प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं को कई टेस्ट से गुजरना पड़ता है, ताकि उनके गर्भ में पल रहे बच्चे की सही तरीके से देखभाल की जा सके. पहले के जमाने में गर्भवती महिलाओं को डॉक्टर के पास तबीयत बिगड़ने पर ले जाया जाता था, लेकिन अब प्रेग्नेंसी शुरू होने के बाद समय-समय पर स्कैन और अन्य टेस्ट किए जाते हैं. प्रेग्नेंसी से पहले, प्रेग्नेंसी के दौरान और प्रेग्नेंसी के तुरंत बाद महिला व उसके बच्चे की स्पेशल देखभाल को फीटल मेडिसिन कहा जाता है. इसे पेरिनेटोलॉजी भी कहा जाता है. यह मेडिकल की स्पेशल ब्रांच होती है, जिसमें डॉक्टर्स गर्भ में पल रहे शिशु की देखभाल करते हैं. खासतौर से हाई रिस्क प्रेग्नेंसी में फीटल मेडिसिन के जरिए मां और बच्चे को किसी भी खतरे से बचाने की कोशिश की जाती है.
दिल्ली के ग्रेटर कैलाश स्थित फोर्टिस ला फेम हॉस्पिटल की फीटल मेडिसिन स्पेशलिस्ट डॉ. विधि हाथी के मुताबिक प्रेग्नेंट महिला और उसके गर्भ में पल रहे शिशु की विशेष देखभाल करने के लिए फीटल मेडिसिन एक्सपर्ट अन्य डॉक्टर्स के साथ मिलकर काम करते हैं. पिछले कुछ सालों में देश में फीटल मेडिसिन का दायरा बढ़ा है. फीटल मेडिसिन एक्सपर्ट गर्भावस्था के दौरान स्पेशल अल्ट्रासाउंड स्कैन और अन्य टेस्ट करते हैं और हाई रिस्क प्रेग्नेंसी की देखभाल में मार्गदर्शन प्रदान करते हैं. अल्ट्रासाउंड, जेनेटिक और ब्लड स्क्रीनिंग टेस्ट के जरिए प्रेग्नेंसी के पहले हिस्से में ही गर्भवती और उसके शिशु की ज्यादातर देखभाल की जा सकती है. इस दौरान अगर कोई कॉम्प्लिकेशन आती है, तो वक्त रहते उसका पता लगाया जा सकता है. इन परेशानियों का स्पेशल ट्रीटमेंट भी किया जा सकता है.
Also Read – ऑनलाइन बुलीइंग बन रहा चिंता का विषय, एक्सपर्ट से जानें कैसे करें बचाव
डॉक्टर की मानें तो महिलाओं में प्रेग्नेंसी रिस्क प्रोफाइल को निर्धारित करने के लिए फीटल मेडिसिन एक्सपर्ट कई स्क्रीनिंग टेस्ट कराते हैं. इससे गर्भावस्था में सामान्य क्रोमोसोम संबंधी डिसऑर्डर की जांच हो जाती है. इनमें डुअल मार्कर टेस्ट, क्वाड्रपल मार्कर टेस्ट और नॉन-इनवेसिव प्रीनेटल टेस्ट शामिल हैं. ऐसे टेस्ट भी शामिल हैं, जिससे यह पता चलता है कि क्या गर्भावस्था में मां को हाई ब्लड प्रेशर का जोखिम है या नहीं. इसे प्रीक्लेम्पसिया स्क्रीनिंग टेस्ट कहा जाता है. यह टेस्ट गर्भावस्था के 11 से 13 सप्ताह के बीच पहले ट्राइमेस्टर स्कैन के बाद होते हैं. एक बार टेस्ट का परिणाम आने के बाद अन्य डायग्नोस्टिक टेस्ट जैसे कि कोरियोनिक विलस सैंपलिंग या एमनियोसेंटेसिस या प्रीक्लेम्पसिया जोखिम को कम करने के लिए आगे का प्लान बनाया जाता है.
फीटल मेडिसिन एक्सपर्ट अल्ट्रासाउंड स्कैन करते हैं, जैसे लेवल 1 स्कैन (गर्भावस्था के 11 सप्ताह और 13 सप्ताह के बीच), लेवल 2 स्कैन (गर्भावस्था के 18 और 22 सप्ताह के बीच), फीटल इकोकार्डियोग्राफी (अजन्मे शिशु के हार्ट का मूल्यांकन), फीटल न्यूरोसोनोग्राफी ( अजन्मे शिशु के मस्तिष्क का मूल्यांकन), शिशु के अंग प्रणालियों का विस्तृत मूल्यांकन, भ्रूण के विकास का आंकलन आदि. हाई रिस्क वाली प्रेग्नेंसी में फीटल मेडिसिन विशेषज्ञ गर्भ में पल रहे शिशुओं की देखभाल और निगरानी भी करते हैं. फीटल मेडिसिन विशेषज्ञ कोरियोनिक विलस सैंपलिंग, एमनियोसेंटेसिस, फीटल ब्लड सैंपलिंग और फीटल ब्लड ट्रांस्फ्यूजन जैसी प्रक्रियाएं भी करते हैं. फीटल थेरेपी और उपचार की मदद से जुड़वा बच्चों में प्लेसेंटा यानी गर्भनाल से जुड़ी जटिलताओं का इलाज किया जा सकता है. इसमें जरूरत पड़ने पर फीटल मेडिसिन विशेषज्ञ रेडियोफ्रीक्वेंसी, लेजर थेरेपी प्रक्रियाओं का भी उपयोग करते हैं.