इन दिनों कुछ कारणों से महिलाओं में प्रीमेच्योर मेनोपॉज अधिक हो रहे हैं। यह कई स्वास्थ्य जोखिमों को बढ़ा सकता है। भारत में नेचुरल मेनोपॉज की उम्र 45-50 के बीच है। इन दिनों अर्ली मेनोपॉज और प्रीमेच्योर मेनोपॉज होने वाली महिलाओं की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। जेनेटिक्स, बीमारी या चिकित्सा प्रक्रिया को इसका मुख्य कारण माना जाता है। इन दिनों पर्यावरण, प्रदूषण को भी इसका कारण बताया जा रहा है। यदि समय से पहले रजोनिवृत्ति हो जाती है, तो महिलाओं को कई अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से भी जूझना पड़ता है। इसमें हॉट फ्लेशेज प्रमुख है। समय से पहले रजोनिवृत्ति से गुजरने वाली कई महिलाओं को शारीरिक और भावनात्मक एंग्जाइटी का भी सामना करना पड़ता है।
क्या है प्रीमेच्योर मेनोपॉज और अर्ली मेनोपॉज में अंतर
समयपूर्व रजोनिवृत्ति या प्रीमेच्योर मेनोपॉज 40 वर्ष की आयु से पहले हो जाती है। अर्ली मेनोपॉज 40 और 45 वर्ष की आयु के बीच होती है। जिन महिलाओं को जल्दी या समय से पहले मेनोपॉज का अनुभव होता है, उन्हें ऑस्टियोपोरोसिस और हृदय रोग जैसी बीमारियां होने का जोखिम बढ़ जाता है। इसे कम करने के लिए हार्मोन थेरेपी की जरूरत पड़ सकती है। यह प्रीमेच्योर ओवेरियन इनसफीशिएंसी के कारण होता है।
कैसे समझें प्रीमेच्योर ओवेरियन इनसफीशिएंसी
प्रीमेच्योर ओवेरियन इनसफीशिएंसी या समयपूर्व डिम्बग्रंथि अपर्याप्तता के लक्षण अक्सर वही होते हैं जो नेचुरल मेनोपॉज से गुजर रही महिलाओं द्वारा अनुभव किए जाते हैं। ऐसा होने पर अनियमित या मिस्ड पीरियड्स, पीरियड्स सामान्य से अधिक या हल्का होता है। यह अंडाशय के कम एस्ट्रोजन उत्पादन का संकेत होता है। योनि के सूखापन का अनुभव हो सकता है। इरिटेबल यूरीनरी ब्लेडर हो सकता है। चिड़चिड़ापन, मूड में बदलाव, हल्का अवसाद भी हो सकता है। ड्राई स्किन, नींद न आना, सेक्स ड्राइव में कमी जैसे लक्षण भी हो सकते हैं।
किन कारणों से होती है
यदि किसी महिला की उम्र 40 वर्ष से कम है और वह इन स्थितियों का अनुभव कर रही है, तो इसे निर्धारित करने के लिए उसे डॉक्टर से मिलना चाहिए। प्रीमेच्योर ओवेरियन इनसफीशिएंसी कीमोथेरेपी या रेडिएशन से भी हो सकता है। उनको या उनके परिवार के किसी सदस्य को हाइपोथायरायडिज्म, ग्रेव्स रोग या ल्यूपस जैसी ऑटोइम्यून डिसऑर्डर हो सकता है। कभी-कभी प्रेगनेंसी के प्रयास के कारण भी हो सकता है। मां या बहन को समय से पहले प्रीमेच्योर ओवेरियन इनसफीशिएंसी का अनुभव हुआ हो।
क्या है डायग्नोसिस
प्रीमेच्योर ओवेरियन इनसफीशिएंसी का निदान करने के लिए डॉक्टर शारीरिक परीक्षण करते हैं। गर्भावस्था और थायरॉयड रोग जैसी स्थितियों का पता लगाने के लिए ब्लड टेस्ट किया जाता है। ब्लड टेस्ट फोलिक्ल स्टीमुलेटिंग हार्मोन (FSH) को मापता है। एफएसएच अंडाशय से एस्ट्रोजेन के उत्पादन करने का कारण बनता है। जब अंडाशय एस्ट्रोजेन का उत्पादन धीमा कर देते हैं, तो एफएसएच का स्तर बढ़ जाता है। जब एफएसएच का स्तर 40 एमआईयू/एमएल से ऊपर बढ़ जाता है, तो यह मेनोपॉज को इंगित करता है। एस्ट्राडियोल लेवल भी मापा जा सकता है। एस्ट्राडियोल का लो लेवल एस्ट्रोजेन के लो होने का संकेत दे सकता है। जब एस्ट्राडियोल का स्तर 30 से नीचे होता है, तो मेनोपॉज होने का पता चलता है।
क्या इलाज संभव है
इसके कारण ऑस्टियोपोरोसिस के साथ-साथ एस्ट्रोजन के नुकसान से जुड़े अन्य स्वास्थ्य जोखिम भी हो सकते हैं। इनमें कोलन कैंसर, और ओवेरियन कैंसर, पेरियोडोंटल या मसूड़ों की बीमारी, दांतों का नुकसान और मोतियाबिंद होने का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए इसे मैनेज करना जरूरी है। प्रीमेच्योर ओवेरियन इनसफीशिएंसी के लक्षण और जोखिम को नेचुरल मेनोपॉज में होने वाली समस्याओं की तरह मैनेज किया जा सकता है।
प्रीमेच्योर ओवेरियन इनसफीशिएंसी के कारण होने वाली इनफर्टिलिटी से जूझ रही महिलाएं डॉक्टर या प्रजनन विशेषज्ञ के साथ चर्चा कर अपना उपचार करा सकती हैं। इस समस्या को कुछ हद तक ही रीवर्स किया जा सकता है।