स्वास्थ्य और बीमारियां

एलोपैथिक के मुकाबले होम्योपैथिक दवाओं का बच्‍चों पर ज्यादा असर, Research में हुआ खुलासा

अक्सर आपने देखा होगा कि जन्म के कुछ साल तक बच्चे काफी अधिक बीमार पड़ते हैं। यह आम बीमारियां सर्दी, बुखार, खांसी, सर्द-गर्म आदि होती हैं। अपने घर में या आसपास की दादी-नानी से कहते सुना होगा कि बच्चा बीमार होता है, इसे आप घरेलू इलाज से ही ठीक कर सकते हैं। साथ ही साथ वह एलोपैथिक दवा या बार-बार डॉक्टर को दिखाना भी बेवकूफी समझती हैं।

आपको जानकर हैरानी होगी कि हमारी दादी-नानी गलत नहीं थीं। उनकी कही बातें एकदम सही हैं, क्योंकि हाल ही में एक रिसर्च सामने आई जिसमें यह साफ कहा गया है कि दो साल से कम उम्र के बच्चों को होने वाली आम बीमारियों के लिए एलोपैथिक दवा और इलाज से ज्यादा अच्छा होम्योपैथिक इलाज है। यह दावा ‘यूरोपियन जर्नल ऑफ पीडियाट्रिक्स’ (European Journal of Pediatrics) में पब्लिश एक रिपोर्ट में कहा गया है।

एलोपैथिक दवा से ज्यादा अच्छी है होम्योपैथिक

रिसर्च में कहा गया कि ‘तेलंगाना के जीयर इंटीग्रेटेड मेडिकल सर्विसेज (JIMS) हॉस्पिटल के सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च इन होम्योपैथी (CCRH) के सहयोगी बाह्य रोगी विभाग के शोधकर्ताओं ने एक खास तरह का रिसर्च किया। यह रिसर्च उन्होंने जन्म से लेकर 24 महीने यानी 2 साल के 108 बच्चों पर रिसर्च किया। इस रिसर्च में उन्होंने उनकी स्वास्थ्य स्थिति की रिपोर्ट में शामिल की है, जैसे- बुखार, दस्त और सांस की नली में होने वाले इंफेक्शन जैसी विभिन्न तीव्र बीमारियों का इलाज होम्योपैथिक या पारंपरिक तरीके से इलाज किया गया था।

होम्योपैथिक ग्रुप में चिकित्सकीय रूप से संकेत मिलने पर पारंपरिक चिकित्सा इलाज जोड़ा गया था। रिसर्चर ने पाया कि होम्योपैथिक समूह के प्रतिभागियों ने पारंपरिक समूह की तुलना में 24 महीनों में काफी कम बीमार दिनों का अनुभव किया। समायोजन के बाद होम्योपैथिक समूह में बीमार दिनों की संख्या पारंपरिक समूह की तुलना में एक तिहाई थी। रिसर्च में कहा गया है कि होम्योपैथी के इलाज के मुख्य आधार के रूप में उपयोग करने से 24 महीने की अनुवर्ती अवधि में बच्चों में श्वसन संबंधी बीमारी के प्रकरण कम हुए।

एंटीबायोटिक के उपयोग को कम कर सकती है होम्योपैथी

रिसर्च के अनुसार, किसी भी समूह में कोई महत्वपूर्ण प्रतिकूल प्रतिक्रिया या मृत्यु नहीं देखी गई। होम्योपैथिक समूह के बच्चों में 14 बीमारी प्रकरणों के लिए एंटीबायोटिक्स की आवश्यकता थी, जबकि पारंपरिक समूह में 141 की आवश्यकता थी। शोधकर्ताओं ने कहा कि अध्ययन से पता चलता है कि होम्योपैथी एंटीबायोटिक के उपयोग को कम कर सकती है और पारंपरिक चिकित्सा सहायता के साथ चिकित्सा परिणामों में भी सुधार कर सकती है। उन्होंने आगे कहा कि नियमित पारंपरिक शिशु और बाल स्वास्थ्य सेवा के साथ होम्योपैथिक इलाज को एकीकृत करने से एंटीबायोटिक दवाओं का एक सुरक्षित प्रभावी और सस्ता विकल्प मिल सकता है।

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