूल भी बनाए जा रहे हैं. जैसे अगर किसी की मौत जहर या जहरीली चीज के सेवन से हुई है तो वह मशीनों में नहीं आएगी लेकिन उसके लिए एक मोटा इंजेक्शन होता है जो बिना पेट को काटे, पेट के अंदर मौजूद लिक्विड को बाहर निकाल लेता है, और फिर उसकी लैब में जांच की जाती है. इसी तरह अन्य चीजों के लिए भी नए टूल्स और मशीनों पर काम हो रहा है.
92 फीसदी लोग नहीं चाहते पोस्टमॉर्टम
एम्स के फॉरेंसिक एक्सपर्ट बताते हैं कि एक स्टडी के मुताबिक 92 फीसदी लोग शव के साथ होने वाली चीरफाड़ की वजह से पोस्टमॉर्टम नहीं कराना चाहते. ऐसे में वर्चुअल ऑटोप्सी ऐसे लोगों के लिए राहत की तरह है. इसके अलावा एमआरआई मशीनों से आने वाली रिपोर्ट्स में शरीर पर निशान या चोटों का गहराई से पता चल जाता है.
देश भर से आ सकती हैं डेडबॉडी
डॉ. सुधीर गुप्ता कहते हैं कि एम्स में फिलहाल रोजाना करीब 15 शवों की वर्चुअल ऑटोप्सी की जा रही है. हालांकि यहां रोजाना करीब 50 शवों के डिजिटल पोस्टमॉर्टम की व्यवस्था है. देश के किसी भी कोने से अगर पुलिस ऐसे किसी शव को एम्स के वर्चुअल ऑटोप्सी सेंटर में लेकर आती है तो यहां उसका पोस्टमॉर्टम किया जाएगा, हालांकि न्यायिक मामलों में अभी पोस्टमॉर्टम के इस कॉन्सेप्ट को मान्यता मिलना बाकी है.