हकलाना को अंग्रेजी में स्टैमरिंग या स्टटरिंग कहा जाता है, यह एक न्यूरोलॉजिकल कंडीशन होती है। इसमें व्यक्ति सामान्य रूप से बोल पाने की क्षमता को खो देता है। इसमें आमतौर पर व्यक्ति सामान्य रूप से बोलने की जगह बोलते समय किसी शब्द या अक्षर को बार-बार बोलने लगता है या फिर किसी शब्द की ध्वनि को लंबा बना देते हैं। हकलाने से जुड़ी ये समस्याएं आमतौर पर 4 से 7 साल के बच्चों में देखी जाती हैं।
ऐसा आमतौर पर इसलिए होता है क्योंकि इस उम्र में बच्चे शब्दों को जोड़कर और उनका वाक्य बनाकर बोलना सीखने लगते हैं। आंकड़ों के अनुसार 5 फीसद ऐसे बच्चे होते हैं, जो बोलना सीखने के दौरान कभी न कभी हकलाते जरूर हैं। इनमें से ज्यादातर बच्चे धीरे-धीरे यह हकलाने की आदत छोड़ देते हैं और 1 प्रतिशत बच्चे ऐसे रह जाते हैं, जिनमें हकलाने की समस्या बनी रहती है और वे वयस्क होने तक हकलाते रहते हैं।
हकलाने के कौन-से प्रकार हैं
डेवलपमेंटल स्टैमरिंग – यह हकलाने का सबसे आम प्रकार होता है, जो आमतौर पर बचपन से शुरुआती दौर में देखा जाता है। डेवलपमेंटल स्टैमरिंग तब होता है, जब बच्चे की बोलने और उसकी भाषा की क्षमता उसके वाक्यांशों की जरूरतों को पूरा न कर पाएं। सरल शब्दों में कहा जाये तो अगर बच्चा कोई कठिन शब्द या वाक्यांश बोलने की कोशिश कर रहा है, जो वह बोल नहीं पा रहा है तो ऐसे में वह हकलाने लग जाता है।
एक्वायर्ड स्टैमरिंग – इसे लेट स्टैमरिंग भी कहा जाता है, इसके अन्य कुछ प्रकार भी हैं जैसे – न्यूरोजेनिक स्टैमरिंग। यह आमतौर पर केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में किसी प्रकार की क्षति होने के कारण होता है। न्यूरोजेनिक स्टैमरिंग के साथ-साथ स्ट्रोक जैसी जटिलताएं भी देखी जा सकती हैं। साइकोजेनिक स्टैमरिंग – यह हकलाने की समस्या का एक असामान्य प्रकार है, जिसका मतलब है कि इसके मामले कम ही देखे जाते हैं। साइकोजेनिक स्टैमरिंग के मामले आमतौर भावनात्मक आघात होने के बाद ही विकसित होता है।
हकलाने के लक्षण
किसी बच्चे में हकलाने की समस्या का पता उसके माता-पिता को बचपन में ही लगा लेना चाहिए, ताकि समय रहते उसका उचित इलाज किया जा सके। हकलाने के लक्षण उसके प्रकार के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं, जिनके बारे में नीचे बताया गया है –
डेवलपमेंटल स्टैमरिंग के लक्षण
- किसी शब्द की ध्वनि को लंबा करना
- शब्द या अक्षर को दो या अधिक बार बोलना
- बोलते समय “अ” “अम” जैसे शब्दों का इस्तेमाल करना
- उत्तेजना, थकावट या तनाव जैसी स्थितियों में ज्यादा हकलाना
- बोलते समय होंठ कांपना या तेजी से आंखे झपकाना
- बोलने में झिझक या डर महसूस करना
तनावग्रस्त स्थितियों में हकलाने के लक्षण और गंभीर हो जाते हैं या फिर जब मरीज अपनी हकलाने की स्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश करता है, तो उसके लक्षण और अधिक बढ़ सकते हैं।
एक्वायर्ड स्टैमरिंग के लक्षण –
एक्वायर्ड स्टैमरिंग के दौरान होने वाले लक्षण आमतौर पर उसके अंदरूनी कारण से अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं, जैसे –
- शब्द या अक्षर को लंबा या बार-बार उच्चारण करना
- बोलते-बोलते बीच में रुक जाना
- बोलते समय असामान्य आवाजें निकलना
- सुनने वाले को समझ न आना
- ठीक से बोल न पाने के कारण तनाव या डिप्रेशन महसूस होना
कुछ स्थितियां हैं जिनमें डेवलपमेंटल स्टैमरिंग के लक्षण ज्यादा हो जाते हैं जैसे गाना या पब्लिक में भाषण देना आदि।
डॉक्टर को कब दिखाना चाहिए
छोटे बच्चे जब बोलना सीखते हैं, तो उनमें थोड़ा बहुत हकलाने के लक्षण देखने को मिल सकते हैं। हालांकि, अगर आपका बच्चा ज्यादा हकला रहा है या फिर बढ़ती उम्र के साथ भी इस स्थिति में सुधार नहीं हो रहा है। तो ऐसे में डॉक्टर से इस बारे में बात कर लेनी चाहिए। किशोरावस्था में हकलाने की समस्या के कारण बच्चे को कई मानसिक व भावनात्मक जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है, इसलिए समय से पहले ही इसकी जांच कराना बेहद जरूरी है।
