एप्लास्टिक एनीमिया एक दुर्लभ और जानलेवा रक्त विकार है। यह तब होता है जब अस्थि मज्जा पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो जाती है और पर्याप्त नई रक्त कोशिकाएं और प्लेटलेट्स नहीं बना पाती है, जिससे एनीमिया और थ्रोम्बोसाइटोपेनिया हो जाता है। यह एक जानलेवा स्थिति है क्योंकि रोगियों को गंभीर संक्रमण, रक्तस्राव की समस्या और दूसरी कठिनाइयों का खतरा बढ़ जाता है।
भारत में पश्चिमी देशों की तुलना में दुर्लभ और जानलेवा रक्त विकार के मामले कहीं ज्यादा पाए जाते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इसकी जल्द पहचान और इलाज जरूरी है। स्टेम सेल ट्रांसप्लांट इस बीमारी को ठीक कर सकता है, लेकिन इलाज बहुत महंगा है।
इसके दो प्रकार होते हैं
- वंशानुगत, जो माता-पिता से बच्चों में जाता है।
- दूसरा प्रकार, इडियोपैथिक एक्वायर्ड एप्लास्टिक एनीमिया, जो समय के साथ विकसित हो सकता है।
एप्लास्टिक एनीमिया के कारणों का आमतौर पर पता नहीं चल पाता है, लेकिन कुछ ज्ञात कारणों में पर्यावरण के विषाक्त पदार्थों या रसायनों के संपर्क में आना, कीमोथेरेपी या विकिरण उपचार और उम्र बढ़ना शामिल हैं।
डॉक्टर गौरव खरिया, इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल दिल्ली में सेंटर फॉर बोन मैरो ट्रांसप्लांट एंड सेलुलर थेरेपी के निदेशक ने बताया कि “एप्लास्टिक एनीमिया भारतीयों को प्रभावित करने वाला एक आम रोग है। भारत और दक्षिण पूर्व एशिया में इसका प्रकोप यूरोप और अमेरिका की तुलना में 3-4 गुना अधिक है।”
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डॉक्टर ऋषिराज सिन्हा, नेशनल सेक्रेटरी, फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन (FAIMA) का कहना है कि “यूरोप में एप्लास्टिक एनीमिया की दर 2-3/ मिलियन प्रतिवर्ष है, लेकिन पूर्वी एशिया में यह अधिक है। भारत में एप्लास्टिक एनीमिया के सटीक आंकड़े ज्ञात नहीं हैं। एप्लास्टिक एनीमिया के लिए अंतिम उपचार स्टेम सेल प्रत्यारोपण है।”
विशेषज्ञों ने ध्यान दिया कि सफल उपचार के लिए जल्दी पहचान और इलाज महत्वपूर्ण है। हालांकि स्टेम सेल ट्रांसप्लांट या बोन मैरो ट्रांसप्लांट (BMT) इस जानलेवा बीमारी को 90 प्रतिशत से अधिक ठीक कर सकता है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि महंगे इलाज के कारण यह आम लोगों के लिए वहन करना मुश्किल है।
डॉक्टर राहुल भार्गव, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम में हेमाटोलॉजी और बोन मैरो ट्रांसप्लांट के प्रिंसिपल डायरेक्टर ने बताया कि “भारत में हर साल लगभग 20,000 लोगों में एप्लास्टिक एनीमिया का पता चलता है और अधिकांश लोग धन की कमी, जागरूकता की कमी और बोन मैरो ट्रांसप्लांट या इम्यूनोसप्रेसिव थेरेपी प्रदान करने के लिए बुनियादी ढांचे के अभाव में मर जाते हैं।”
उन्होंने कहा कि “यह गरीबों में सबसे ज्यादा होता है। हमें आयुष्मान भारत योजना में इम्यूनोसप्रेसिव थेरेपी को शामिल करने और भारत में और BMT केंद्र खोलने की जरूरत है। इसलिए हम सरकारी अस्पतालों में BMT केंद्र स्थापित कर रहे हैं जहां गरीब मरीजों के लिए मुफ्त में BMT किया जाता है।”