केरल में चिकनपॉक्स का खतरा बढ़ता जा रहा है। राज्य में चिकनपॉक्स के मामले बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। आंकड़ों के अनुसार अब तक केरल में चिकनपॉक्स के 6 हजार से अधिक केसेस सामने आए हैं। चिकनपॉक्स के मामलों में लगातार हो रही इस बढ़ोतरी को देखते हुए प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग अलर्ट पर है। वहीं, लोगों से भी अपील की जा रही है कि वे अपना और अपने बच्चों का ख्याल रखें।
बच्चों में चिकनपॉक्स का खतरा अधिक क्यों है?
चिकनपॉक्स एक प्रकार का इंफेक्शन है जो वैरिसाला-जोस्टर वायरस की वजह से फैलता है। चिकनपॉक्स फैलने का खतरा उन लोगो में अधिक देखा जाता है जिन्होंने इसके टीके ना लगवाए हों। छोटे बच्चों में चिकनपॉक्स का खतरा बड़ों की तुलना में अधिक होता है। इसीलिए, स्कूलों और अस्पतालों में बच्चों को चिकनपॉक्स के टीके लगवाने के लिए विशेष कार्यक्रम भी चलाए जाते हैं और छोटे बच्चों को चिकनपॉक्स की वैक्सीन लगायी जाती है।
एक्सपर्ट्स के अनुसार छोटे बच्चों में चिकनपॉक्स फैलने का खतरा अधिक होता है। चिकनपॉक्स होने पर शरीर पर शुरूआत में रैशेज और बुखार जैसे दिखायी देते हैं। ये लक्षण अगर 10 दिनों से अधिक समय तक दिखायी दें तो आपको डॉक्टर से सम्पर्क करना चाहिए।
चिकनपॉक्स में किस तरह के लक्षण दिखायी देते हैं?
शरीर पर लाल रंग के दानें, रैशेज और उनमें खुजली जैसी समस्याएं चिकनपॉक्स के मुख्य लक्षण हैं। वहीं, चिकनपॉक्स होने पर इस तरह के लक्षण भी दिखायी दे सकते हैं-
- तेज बुखार
- भूख मन जाना या जरा भी भूख नहीं लगना
- बहुत अधिक थकान महसूस करना
- कमजोरी होना
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चिकनपॉक्स से बचाव
साफ-सफाई और संक्रमित व्यक्ति से दूर रहना चिकनपॉक्स को फैलने से रोकने के सबसे कारगर उपाय हैं। बता दें कि चिकनपॉक्स एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक आसानी से फैल सकता है। इसीलिए, इस संक्रमण से बचाव के लिए लोगों को कई बातों का ध्यान रखने की सलाह दी जाती है। ऐसे ही कुछ उपाय हैं-
वैक्सीनेशन
बच्चों को चिकनपॉक्स के टीके लगवाएं। बच्चों के लिए अभी जो टीके उपलब्ध हैं वे 12-15 महीने और 4-6 साल की उम्र में लगाए जाते हैं।
आइसोलेशन
चिकनपॉक्स के मरीज को आइसोलेशन में रखें। रैशेज और दाने ठीक होने के बाद भी कम से कम 2 महीने तक मरीजों को सावधानी बरतने और दूसरों से दूर रहने की सलाह दी जाती है।
संक्रमित व्यक्ति के कपड़े, चादर, तौलिया और साबुन किसी और को इस्तेमाल ना करने दें।
डाइट
दिन में 8-10 गिलास पानी पीएं। ताजे और सीजनल फल-सब्जियां खाएं।
खिचड़ी, सूप और दाल का सेवन करें।
कम मिर्च-मसाले वाला खाना खाएं और बच्चों को भी पौष्टिक और सादा भोजन कराएं।