ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) में बोलने में देरी: एक स्पीच लैंग्वेज पैथोलॉजिस्ट की भूमिका और समझ

द्वारा:-

BASLP (National institute of empowerment with person with multiple disabilities)
The Hope Rehabilitation and Learning Center, Lucknow
Autism Spectrum Disorder: ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) एक न्यूरो-डेवलपमेंटल विकार है जिसमें बच्चे की सोचने, समझने, सामाजिक जुड़ाव और संवाद करने की क्षमता प्रभावित होती है। ASD से ग्रस्त बच्चों में अक्सर भाषा और वाणी के विकास (Speech and Language Development) में देरी देखी जाती है। Speech-Language Pathologist (SLP) का काम इन बच्चों का मूल्यांकन (assessment), निदान (diagnosis), और उपचार (intervention) करना होता है। इस लेख में हम ASD में स्पीच डिले को विस्तार से समझेंगे, और साथ ही कुछ केस उदाहरण भी साझा करेंगे जो हमने अपने क्लीनिकल प्रैक्टिस में अनुभव किए हैं।

ऑटिज़्म में स्पीच और लैंग्वेज से जुड़ी समस्याएं
Receptive Language Delay – समझने में देरी: हमारे पास एक केस आया था जिसमें बच्चा नाम पुकारे जाने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देता था। शुरू में माता-पिता को संदेह था कि उसे सुनाई नहीं देता, लेकिन ऑडियोलॉजिकल रिपोर्ट नार्मल थी। बाद में मूल्यांकन से पता चला कि बच्चा संप्रेषण संकेतों (communication cues) को समझ नहीं पा रहा था, यानी उसकी receptive language क्षमता कमजोर थी।
Expressive Language Delay – बोलने में देरी: एक अन्य केस में बच्चा 4.5 साल का था लेकिन केवल 4-5 शब्द ही बोल पाता था, वो भी उद्देश्य के बिना। ज़रूरत या भावना बताने के लिए वह रोने या खींचने का सहारा लेता था। थैरेपी के दौरान expressive vocabulary पर काम किया गया और कुछ ही महीनों में बच्चा 2-3 शब्दों के वाक्य बोलने लगा।
Pragmatic Language Difficulty – सामाजिक भाषा की कमी: एक केस में बच्चा साधारण वाक्य बोल सकता था, लेकिन बातचीत शुरू नहीं करता था और ना ही सवालों का जवाब देता था। वह अपने पसंदीदा टीवी डायलॉग्स दोहराता रहता था, लेकिन सामाजिक स्थिति में भाषा का इस्तेमाल नहीं कर पाता था।

ASD में स्पीच डिले के कारण
संवेदी प्रोसेसिंग की समस्या (Sensory Processing Issues): एक बच्ची को जब ग्रुप में बैठाया जाता, तो वह अपने कान बंद कर लेती थी और ज़मीन पर लेट जाती थी। यह देखा गया कि वह तेज़ आवाज़ों को सहन नहीं कर पा रही थी। इस वजह से वह बातचीत के माहौल से कट जाती थी और भाषा नहीं सीख पा रही थी।
संयुक्त ध्यान की कमी (Joint Attention Deficit): एक और केस में जब मां किसी खिलौने की तरफ इशारा करके बच्चे को बुलाती, तो वह कभी उस दिशा में नहीं देखता था। उसकी नज़र और मां की नज़र का तालमेल नहीं बैठता था। यह संयुक्त ध्यान की कमी को दर्शाता था – जो भाषा सीखने के लिए अत्यंत आवश्यक है।

SLP क्या करता है?
विस्तृत मूल्यांकन (Assessment): हमारे पास एक 4 साल के बच्चे का केस आया, जो न तो कोई शब्द बोल रहा था, और न ही निर्देश समझता था। SLP ने उसका receptive और expressive स्कोर निकाला – जो क्रमशः 18 महीने और 12 महीने के बराबर थे। इसके आधार पर individualized therapy plan (ITP) तैयार किया गया।
AAC का उपयोग (AAC Tools Use): एक बच्चा जो पूरी तरह non-verbal था, उसे चीखकर या वस्तुएं फेंककर अपनी ज़रूरतें जतानी पड़ती थीं। उसे PECS (Picture Exchange Communication System) सिखाया गया। कुछ ही हफ्तों में वह अपनी पसंद की चीज़ों को कार्ड्स के ज़रिए मांगने लगा।
पेरेंट ट्रेनिंग और होम प्लान: एक बच्ची थैरेपी में अच्छा कर रही थी, लेकिन घर पर प्रोग्रेस रुक जाती थी। SLP ने माता-पिता को एक डेली होम प्लान दिया जिसमें structured play और repetition activities शामिल थीं। 6 हफ्तों में ही बच्ची ने 25-30 नए शब्द सीख लिए।
ASD में थैरेपी के लक्ष्य (Goals of Therapy)
एक केस में सबसे पहला टारगेट था – बच्चा आंख से आंख मिलाकर देखे और नाम पुकारने पर प्रतिक्रिया दे। एक और केस में फोकस किया गया functional शब्दों जैसे “दे दो”, “ले लो”, “खाना” को बोलने पर। एक बच्चा जो बातचीत शुरू नहीं करता था, उसके साथ “hello”, “bye”, और “thank you” जैसी social greetings सिखाई गईं।
कब थैरेपी शुरू करनी चाहिए?
हमारे पास एक केस आया था जिसमें बच्चा 2 साल का था, लेकिन कोई भी शब्द नहीं बोलता था। माता-पिता ने पहले “देखेंगे धीरे-धीरे खुद बोलने लगेगा” सोचकर समय गंवा दिया। जब SLP की देखरेख में early intervention शुरू हुआ, तब 3 महीने में ही बच्चे ने 10-12 functional शब्द बोलना शुरू कर दिए। ऑटिज़्म में स्पीच डिले केवल देर से बोलने तक सीमित नहीं होता। यह बच्चे के पूरे संप्रेषण तंत्र (communication system) को प्रभावित करता है – जिसमें समझना, ज़रूरत जताना, और सामाजिक रूप से प्रतिक्रिया देना शामिल होता है। एक SLP का उद्देश्य केवल बच्चा ‘बोले’ नहीं, बल्कि वह ‘सार्थक संवाद’ करे – चाहे वह बोलकर हो या किसी विकल्प माध्यम (AAC) से।
