World Hemophilia Day : कितना जानलेवा है Hemophilia? Lucknow के SGPGI Expert से समझें इस बारे में

शरीर में चोट लगने या कहीं कट जाने पर खून निकलता है, हालांकि कुछ ही समय के भीतर खून निकलना बंद भी हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है कि क्योंकि हमारा शरीर ऐसी स्थिति में खून का थक्का बना देता है जिससे कि ज्यादा खून न बहने पाए। पर क्या हो अगर किसी के शरीर में खून का थक्का ही न बने? तब ऐसी स्थिति में छोटे से कट से भी भारी मात्रा में खून बह सकता है जिससे शरीर पर कई प्रकार के दुष्प्रभाव हो सकते हैं। इस स्थिति को हीमोफीलिया कहा जाता है।
हीमोफीलिया एक दुर्लभ विकार है जिसमें शरीर में ब्लड क्लॉटिंग ही नहीं हो पाती है क्योंकि ऐसे रोगियों में रक्त का थक्का जमाने वाले प्रोटीन की कमी हो जाती है। जिन लोगों को हीमोफीलिया है उन्हें अधिक रक्तस्राव का खतरा रहता है। इसके अलावा आंतरिक रक्तस्राव आपके अंगों और ऊतकों को नुकसान पहुंचा सकती है जिसे जीवन के लिए खतरा माना जाता है।
हीमोफीलिया की समस्या के बारे में लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से और रक्तस्राव विकारों से प्रभावित लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए, अपना जीवन समर्पित करने वाले फ्रैंक श्नाबेल की याद में हर साल 17 अप्रैल को वर्ल्ड हीमोफीलिया डे मनाया जाता है। हीमोफीलिया के बारे में हमने आपको पिछले अंक में बताया था, अब बारी आती है एक्सपर्ट सलाह की, एक्सपर्ट के रूप में आरोग्य इंडिया प्लेटफोर्म से जुडी हैं डॉ शुभा फड़के। बता दें कि डॉ शुभा लखनऊ स्थित SGPGI में Department of Medical Genetics की हेड हैं, उन्हीं से जानते हैं इस बीमारी से जुड़ी तमाम जानकरियों के बारे में…
डॉ शुभा बताती हैं कि हीमोफीलिया एक जेनेटिक बीमारी है। हमारे शरीर के जीन्स ये जानकारी रखते हैं कि खून कैसे बनेगा, आंख कैसे बनेगी, नाक कैसे बनेगी। हीमोफीलिया फैक्टर 8 और 9 की खराबी से हो सकता है मतलब इन फैक्टर्स की कमी के कारण ये बीमारी होती है। छोटी-मोटी चोट में भी अधिक खून बहने से जोड़ों को नुकसान होता है और कई अन्य दिक्कतें भी हो सकती हैं। यह बीमारी जन्म से होती है और जीवन भर रहती है।
वर्तमान समय में इस बीमारी के ग्राफ में बढ़ोतरी हुई है। इस बीमारी को लेकर समाज में कितनी जागरूरकता है? डॉ शुभा से जानते हैं…
इस बीमारी का ग्राफ तो नहीं बढ़ रहा है क्योंकि इलाज के लिए उचित सुविधा और विशेषता उपलब्ध है। साथ ही सरकार की तरफ से फ्री में इलाज मिलता है। लोगों में बीमारी को लेकर जागरूकता हो गई है, जिससे इसका निदान आसानी से होने लगा है।
इस बीमारी को लेकर सरकार ने क्या पहल की है? सरकारी सुविधाएँ कौन-कौन सी उपलब्ध हैं? इसको भी जान लीजिए…
पिछले 10-15 सालों से हीमोफीलिया बीमारी के लिए सरकार से मदद मिलने लगी है। सरकार ने बहुत सालों पहले से ही एनएचएम की तरफ से संजय गांधी, पीजीआई, केजीएमसी, कुछ अस्पतालों को फंड देना शुरू किया। जिससे इलाज के लिए आवश्यक फैक्टर्स खरीदे जा सकते हैं। पहले इलाज था लेकिन महंगा होने के कारण लोगों को नहीं मिल पाता था, पर अब इन मरीजों का अच्छे से इलाज हो सकता है।
किस-किस स्तर पर हम हीमोफीलिया को डिडेक्ट कर सकते हैं? यह भी जान लीजिए.,..
इस बारे में डॉ शुभा बताती हैं कि हमारा जेनेटिक्स विभाग पिछले 30 सालों से काम कर रहा है और हीमोफीलिया, थैलेसीमिया, डिशन मस्कुलर डिस्ट्रोफीज और अभी सैकड़ों बीमारियों के लिए पेट के बच्चे में देखा जा सकता है। अब हम हर प्रेग्नेंसी में हर बच्चे को पेट से सैंपल निकालकर नहीं देखेंगे। लेकिन ये आवश्यक है कि जिस परिवार में हीमोफीलिया के बच्चे का जन्म हुआ है। उनको हम तुरंत परामर्श जानकारी देते हैं कि अगर आपके परिवार में अगली बार महिला प्रेग्नेंट होती है तो उसके पेट के बच्चे में टेस्ट कर बता देंगे कि बच्चे में हीमोफीलिया है या नहीं।