डाइट और फिटनेसपोषण

शाकाहारी लोगों के लिए बेहद लाभकारी है यह दाल, 4000 साल पुराना है इतिहास

भारत में शाकाहारी लोगों की संख्या अधिक है. वे अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए ऐसा आहार लेते हैं जो शरीर को फिट रखता है और जरूरी पोषक तत्वों की सप्लाई भी करता है. ऐसे आहार में मसूर की दाल बहुत लाभकारी होती है. एक्सपर्ट मानते हैं कि मसूर की दाल का नियमित सेवन किया जाए तो यह शरीर को कई बीमारियों से दूर रखती है.

इस तरह से पकाने से मिलेगा काफी फायदा

पूरी दुनिया में जितनी भी दालें हैं, उनमें मसूर की दाल ऐसी है जो जल्दी पक जाती है. अगर इस दाल के पोषक तत्वों को पूरी तरह से पाना है तो पकाने से पहले इसे कुछ देर तक पानी में भिगों दें. ऐसा करने से यह पूरी तरह शुद्ध हो जाएगी और शरीर को आवश्यक विटामिन्स व मिनरल्स देगी. न्यूट्रिशियन कंसलटेंट कहते हैं कि इस दाल में कोर्बोहाइड्रेट, फाइबर, प्रोटीन के अलावा आयरन, कैल्शियम, मैग्नीशियम व अन्य पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं.

यह दाल दो प्रकार की होती है एक छिलके वाली काली दाल और दूसरी बिना छिलके वाली लाल दाल. गोश्त के साथ पकाने में इस दाल का स्वाद और गुण बढ़ जाते हैं. जाने-माने शायर मिर्जा ग़ालिब अपने भोजन में शामिल जिस दाल-गोश्त की तारीफ की है, उसमें यही दाल शामिल है.

मसूर की दाल एनीमिया में बहुत फायदेमंद

यह दाल ब्लड में मौजूद रेड सेल्स को बढ़ाती है जो एनीमिया में काफी फायदा मिलता है. फूड एक्सपर्ट व कंसलटेंट नीलांजना सिंह कहती हैं कि इस दाल में फोलेट पाया जाता है जो विटामिन-B का रूप है और यह ब्लड में रेड सेल्स बढ़ाने में मददगार है. इसका लाभ यह भी है कि शरीर में रक्त की क्वॉलिटी बनी रहती है और एनीमिया से बचाव होता है. ब्लड की यही क्वॉलिटी हार्ट को भी स्वस्थ बनाए रखती है. उसका कारण यह है कि फोलेट ब्लड की धमनियों की दीवारों को होने वाले नुकसान से बचाने में सहायक है. जिससे हार्ट से जुड़ी समस्याओं का खतरा कम हो जाता है. प्रगनेंट लेडी के लिए भी लाल दाल को बेहद लाभकारी माना जाता है. इस दाल में मौजूद फाइबर व मैग्नीशियम भी पूरे शरीर में रक्त, ऑक्सीजन और पोषक तत्वों के प्रवाह में सुधार करते हैं.

वजन को कंट्रोल रखने में कारगर

वजन को कंट्रोल रखने में भी यह दाल काफी कारगर है. इस दाल में फाइबर और प्रोटीन जैसे पोषक तत्व लंबे समय तक पेट भरा हुआ महसूस कराते रहते हैं, जिससे अतिरिक्त भोजन की इच्छा नहीं होती. यह दाल डाइजेशन सिस्टम को भी सुधारने में मददगार है. अगर कब्ज नहीं होगा और पाचन सिस्टम दुरुस्त रहेगा तो वजन बढ़ने की संभावना घट जाती है. इससे शरीर के इम्यूनिटी सिस्टम में लगातार सुधार होता रहेगा. मसूर की दाल में मौजूद विशेष प्रोटीन शरीर की प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाता है, साथ ही संक्रमण को भी रोकता है.

क्या कहती है रिसर्च

  • इस दाल में मौजूद मिनरल्स दिमाग के नर्वस सिस्टम को कूल रखते हैं और उन्हें बिगड़ने से भी बचाते हैं. बढ़ती उम्र में तो इस दाल का सेवन दिमाग के लिए बेहद लाभकारी माना जाता है.
  • रिसर्च कहती है कि इस दाल को मसल्स व दिमाग के लिए भी लाभकारी माना जाता है. लाल दाल का सेवन बेड कोलेस्ट्रॉल को रोकने में भी मदद करता है. इस दाल में मौजूद प्रोटीन मसल्स को मजबूत बनाने और उनमें लगातार पोषकता पहुंचाने में कारगर माना जाता है.
  • इस दाल में हाइपोकोलेस्टेरोलेमिक भी पाया जाता है जो बेड कोलेस्ट्रॉल को रोकने में प्रभावी है. ऐसा होने से ब्लड प्रेशर भी कंट्रोल में रहता है.
  • ऊपरी तौर पर यह दाल स्किन के लिए लाभकारी है. ब्यूटी एक्सपर्ट मसूर की दाल से बने पैक को स्किन व चेहरे के लिए लाभकारी मानते हैं. उसका कारण यह है कि यह दाल स्किन को फंगल व संक्रमण से बचाने में मददगार है. मसूर की दाल का सेवन स्किन का ग्लो भी बढ़ाए रखता है. वह इसलिए कि इसमें पाए जाने वाले विटामिन्स व मिनरल्स स्किन के नीचे के सेल्स को लगातार मजबूत बनाए रखने में मदद करते हैं.
  • यह बालों को भी हेल्दी बनाने में भूमिका निभाती है. यह कार्य इस दाल में मौजूद प्रोटीन और एंटीऑक्सीडेंट करते हैं. ये बालों को जड़ों से मजबूत बनते हैं, जिससे उनके झड़ने का खतरा कम हो जाता है.

दाल का इतिहास और सफर

पूरी दुनिया में जितनी भी प्रकार की दालें पाई जाती हैं, उनमें मसूर की दाल की उत्पत्ति वर्षों पुरानी मानी जाती है. भारत के प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में भी इसका वर्णन है, लेकिन उनसे पहले भी दुनिया की हिस्ट्री में इस दाल का जिक्र मिलता है. एक अमेरिकी रिसर्च के मुताबिक, यह दाल करीब 12,000 वर्ष पूर्व फर्टाइल क्रेसेंट रीजन (मध्य-पूर्व क्षेत्र) में सबसे पहले पैदा हुई, उसके बाद फिर 5000 और 4000 ईसा पूर्व के बीच इसकी खेती ईस्ट में जॉर्जिया चली गई और अंत में 2000 ईसा पूर्व के आसपास भारतीय क्षेत्र में पहुंच गई.

पुरातात्विक साक्ष्य के अनुसार, भारतीयों ने शुरुआती हड़प्पा काल से मसूर की दाल को अपना लिया था. भारत के आयुर्वेदिक ग्रंथ ‘चरकसंहिता’ में इस दाल (मसूराश्च) की जानकारी है और इसे शीतल, मधुर और रूखापन पैदा करने वाली कहा गया है. ग्रंथ के अनुसार पित्त-कफ दोष में इसका सूप बहुत लाभकारी है. आज यह दाल पूरी दुनिया में खाई जाती है.

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