चीन के AI साइंटिस्ट और क्लिनिकल रिसर्चर दोनों ने मिलकर पैंक्रियाटिक कैंसर के शुरुआती लक्षणों का पता लगाने के लिए एक स्क्रीनिंग मेथड तैयार किया है. इस नए स्क्रिनिंग मेथड से हर साल इस बीमारी से मरने वाले हजार से भी ज्यादा लोगों की जान बचाई जा सकती है.
पैंक्रियाटिक कैंसर उन खतरनाक कैंसरों में से एक है जिसके शुरुआती लक्षण का पता लगाना बेहद मुश्किल है. जब यह बीमारी थर्ड स्टेज में पहुंच जाती है तब इसका पता चलता है. यानी जब यह कैंसर अपने बेहद खतरनाक रूप में पहुंच जाती है तब इसका पता चलता है.
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क्यों कहा जाता है ‘किंग कैंसर’
चीनी साइंटिस्टों ने एक खास तरह के AI टूल्स का इस्तेमाल किया है जिसके जरिए पैंक्रियाटिक कैंसर जोकि एक खतरनाक और जानलेवा कैंसर है इसके शुरुआती लक्षणों की स्क्रीनिंग आसानी से की जा सकती है. पैंक्रियाटिक कैंसर को किंग कैंसर भी कहा जाता है क्योंकि दूसरे कैंसर की तुलना में इस कैंसर से पीड़ित लोगों के जिंदा रहने की दर 10 प्रतिशत से भी कम है. साल 2011 में एप्पल के को-फाउंडर स्टीव जॉब्स की जान भी इसी खतरनाक कैंसर ने ले ली थी. चीनी सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के चीफ वू जुन्यू भी इसी कैंसर से पीड़ित थे. जिनकी पिछले महीने मौत हो गई. पैंक्रियाटिक कैंसर से पीड़ित मरीजों की मृत्यु दर अधिक होने का कारण इसलिए भी अधिक है क्योंकि इसके शुरुआती लक्षणों का पता जल्दी चलता ही नहीं है. या यूं कहें कि काफी ज्यादा मुश्किल है.
शुरुआती लक्षणों का पता लगाना बेहद मुश्किल
जब किसी व्यक्ति को यह कैंसर हो जाए तो इसे फर्स्ट स्टेज में पता लगाना ही बेहद मुश्किल है. जब इसका पता चलता है यह बीमारी अपने थर्ड स्टेज में पहुंच जाता है. इस कैंसर को साइंटिस्ट कहते हैं कि यह कैंसर इतना ज्यादा खतरनाक है. मेयो क्लिनिक के अनुसार जब तक यह दूसरे ऑर्गन में न फैल जाए यह कैंसर लक्षण पैदा नहीं करता है. ‘टेक फर्म अलीबाबा ग्रुप’ की ‘डीएएमओ अकादमी’ के एआई साइंटिस्ट और शंघाई इंस्टीट्यूशन ऑफ पैंक्रियाटिक डिजीज सहित हॉस्पिटलों के साइंटिस्ट ने मिलकर एक खास तरह के टेक्नोलॉजी बनाया है जिसे इस खतरनाक कैंसर को उसके फर्स्ट स्टेज में ही पता लगाया जा सकता है.
फर्स्ट स्टेज में की जा सकती है स्क्रीनिंग
मॉडल एआई एल्गोरिदम के साथ एक गैर-कंट्रास्ट कंप्यूटेड टोमोग्राफी (सीएटी) स्कैन को जोड़ता है. सोमवार को एक मैगजीन ‘नेचर मेडिसिन’ द्वारा प्रकाशित एक पेपर के जरिए टीम ने कहा कि प्रारंभिक स्क्रीनिंग मॉडल की विशिष्टता 99.9 प्रतिशत तक पहुंच गई, जिसका अर्थ है कि प्रत्येक 1,000 परीक्षणों में केवल एक गलत-सकारात्मक मामला है. पैंक्रियाटिक कैंसर ट्यूमर का पता लगाने की क्षमता, 92.9 प्रतिशत तक पहुंच सकती है, जो औसत रेडियोलॉजिस्ट प्रदर्शन को 34.1 प्रतिशत से अधिक कर देती है.पेपर को रिव्यू करने वाले एसोसिएट प्रोफेसर, ली रुइजियांग जोकि स्टैनफोर्ड स्कूल ऑफ मेडिसिन में विकिरण ऑन्कोलॉजी में कार्यरत है उन्होंने कहा कि इससे यह हम कह सकते हैं कि पैंक्रियाटिक कैंसर की दिशा में एक महत्वूपर्ण कदम उठाया जाता है.
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चाइनीज एकेडमी ऑफ मेडिकल साइंसेज के कैंसर अस्पताल के एक डॉक्टर ने नाम बताने से इनकार करते हुए कहा कि फिर भी एआई-आधारित इमेजिंग एप्लीकेश्न्स को चीनी ऑथरिटी मंजूरी नहीं देती है. इसलिए जब इसके शुरुआती परिणाम का इंतजार करना होगा. इसलिए अभी लंबा रास्ता तय करना है.
हर साल हो रहीं हजारों मौतें
टीम द्वारा बनाया गया फर्स्ट स्टेद स्क्रीनिंग मॉडल पैंक्रियाटिक कैंसर डक्टल एडेनोकार्सिनोमा (पीडीएसी) के लिए तैयार किया गया है, जो पैंक्रियाटिक कैंसर का सबसे आम टाइप्स में से एक है, जो सभी मामलों में 95 प्रतिशत से अधिक के लिए जिम्मेदार है. पीडीएसी के कारण दुनिया भर में हर साल लगभग 466,000 मौतें होती हैं.
डेटा काफी हैरान करने वाले
संयुक्त राज्य अमेरिका में पैंक्रियाटिक कैंसर अब पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए कैंसर से संबंधित मौतों का चौथा प्रमुख कारण है. डेटा के मुताबिक साल 2030 तक देश में कैंसर से होने वाली मौतों का दूसरा प्रमुख कारण होगा. यूएस नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (एनआईएच) द्वारा अप्रैल में पब्लिश रिपोर्ट के मुताबिक साल 2000 और 2019 के बीच आयु-मानकीकृत कैंसर की घटनाओं, जीवित रहने और मृत्यु दर के रुझानों को देखा गया, पाया गया कि अग्नाशय के कैंसर से मृत्यु दर लगातार बढ़ रही है – 0.2 प्रतिशत 2006 से 2019 तक हर साल.