शरीर को स्वस्थ रखने के लिए बच्चों को समय पर सोना और समय पर उठना दोनों बेहद ज़रूरी है। हालांकि जन्म से लेकर 2 साल की उम्र तक बच्चे के सोने का कोई निधार्रित समय नहीं होता है। लेकिन उम्र के साथ स्लीप पैटर्न भी डेवलप होने लगता है। स्क्रीन टाइम बढ़ने और खेलकूद में मसरूफ रहने वाले बच्चे कई बार देर रात तक जगे रहते हैं, जिससे बच्चों में एंग्जाइटी और चिड़चिड़ेपन की समस्या देखने को मिलती है। इसके अलावा बच्चे की ग्रोथ पर भी उसका प्रभाव दिखने लगता है। इसलिए आपको बच्चे के सोने और जगने के बारे में ये बातें जरूर पता होनी चाहिए –
क्यों जरूरी है स्लीप पैटर्न को फॉलो करना?
इस बारे में मनोचिकित्सक डॉ युवराज पंत का कहना है कि बच्चों की फिजिकल और मेंटल ग्रोथ बेहतर हो सके, इसलिए सोने के समय को निर्धारित करना आवश्यक है। इससे बच्चे की कंसंट्रेशन पावर बढ़ने लगती है। इसके अलावा प्रॉबलम सॉल्विंग स्किल्स और डिसिज़न मेकिंग आसान हो जाती है। नींद की कमी का असर बच्चे में मूड स्विंग की समस्या का कारण बनते हैं और बच्चे का इम्यून सिस्टम भी वीक होने लगता है। इसके लिए बच्चे को सप्ताह में 6 दिन फिक्स टाइम पर सुलाने का प्रयास करना चाहिए। इससे बच्चों में चीजों को याद रखने की क्षमता बढ़ती है। इसके अलावा हार्मोन रेगुलेट होते हैं, शरीर तनाव और चिंता से बचा रहता है।
बच्चों के सोने का समय कैसे फिक्स करें
सुलाने के लिए एक समय को चुनें
बच्चों को रोज़ाना सुलाने के लिए एक समय बांध लें। इससे बच्चा धीरे-धीरे समझ जाता है कि अब उसके सोने का समय हो चुका है तो उसे उसी वक्त नींद आने लगती है। सोने के पहले बच्चों को नाइट सूट पहनाएं, जिससे बच्चा कंफर्टेबल महसूस करता है।
गैजेट्स से दूर रखें
सोने से कुछ घंटे पहले बच्चों को गैजेट के इस्तेमाल से दूर रखें। इससे बच्चों में नींद न आने की समस्या दूर होने लगती है। दरअसल, गैजेट के इस्तेमाल से इससे निकलने वाली लाइट बच्चे के माइंड को अलर्ट कर देती है, जो नींद न आने की समस्या का कारण बन जाता है।
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कमरे का वातावरण सामान्य हो
बच्चे को सुलाने के लिए आप जिस भी कमरे का चयन कर रहे हैं, उस कमरे का तापमान बच्चे के हिसाब से उचित होना चाहिए। साथ ही कमरे में पूरा अंधेरा करें और शोर गुल भी अवॉइड करें, ताकि बच्चा आसानी से सो पाए।
स्लीप पैटर्न फिक्स करने के फायदे
एंग्जाइटी और प्रेशर होगा कम
वे बच्चे जो पूरी नींद लेते हैं, उन्हें चिंता और प्रैशर से मुक्ति मिल जाती है। वे छोटी छोटी बातों को लेकर चिंतित नहीं रहते हैं और वे मन लगाकर पढ़ते हैं। इसके अलावा शारीरिक विकास के साथ मानसिक विकास भी तूज़ी से होने लगता है।
एकाग्रता बढ़ेगी
नींद की गुणवत्ता बढ़ने से बच्चों में एकाग्रता का विकास होने लगता है। वे एकचित्त होकर चीजों को समझने और पढ़ने का प्रयास करने है। उन्हें किसी भी चीज़ को याद रखने में तकलीफ नहीं होती है। मेंटल हेल्थ बूस्ट होती है।
इम्यून सिस्टम मज़बूत होगा
समय पर सोने और उठने से हार्मोन रेगुलेट होने लगते हैं। इसका असर बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर नज़र आता है। बच्चों का इम्यून सिस्मट मज़बूत होने लगता है और शरीर संक्रमणों के प्रकोप से दूर रहता है।
बार-बार गुस्सा नहीं आयेगा
बहुत से बच्चे छोटी छोटी बातों पर गुस्सा, चिड़चिड़ापन और रोने लगते हैं। इससे बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास में बाधा उत्पन्न होती है। सोने का समय निर्धारित सेट होने से बच्चा खुयाहाल रहता है और सभी गतिविधियों में हिस्सा भी लेता है।
अटैंशन और कंसंट्रेशन पावर बढ़ेगी
पूरी नींद लेने से दिमाग फ्रेश रहता है और शरीर भी हेल्दी बना रहा है। वे बच्चे जो रोज़ाना समय पर सोते और उठते हैं, उन्हें किसी भी बात या काम को समझने में दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ता है। वे मन लगाकर पढ़ते हैं और कक्षा में भी अटैंटिव रहते हैं। वे स्कूल में होने वाली भी गतिविधियों में पार्टिसिपेट भी करते हैं।