मरीज के लिए डॉक्टर भगवान के समान होते हैं, क्योंकि अमूमन वही उसे स्वास्थ्य लाभ या जीवनदान देते हैं लेकिन ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जब डॉक्टरों ने अपने मरीजों से जीवन के सबक लिए हैं। इसके साथ ही वे मर्ज और मौत से असंभव लगने वाली लड़ाई लड़ने के लिए भी प्रोत्साहित हुए हैं। इस संबंध में एसएमएस मेडिकल कॉलेज के कुछ विशेषज्ञ चिकित्सकों ने अपने किस्से शेयर किये हैं। उन्होंने बताया कि कैसे मरीजों से मिली सीख को उन्होंने अपने जीवन में उतारा है।
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आइसक्रीम स्टिक से बनाया मुंह खोलने का उपकरण
डॉ. सुरेश सिंह, विभागाध्यक्ष, सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग, स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट बताते हैं कि कैंसर का पता चलने के बाद कई मरीज तनावग्रस्त हो जाते हैं तो कुछ इससे छुटकारा पाने की जद्दोजहद में पूरी तरह से जुट जाते हैं। ऐसा ही उदाहरण है 45 वर्षीय मरीज कैलाश शर्मा का। वह मुंह के कैंसर से ग्रस्त था। सर्जरी के बाद उसका मुंह नहीं खुल रहा था। इससे राहत के लिए कसरत व कुछ उपकरण सुझाए गए जो काफी महंगे थे। मरीज कैलाश की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह इन्हें खरीद सके। लेकिन उसने हार नहीं मानी और अपनी इस समस्या का समाधान महज 50 रुपए में निकाल लिया। उसने आइसक्रीम स्टिक से मुंह खोलने के लिए इप्लांट (अस्थायी) बना दिया। जब उसने दिखाया तो हम हैरत में पड़ गए। अब उसके इस इनोवेशन को हम दूसरे मरीजों को बता रहे हैं। कैलाश जैसे मरीजों के हौसले देखकर मुझे हार न मानने का बड़ा सबक मिलता है।
सीख: जीवन में कभी हार न मानें, समस्या का हल निकालने की कोशिश करें।
पत्नी का चेहरा देखकर कहा, मरीज ठीक हो जाएगा
डॉ. दीपक माहेश्वरी, प्राचार्य, एसएमएस मेडिकल कॉलेज बताते हैं कि ज्यादातर कार्डिएक मरीज अस्पताल में चलते-फिरते हुए आते हैं हालांकि कई गंभीर हालत में भी पहुंचते हैं। उनमें देखा गया है कि जो मरीज पॉजिटिव रहते हैं, वे जल्दी ठीक होते हैं। इसका असर डॉक्टर की मनोस्थिति पर भी पड़ता है। एक मरीज की हालत खराब थी। उसका ऑपरेशन पूरा होने के बाद जैसे ही बाहर आया तो उसकी पत्नी हाथ जोड़कर खड़ी थी। बोली, डॉक्टर साहब पति कब तक ठीक हो जाएंगे। मैंने कहा, हां जल्द हो जाएंगे। जबकि उसके पति की हालत गंभीर थी। उस महिला के चेहरे के भाव बदल गए। वह मुस्कुरा उठी। मैं सोचने को मजबूर हो गया। कैसे होगा, लेकिन वह हमेशा पॉजिटिव रही। कुछ दिन उसका पति ठीक हो गया तो मुझे लगा कि हम जैसा भाव मन में रखते हैं, कई बार वैसा ही हो जाता है इसलिए खुद को सकारात्मक ही रखें।
सीख: आप जैसा सोचते हैं, वैसा हो जाता है। इसलिए हमेशा सकारात्मक रहें।
जिंदा रहने के लिए हर उम्र में किया मौत से संघर्ष
डॉ. विनय मल्होत्रा, अधीक्षक, एसएमएस सुपर स्पेशलिटी ब्लॉक बताते हैं कि 32 वर्षीय मरीज राहुल (परिवर्तित नाम) बचपन से ही किडनी की बीमारी से जूझ रहा है। उसने बचपन से लेकर जवानी तक हर स्टेज और उम्र में जिंदा रहने की जिद लिए मौत से संघर्ष किया है लेकिन हमें कभी उसके चेहरे पर मायूसी नहीं दिखी। हमेशा मुस्कुराता रहता था। उसे बचपन में ही डायबिटीज हो गई थी और तीन साल की उम्र में ही उसकी किडनी खराब हो गई थी और उसे डायलिसिस पर लेना पड़ा। इसके बाद उसका ट्रांसप्लांट हुआ। वह कई बार गंभीर अवस्था में पहुंचा लेकिन उसने खुद को हारने नहीं दिया। वह परिवार को भी संभाल देता था। ऐसे मामलों में कई बार हम हार मान जाते हैं लेकिन वह अपनी जिजीविषा से जीवित है और बच्चों के साथ दवा लेने आता है।
सीख: परिस्थितियां कैसी भी हों, आपकी जिंदादिली काम आती है।