अकसर हम बोलचाल की भाषा में कहते हैं-हमारे दिल पर यह बोझ जैसा है। मुझे उससे यह नहीं कहना चाहिए था। उसे मुझसे यह नहीं कहना चाहिए था। हम यह भी कहते हैं कि उसका ऐसा व्यवहार, उसकी ऐसी बातें मेरे सीने पर पत्थर के समान बोझ जैसी बनी हैं। दरअसल दिल पर यह बोझ भावनाओं से सम्बंधित होता है। इसलिए इसे इमोशनल बोझ भी कहा जाता है। इससे हमारा तात्पर्य तनाव से होता है। यह तनाव प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ से जुड़ा हो सकता है। इससे उबरना जरूरी है। इससे छुटकारा नहीं होने पर मेंटल हेल्थ की कई समस्याएं हो सकती हैं।
क्या है भावनात्मक बोझ
प्रोफेशनल और पर्सनल दोनों फ्रंट पर किसी की बात और व्यवहार लाइफ से जुड़े कई मुद्दे होते हैं, जो भावनात्मक रूप से आपको परेशान कर सकते हैं। यह अधूरी इच्छाओं, अपेक्षाओं, तनाव, दर्द और हमारे द्वारा अनुभव की गई कठिनाइयों के कारण भी उत्पन्न हो सकता है। किसी प्रकार के आघात भी भावनात्मक बोझ के कारण बन सकते हैं। यह हमारे दिमाग में अंकित हो जाती है।
यह हमारे कार्य खासकर प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ को प्रभावित करने लगती है । यह रिश्तों को भी प्रभावित कर सकती है। यदि समय रहते इससे छुटकारा पाने का उपाय नहीं किया जाए, तो यह धीरे-धीरे अवसाद की ओर ले जा सकता है।
कैसे पायें छुटकारा
पहचानें कि यह आप पर कैसे प्रभाव डाल रहा है
किसी प्रकार का दर्दनाक अनुभव दुनिया को देखने के हमारे तरीके को प्रभावित कर देता है। यह हमारे कामकाज के तरीके को प्रभावित कर सकता है। यह हमारे विश्वास को हिला देता है। हमें सबसे पहले उस भावनात्मक बोझ को पहचानना होगा, जो हमारी सोच और विचारों को प्रभावित कर रहा है। इसके लिए सेल्फ अवेयरनेस और अंतर्दृष्टि विकसित करनी जरूरी है। एक बार जब हम यह समझने में सक्षम हो जाते हैं कि अतीत के अनुभवों का वर्तमान पर क्या प्रभाव पड़ रहा है, तो आप उससे बाहर निकलने के उपाय भी तलाशने लग जाते हैं।
दर्द को स्वीकार करें
दर्द, दुख, क्रोध और उदासी को स्वीकार करना जरूरी है। यह स्थिति से निपटने और आगे बढ़ने की हमारी क्षमता को बढ़ाता है। भावना को स्वीकार करें कि ऐसा महसूस करना ठीक है। अक्सर हम इसे दबाने की कोशिश करते हैं। यह केवल थोड़ी देर के लिए काम करता है और समय के बाद यह बस बढ़ता जाता है। भावना को नोटिस करना सीखें। अपने आप को इसके माध्यम से सीखने का समय दें। दर्द को स्वीकार करें और फिर खुद को याद दिलाएं कि आप इससे उबर जाएंगी।
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अपनी धारणा बदलें
यह सच है कि प्रोफेशनल और पर्सनल दोनों फ्रंट पर आत्म सम्मान को चोट पहुंचाने वाली बात और बुरा व्यवहार दर्द दे सकता है। इन अनुभवों पर बहुत अधिक चिंता करने की बजाय उससे उबरने की कोशिश ही आपको आगे ले जा सकती है। इसलिए अपनी धारणा को बदलना बहुत जरूरी है। यदि आप यह समझने की कोशिश करती हैं कि इन अनुभवों से आप सीख भी सकती हैं, तो निश्चित तौर पर बदलाव आ सकता है।
धारणा बदलने पर आप विकसित हो सकती हैं। पहले से बेहतर बन सकती हैं। यह आपको खुद को मजबूत, अधिक सशक्त और बेहतर महसूस करने में मदद कर सकता है।
वर्तमान पर ध्यान दें
जब किसी तरह का आघात व्यक्ति को परेशान करता है, तो व्यक्ति दो तरह की स्थिति से गुजरने लगता है। एक में उसके पिछले अनुभव होते हैं, तो दूसरे में उनका वर्तमान जीवन। यह पहचानना जरूरी है कि अतीत वर्तमान को नकारात्मक रूप से प्रभावित नहीं करे। खुद को वर्तमान में रखना जरूरी है। हमें यह जरूर सोचना चाहिए कि वर्तमान हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है, जबकि अतीत पीछे ले जाता है। आगे बढ़ना हमेशा बढ़िया होता है।