अक्सर कहते हुए सुना होगा कि बच्चों को ज्यादा डांटना गलत है। मगर फिर भी कुछ लोग ऐसा करते हैं। पेरेंटस की डांट का नकारात्मक प्रभाव बच्चे के अंदर कई प्रकार के डिसऑर्डर का कारण साबित हो सकता है। वहीं कई बार माता पिता दोनों का वर्किंग होना भी बच्चे के अंदर मेंटल डिसऑर्डर की वजह बन सकता है।
बच्चे का मेंटल डिसऑर्डर
मेंटल डिसऑर्डर बच्चे के मस्तिष्क की एक ऐसी स्थिति है, जिसमें बच्चा हर समय चिड़चिड़ा, क्रैनकी और गुस्से में रहता है। हांलाकि पेरेंटस को बच्चों का ये व्यवहार सामान्य लग सकता है। मगर इसका उपचार आवश्यक है। ये एक ऐसे खतरे की घंटी है, जिसपर बच्चे का भविष्य निर्भर करता है। इस बारे में राजकीय मेडिकल कालेज हल्दवानी में मनोवैज्ञानिक डॉ युवराज पंत से जानते हैं कि ऐसे हालात में क्या किया जाए।
मेंटल डिसऑर्डर के लक्षण
मेंटल डिसऑर्डर के शिकार बच्चों में कुछ लक्षण पाए जाते हैं। इस बारे में ज्यादा जानकारी दे रहे हैं, डॉ युवराज पंत।
लर्निंग डिसऑर्डर
ऐसे बच्चों को पढ़ने और लिखने में भी परेशानी का सामना करना पड़ता है। न केवल रीडिंग करने में मुश्किलात का सामना करना पड़ता है बल्कि ऐसे बच्चे लिखना भी देर से शुरू करते हैं। बहुत से मामलों में देखा गया है कि बच्चे पेंसिल पकड़ने के लिए तैयार नहीं होते हैं।
अटेंशन डेफिसिट हाईपरएक्टिव डिसऑर्डर
अटेंशन डेफिसिट हाईपरएक्टिव डिसऑर्डर एक ब्रेन डिसऑर्डर है। इसमें बच्चा किसी भी चीज़ में ध्यान लगाने में असमर्थ होता है। वे हमेशा ही अलग व्यवहार करता है। पढ़ने में या खेलते वक्त भी उसमें एकाग्रता की कमी नज़र आती है।
ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर
ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर डिले स्पीच का एक मुख्य कारण साबित होता है। ऐसे बच्चे अपनी उम्र के हिसाब से चीजें पिक नहीं करते हैं। वे बोलने में अन्य बच्चों की तुलना में पिछड़ जाते हैं। हर वक्त दूसरों को सुनते और नोटिस करते हैं, मगर खुद बोलने का प्रयास नहीं करते।
कंडक्ट डिसऑर्डर
इस बीमारी में बच्चा हर काम अपनी मर्जी से करता है। उसका रवैया मनमाना हो जाता है। बच्चा हर काम उल्टा करने लगता है। इसके अलावा उल्टा जवाब देना और गाली गलौज भी करता है।
डिवेलपमेंट डिसऑर्डर
इसमें बच्चे का विकास रुक-रुक कर होता है। बच्चा डिवेलपमेंट माइलस्टोन से भटक जाता है। हर काम और एक्टिविटी देरी से करने लगता है।
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डरावने सपने आना
नींद में चलना, बातें करना और डरावनी सपने देखना मेंटल डिसऑर्डर को दर्शाता है। ऐसे बच्चे अक्सर सोने से कतराते हैं। उन्हें लगता है कि अगर हम सोऐंगे, तो वही डरावने सपने दोबारा हमारी आंखों के सामने से होकर गुज़रने लगेंगे। इसका कारण माता पिता का अनुचित व्यवहार भी हो सकता है। इसके अलावा दिनभर में देखने वाले कार्टून करेक्टर या फिल्में भी डरावनी सपनों का कारण साबित हो सकते हैं।
जल्दी इरीटेट हो जाना
बहुत से बच्चे ऐसे होते हैं, जो छोटी छोटी बातों का जल्दी बुरा मानने लगते हैं। अगर आपका बच्चा भी बात बात पर इरिटेट होने लगता है, तो इसका कारण माता पिता का व्यवहार हो सकता है। साथ ही ज्यादा स्क्रीन टाइम मिलने से भी बच्चे चिड़चिड़े हो जाते हैं। दरअसल, ज्यादा देर तक टीवी यां विडियो गेम खेलने से बच्चों का मानसिक स्तर धीरे धीरे गड़बड़ाने लगता हैं। इससे उनकी लर्निंग कपेसिटी भी कम होने लगती है।
ज्यादा बातचीत न करना
ऐसे बच्चे एकांत खोजने लगते हैं। वे दूसरों की संगति में बैठना और बातें करना कम कर देते हैं। बहुत बार घर में होने वाले छुट पुट झगड़े बच्चों के मन पर गहरा प्रभाव डालते है। इससे उनका मनोबल कमज़ोर पड़ने लगता है। वे घर से ज्यादा समय बाहर बिताना पसंद करने लगते हैं। बच्चों को हर वक्त डांटने डपटने से उनका कॉफिडेंस खत्म होने लगता है। नतीजन वे बात करने से कतराने लगते हैं।
