स्वास्थ्य और बीमारियां

अब AI करेगा Ayurvedic Treatment, तरीका होगा कुछ इस तरह खास

अब आयुर्वेद पद्धति से इलाज में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक मददगार साबित हो रही है। एआइ के जरिये न केवल इलाज बल्कि ट्रेनिंग और रिसर्च में भी उपयोग किया जा रहा है। जोरावर सिंह गेट स्थित राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान में AI तकनीक के जरिए मरीजों को लाइफस्टाइल में बदलाव के तरीके, रोगों से बचने के उपाय और डाइट प्लान जैसी जानकारियां भी उपलब्ध करवाई जा रही हैं। डेटा संकलन में भी इसकी भूमिका बताई जा रही है।

राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान के कुलपति प्रोफेसर संजीव शर्मा के अनुसार, संस्थान में प्रदेश की पहली एडवांस सियुलेशन लैब स्थापित है, जो पूरी तरह से AI बेस्ड है। इसमें महिला-पुरुष, नवजात व बालक की कुल पांच सियुलेटर डमी हैं। आयुर्वेद चिकित्सा के छात्र प्रशिक्षण के लिए उनका प्रयोग करते हैं। खास बात यह है कि सियुलेटर मानव शरीर की तरह सांस लेने की प्रक्रिया से गुजरता है। उसके दिल की धड़कन महसूस की जा सकती है। साथ ही डमी की नब्ज भी चलती है। उसमें रक्त के स्थान पर विशेष प्रकार का लूड होता है।

इस पर आयुर्वेद चिकित्सक और छात्र एंडोस्कोपी, आर्थोस्कोपी, लैप्रोस्कोपी, इको कार्डियोग्राफी और अल्ट्रासाउंड के प्रयोग करके देख सकते हैं। डमी के माध्यम से ट्रोमा व प्रसव प्रक्रिया का प्रशिक्षण दिया जाता है। साथ ही उन्हें हार्ट, किडनी, लिवर समेत कई अंगों की बीमारियों के लक्षण, इलाज के बारे में जानकारी उपलब्ध करवाई जाती है।

AI की मदद से आयुर्वेद स्कॉलर्स को हेडसेट लगाकर टीवी स्क्रीन पर मरीज के फेफड़े, किडनी, हृदय का आकार और प्रभाव के बारे में बताया जाता है। साथ ही सर्जरी व उसके इलाज के बारे में जानकारी दी जाती है। क्रिया शरीर विभाग के सहायक आचार्य डॉ. भानुप्रताप सिंह ने बताया कि यह पूरा प्रोग्राम वर्चुअल होता है।

प्रकृति कियोस्क: यहां तीन AI आधारित कप्यूटराइज्ड कियोस्क हैं। इसमें व्यक्ति को 20 सवालों के जवाब देने होते हैं। जो मानसिक, शारीरिक, आचरण, जीवनशैली और डाइट से संबंधित होते हैं। उससे प्राप्त रिपोर्ट के आधार पर किसी व्यक्ति या मरीज की डाइट तय की जा सकती है। शरीर-क्रिया विभाग के सह आचार्य डॉ. महेंद्र प्रसाद ने बताया कि कियोस्क से प्राप्त रिपोर्ट से भविष्य में व्यक्ति को किन-किन बीमारियों का खतरा है उससे भी सचेत किया जाता है।

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