सर्दी कम होते ही अब गर्मी का मौसम आ रहा है. ऐसे में आपके बच्चों के लिए यह खबर काफी महत्वपूर्ण है. आपको याद होगा कि कुछ साल पहले मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार की चपेट में आने से कई बच्चों की जान चली गई थी. दरअसल, गर्मी में चमकी बुखार तेजी से फैलता है. इसका असर मुजफ्फरपुर के भी 6 प्रखंडों में ज्यादा रहता है.
हर साल मार्च और अप्रैल के महीने में बिहार के अलग-अलग जिले में 1 से 15 साल के बालक और किशोर इस बीमारी से ज्यादा प्रभावित होते हैं. मालूम हुआ कि चमकी बुखार को मस्तिष्क ज्वर या एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम या जापानी इंसेफेलाइटिस भी कहा जाता है. ऐसे में आज हम आपको एक ऐसे चिकित्सक से मिलवाने जा रहे हैं, जिनके बनाए SOP को स्वास्थ्य विभाग भी फॉलो करता है. इस एसओपी के आने के बाद इस इलाके में चमकी बुखार से बच्चों की मौत का मामला भी काफी कम हो गया है.
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एसकेएमसीएच के रिटायर चिकित्सक शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. अरुण साह ने बताया कि चमकी बुखार से ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्र के बच्चे प्रभावित होते हैं. वह बताते हैं कि चमकी बुखार को लेकर उन्होंने रिसर्च भी की थी. इसके बाद इलाज का एक प्रोटोकॉल बनाया, जिसे बिहार सरकार ने एक्सेप्ट किया था. वे बताते हैं कि आपने दीवारों पर चमकी के बारे में लिखा देखा होगा. इसमें तीन महत्वपूर्ण मैसेज है. जैसे बच्चे को खिलाओ, रात में जगाओ और अस्पताल ले जाओ. इस संदेश का ऐसा असर हुआ कि 2022 के बाद चमकी बुखार से बच्चों के मौत की संख्या कम हो गई है.
कुपोषित बच्चे होते हैं शिकार
डॉ. साह बताते हैं कि कुपोषण के शिकार बच्चे इस बुखार से ज्यादा प्रभावित होते हैं. खासतौर से ग्रामीण इलाके में देखा जाता है कि बच्चा अपनी मां और पिता के साथ खेत या बागान में चला जाता है. ज्यादातर लोग मजदूर होते हैं, तो वहां पर बच्चा सड़ा-गला फल खा लेता है. इन सब के कारण वह बच्चा चमकी बुखार की चपेट में आ जाता है. डॉ. साह सलाह देते हैं कि मार्च के बाद जब गर्मी बढ़ने लगती है, तो बच्चों की उचित देखभाल शुरू कर देना चाहिए. उनकी मानें तो बच्चे को तीन से चार बार खाना खिलाना चाहिए, नियमित अंतराल पर पानी पिलाना चाहिए, तेज धूप में बाहर जाने से रोकना चाहिए और सड़ा-गला मौसमी फल नहीं खाने देना चाहिए. इससे बच्चों को चमकी बुखार से लड़ने में मदद मिलेगी.