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हकलाने का कारण क्या है
हकलाने की समस्या के पीछे का कारण भी उसके प्रकार के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं, जिनमें निम्न शामिल हैं –
फैमिली हिस्ट्री – आंकड़ों के अनुसार जिन लोगों के परिवार में पहले किसी को हकलाने की समस्या है, उनमें 60 प्रतिशत लोगों में यह दिक्कत देखी जा सकती है।
न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर – इसमें आमतौर पर ऑटिज्म, सेरेब्र पाल्सी, एडीएचडी, डिसग्रेफिया या डिस्लेक्सिया जैसी समस्याएं आदि शामिल हैं, जो हकलाने की समस्या का कारण बन सकती हैं।
स्पीच या लैंग्वेज डिसऑर्डर – इसमें आमतौर पर डिसआर्थरिया, अफेजिया, पालिलेलिया आदि शामिल हैं, जिनके कारण भी हकलाने की समस्या हो सकती है।
अन्य विकार – भावनात्मक, वातावरणीय व घटना से जुड़ी स्थितियों पर आधारित भी कुछ कारक हैं, जो हकलाने का कारण बन सकते हैं।
इसके अलावा किसी प्रकार की चोट या क्षति भी कुछ लोगों में हकलाने का कारण बन सकती है और इनमें प्रमुख रूप से निम्न शामिल हैं –
- इस्केमिक अटैक
- कार्डियोवास्कुलर समस्याएं जैसे स्ट्रोक
- पार्किंसन रोग या डिमेंशिया जैसे डीजेनेरेटिव डिजीज
- दवाओं से होने वाले साइड इफेक्ट के रूप में
- भावनात्मक आघात
- मस्तिष्क में ट्यूमर
हकलाने के क्या कारक हैं
डेवलपमेंटल स्टैमरिंग आमतौर परक 2 से 5 साल की उम्र के बच्चों में देखा जाता है और इसके पीछे कोई न्यूरोलॉजिकल रोग या क्षति नहीं होती है। वहीं महिलाओं की तुलना में पुरुषों में इसके मामले ज्यादा देखे गए हैं। एक्वायर्ड स्टैमरिंग आमतौर पर किसी भी उम्र में हो सकता है, लेकिन विशेष रूप से इसके मामले वयस्कों और बुजुर्गों में देखे जाते हैं। हालांकि, यह पुरुषों और महिलाओं दोनों को समान रूप से प्रभावित कर सकता है।
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हकलाने की जांच कैसे होती है
छोटे बच्चे विशेष रूप से जो बोलना सीख रहे हैं, उनका हकलाना आम बात है लेकिन कई बार यह कोई अन्य अंदरूनी समस्या का संकेत हो सकता है और इसलिए डॉक्टर से इस बारे में बात कर लेनी चाहिए। डॉक्टर मरीज की स्थिति की जांच करते हैं और जरूरत के अनुसार उसे स्पीच एंड लैंग्वेज थेरेपिस्ट के पास भेज सकते हैं। स्पीच एंड लैंग्वेज थेरेपिस्ट आमतौर पर भाषा व बोलने से जुड़ी समस्याओं का पता लगाने और उसका इलाज करने के विशेषज्ञ होते हैं। हकलाने के परीक्षण के दौरान स्पीच एंड लैंग्वेज थेरेपिस्ट सबसे पहले रोग का कारण बनने वाले कारकों का पता लगाते हैं, जैसे मेडिकल हिस्ट्री, व्यवहार संबंधी समस्याएं और मेडिकल हिस्ट्री आदि।
हकलाने का इलाज क्या है
हकलाने की समस्या का इलाज भी स्पीच एंड लैंग्वेज थेरेपिस्ट के द्वारा ही किया जाता है, जिसमें वे मरीज के हकलाने की समस्या में सुधार करने के लिए अलग-अलग तरीके अपनाते हैं। अगर किसी प्रकार की भावनात्मक समस्या के कारण हकलाने की समस्या हो रही है, तो अन्य साइकोलॉजिकल थेरेपी की मदद से स्थिति का इलाज किया जाता है। हालांकि, हकलाने की समस्या का इलाज आमतौर पर मरीज की उम्र, लक्षणों और स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। साथ ही यह इस बात पर भी निर्भर करता है, कि मरीज बोलते समय कितना हकला रहा है।
हकलाने के समस्या को जड़ से खत्म नहीं किया जा सकता है। हालांकि, समय पर स्थिति की देखभाल और उचित इलाज करके स्थिति को वयस्क होने तक गंभीर होने से रोका जा सकता है। उपचार के रूप में बच्चे को अलग-अलग प्रकार की तकनीक सिखाई जाती हैं, ताकि उसके बोलने की दिक्कत को कुछ हद तक कम किया जा सके।