हर क्षण थके थके रहना
बच्चों में एक ऐसा पावर टॉनिक होता है, जो दिनभर उनमें एनर्जी बनाए रखता है। मगर जो बच्चे मानसिक डिसऑर्डर का शिकार हो जाते हैं, वे हर दम अंदर ही अंदर खुद से एक जंग लड़ने लगते हैं। ज्यादा सोच विचार और खुद को कम आंकने के कारण वे हर काम से जी चुराने लगते हैं। अब वो हर काम को करने से पहले थकान का अनुभव करते हैं। इसके चलते वे पढ़ाई पर भी पूरी तरह से फोकस नहीं कर पाते हैं।
बच्चों में मानसिक बीमारी के जोखिम कारक
जेनेटिक कारण
मानसिक विकार जेनेटिक और पर्यावरणीय दोनों कारकों का परिणाम हैं। यदि परिवार में मेंटल हेल्थ संबंधी समस्याएं चल रही हैं या कोई मानसिक विकार से जूझ रहा है, तो ये माता-पिता से बच्चों में पहुंच सकता है। इस तरह के विकारों में ऑटिज्म, अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (एडीएचडी), बाइपोलर डिसऑर्डर और अवसाद, चिंता विकार और सिज़ोफ्रेनिया शामिल हैं।
साइकोलॉजिकल ट्रॉमा
कुछ मानसिक विकार साइकोलॉजिकल ट्रॉमा से उत्पन्न हो सकते हैं – जैसे इमोशनल, फिजिकल या सेक्सुअल अब्यूस। ट्रॉमा में विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रियाएं शामिल हो सकती हैं जैसे कि चिल्लाना या बिना वजह रोना, तीव्र भावनात्मक समस्याएं, अवसाद के लक्षण या एंग्जायटी, व्यवहार में बदलाव, दूसरों से संबंधित समस्याएं और शैक्षणिक कठिनाइयां।
तनाव शारीरिक परिवर्तन से संबंधित हो सकता है
किशोरावस्था में मानसिक स्वास्थ्य विकार एक महत्वपूर्ण समस्या है। बच्चों में मानसिक स्वास्थ्य विकार कुछ हद तक शारीरिक परिवर्तनों के तनाव से जुड़े होते हैं। जो बच्चे अपनी शारीरिक बनावट से नाखुश हैं, उनमें मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का खतरा काफी बढ़ जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि खुद को पसंद न करने का दबाव बढ़ा सकता है, जो तनाव में बदल सकता है।
पर्यावरणीय तनाव
बचपन में होने वाली मानसिक बीमारियां पर्यावरणीय तनाव की प्रतिक्रिया हो सकती हैं, जो एक नकारात्मक वातावरण को संदर्भित करता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई बच्चा बुलिंग या साथियों के दबाव का शिकार है, तो यह मानसिक तनाव का कारण बन सकता है।
अनिद्रा
अनिद्रा को कई मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जोड़ा गया है। उदाहरण के लिए एंग्जायटी, अवसाद, आचरण संबंधी समस्याएं और आक्रामकता। अनिद्रा मस्तिष्क की एकाग्रता क्षमता और स्मृति को प्रभावित करती है।
मानसिक बीमारी का इलाज
मनोचिकित्सा- मनोचिकित्सा, जिसे टॉक थेरेपी या व्यवहार थेरेपी के रूप में भी जाना जाता है। एक मनोवैज्ञानिक या अन्य मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर से बात करके मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को दूर करने का एक तरीका है। छोटे बच्चों के साथ मनोचिकित्सा में खेलने का समय या खेल शामिल हो सकता है। साथ ही खेलने के दौरान क्या होता है इसके बारे में भी बात की जा सकती है। मनोचिकित्सा के दौरान बच्चे और किशोर सीखते हैं कि विचारों और भावनाओं के बारे में कैसे बात करें। उन पर कैसे प्रतिक्रिया दें और नए व्यवहार और मुकाबला करने के कौशल कैसे सीखें।
दवाई- आपके बच्चे के डॉक्टर या मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर उपचार योजना के हिस्से के रूप में एक दवा की सिफारिश कर सकते हैं – जैसे कि उत्तेजक, अवसादरोधी, चिंता-विरोधी दवा, एंटीसाइकोटिक या मूड स्टेबलाइज़र। डॉक्टर दवा उपचार के जोखिमों, दुष्प्रभावों और लाभों के बारे में बताएंगे।