ब्रिटेन स्थित प्लायमाउथ विश्वविद्यालय ने शुक्रवार को बताया कि एचआईवी (मानव इम्यूनो डिफिसिएन्सी वायरस) और एड्स (अधिग्रहित इम्युनोडिफीसिअन्सी सिंड्रोम) से निपटने के लिए विकसित दवाओं का पहली बार मस्तिष्क ट्यूमर वाले कई मरीजों पर परीक्षण किया जा रहा है।
ब्रेन ट्यूमर रिसर्च सेंटर ऑफ एक्सीलेंस विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक एक परीक्षण के जरिए यह जानने का प्रयास कर रहे हैं कि क्या एंटी-रेट्रोवायरल रिटोनावीर और लोपिनवीर जैसी दवाओं का उपयोग न्यूरोफाइब्रोमैटोसिस 2 से पीड़ित लोगों की मदद के लिए किया जा सकता है। इन्हेरीटेड जेनेटिक कंडीशन के कारण श्वाननोमा (जिसमें ध्वनिक न्यूरोमा शामिल है) ईपेंडीमोमा और मेनिंगिओमा जैसे ट्यूमर उत्पन्न होते हैं। यह मस्तिष्क के चारों ओर की झिल्ली पर विकसित होते हैं।
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परीक्षण का नेतृत्व कर रहे प्रोफेसर ओलिवर हैनिमैन ने कहा, ”जेनेटिक रोगियों के लिए यह एनएफ2 से संबंधित ट्यूमर के लिए प्रणालीगत उपचार की दिशा में पहला कदम हो सकता है, जिनमें कई ट्यूमर विकसित हो जाते हैं। साथ ही उन रोगियों के लिए भी जिनमें एक बार एनएफ2 म्यूटेशन हुआ है और परिणामस्वरूप इनमें ट्यूमर विकसित हो गया है।”
‘यदि शोध सफल होता है तो बड़ी उपलब्धि होगी
उन्होंने कहा, ”यदि शोध सफल होता है और परिणाम सकारात्मक होते हैं तो यह उन स्थिति वाले रोगियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण बदलाव होगा जिनके लिए अब तक कोई प्रभावी उपचार नहीं है।” एक साल तक चलने वाले इस परीक्षण के दौरान मरीजों को दोनों दवाओं के साथ 30 दिनों के उपचार से पहले ट्यूमर बायोप्सी और रक्त परीक्षण से गुजरना होगा।
शोधकर्ताओं ने बताया कि इसके बाद उन्हें एक और बायोप्सी और रक्त परीक्षण से गुजरना होगा, ताकि यह पता लगाया जा सके कि दवा का संयोजन ट्यूमर कोशिकाओं में प्रवेश करने में कामयाब रहा है या नहीं और उसका कोई प्रभाव बीमारी पर पड़ा है या नहीं।