परवरिशपोषण

कितने साल तक बच्चों को कराएं ब्रेस्ट फीडिंग, डॉक्टर से जानें

छोटे और नवजात बच्‍चों के लिए मां का दूध संपूर्ण आहार होता है. ये बात आपने भी सुनी होगी. इसके बावजूद बहुत सारी माएं किन्‍हीं कारणों से बच्‍चे को कम से कम 6 महीने तक भी स्‍तनपान नहीं करातीं. ऐसे बच्‍चे या तो फॉर्मूला मिल्‍क फीडिंग करते हैं या गाय-भैंस के दूध से गुजारा करते हैं. लेकिन एक बार अगर आप मां के दूध के फायदे जान लेंगे तो कभी भी नवजात बच्‍चों के लिए मां के दूध की जगह कोई और विकल्‍प नहीं चुनेंगे क्‍योंकि ब्रेस्‍टफीडिंग करने वाले बच्‍चे फॉर्मूला या गाय-भैंस का दूध पीने वाले बच्‍चों की तुलना में शरीर ही नहीं बल्कि दिमाग से भी फौलादी होते हैं.

हैदराबाद की जानी मानी पीडियाट्रिशियन डॉ. शिवरंजनि संतोष नए-नए बनने वाले माता-पिता को यही बातें पिछले कई सालों से समझा रही हैं. जगह-जगह वर्कशॉप कर न केवल मांओं को बच्‍चों को ब्रेस्‍टफीड कराने का तरीका बता रही हैं, बल्कि इसके फायदे भी गिना रही हैं.

कितने साल तक कराएं ब्रेस्‍टफीड?

अगर आपको लगता है कि बच्‍चों को स्‍तनपान कराना 6 महीने तक जरूरी है, क्‍योंकि ऐसी सरकारी गाइडलाइंस हैं और डॉक्‍टर भी सलाह देते हैं तो यह पर्याप्‍त जानकारी नहीं है. डॉ. शिवरंजनि कहती हैं कि बच्‍चे को 6 महीने तक ब्रेस्‍टफीड कराकर रोकना नहीं चाहिए. कई स्‍टडीज के एनालिसिस के आधार पर आइडियली बच्‍चे को 2 साल या उससे ऊपर भी स्‍तनपान कराना अच्‍छा होता है. जो बच्‍चा मां का दूध जितना लंबी अवधि तक पीता है, उसके फायदे उसको मिलते हैं.

कितनी बार बच्‍चे को पिलाएं दूध?

डॉ. संतोष कहती हैं कि बच्‍चे को जितनी जरूरत हो, उतनी बार दिन में दूध पिलाएं. ऐसा नहीं है कि इसका कोई टाइम फ्रेम होता है. हालांकि फिर भी मांओं को समझाने के लिए 6 महीने तक हर दो से 3 घंटे में स्‍तनपान कराना चाहिए.

ब्रेस्‍ट फीड वाले बच्‍चे इन चीजों में रहते हैं आगे

डॉ. शिवरंजनि बताती हैं कि कई स्‍टडीज में देखा गया है कि मां का दूध पीने वाले बच्‍चे फॉर्मूला मिल्‍क पीने वाले बच्‍चों से 5 मामलों में बेहतर होते हैं..

संक्रमण प्रिवेंशन
मां का दूध बच्‍चे को कई तरह के संक्रमण जैसे कानों में इन्‍फेक्‍शन, कान बहना, गट रिलेटेड इन्‍फेक्‍शन से बचाता है. जबकि गाय या फॉर्मूला मिल्‍क पीने वाले बच्‍चों में ये शिकायतें आम हैं. ये बच्‍चे मां का दूध पीने वाले बच्‍चों की अपेक्षा ज्‍यादा बीमार रहते हैं.

डायरिया
जो बच्‍चे गाय-भैंस या फॉर्मूला दूध पीते हैं, वे बार-बार उल्‍टी-दस्‍त जैसी बीमारियों की चपेट में आते हैं. मौसम या पानी बदलने पर भी ये बीमारी से घिर जाते हैं. जबकि मां का दूध पीने वाले बच्‍चों के साथ ऐसा बहुत कम होता है.

अस्‍थमा
देखा गया है कि दमा या अस्‍थमा की समस्‍या बोतल से बाहरी दूध पीने वाले बच्‍चों में ज्‍यादा होती है. या फिर इन बच्‍चों में उम्र के किसी पड़ाव पर दमा जैसी बीमारी होने का चांस होता है. मां का दूध पीने वाले बच्‍चों को दमा की शिकायत इनकी अपेक्षा कम रहती है.

एलर्जी
बाहरी दूध पीने की वजह से बच्‍चे किसी न किसी प्रकार की एलर्जी के शिकार होते रहते हैं. कई बार ये एलर्जी जीवनपर्यन्‍त भी बनी रहती है. जबकि स्‍तनपान करने वाले बच्‍चों में एलर्जी की शिकायत कम देखी जाती है.

मां के साथ कनेक्‍शन
कई सर्वे और रिसर्च बताते हैं कि मां से ब्रेस्‍ट फीड करने वाले बच्‍चे जीवनपर्यन्‍त अपनी मां से ज्‍यादा जुड़े रहते हैं और इमोशनल होते हैं. जबकि फॉर्मूला दूध पीने वाले बच्‍चों में यह भावना कम पाई जाती है. इनका मां से जुड़ाव कम होता है.

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