2-3 साल का होने के बावजूद नहीं बोलता आपका बच्चा?, कारण और समाधान जान लीजिए

अगर आपका बच्चा भी दो से तीन साल की उम्र का हो गया है और इस समय भी वह बोलने या संवाद करने में असमर्थ है तो आपको सावधान हो जाना चाहिए। आमतौर पर इस उम्र तक बच्चे करीब 200 शब्दों की शब्दावली विकसित करने के बाद छोटे-छोटे वाक्यांशों का उपयोग करते हैं, जैसे “मम्मा आओ”, “दूध दे दो”, या “पानी चाहिए”। यदि इस उम्र तक बच्चा बोलना शुरू नहीं करता है या संवाद नहीं कर पा रहा है तो यह चिंता का विषय हो सकता है और इसके संभावित कारणों की पहचान करना ज़रूरी हो जाता है।
सुनने में समस्या (Hearing Issues)
सबसे पहला कारण यह हो सकता है कि बच्चे को सुनने में कठिनाई हो रही हो। यदि बच्चा ठीक से नहीं सुन पा रहा है तो वह बोलना भी नहीं सीख पाएगा। ऐसे में सुनने की जांच (Hearing Test) कराना जरूरी होता है।

बोलने में विकास संबंधी देरी (Developmental Speech Delay)
कई बच्चों का केवल बोलने में देरी होती है, जबकि उनका बाकी विकास सामान्य रूप से हो रहा होता है। इन प्रकार के बच्चों को अच्छी तरह सुनना, समझना और प्रतिक्रिया देना आता है लेकिन वे बोलने में पीछे रह जाते हैं। जैसे कि हमने पहले भी कहा है, ऐसे मामलों में भी स्पीच-लैंग्वेज थैरेपिस्ट से सहायता लेनी उपयोगी होती है।
विकास में देरी और सोचने-समझने में दिक्कत (Developmental Delay and Cognitive Issues)
कुछ बच्चों के अलावा कुछ बच्चों में भाषा के साथ ही संज्ञानात्मक विकास में भी देरी होती है। ऐसे बच्चे सामान्य विकास के सभी क्षेत्रों पर पीछे रह सकते हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं, जिसमें ऑटिज़्म से जुड़ी समस्या Autism Spectrum Disorder (ASD) भी एक महत्वपूर्ण कारण हो सकता है। ASD से प्रभावित बच्चे सामाजिक संपर्क से बचते हैं, आंखों से संपर्क नहीं करते, अपने नाम पर प्रतिक्रिया नहीं देते और संवाद में कठिनाई महसूस करते हैं।
बोलने और भाषा से जुड़ी समस्या (Speech-Language Disorders)
कभी-कभी मस्तिष्क से बोलने की मांसपेशियों तक सही संकेत नहीं पहुंचते, जिससे बोलने में कठिनाई होती है। इसे बोलने में अटकने या बोलने की दिक्कत (Apraxia of Speech) कहा जाता है। कहते हैं। यह एक दुर्लभ स्थिति है, लेकिन इसका समय रहते उपचार जरूरी होता है।
बहुत ज़्यादा मोबाइल, टीवी या टैबलेट देखना (Excessive Screen Time)
एक आम कारण आज के समय में यह भी है कि बच्चे बहुत अधिक समय टीवी, मोबाइल या टैबलेट के सामने गुजारते हैं जिससे उनकी बातचीत करने की क्षमता प्रभावित होती है। जब बच्चा संवाद नहीं करता, उसका बोलना सीखना भी प्रभावित होता है।
अनुवांशिक कारण (Genetic Factors)
कुछ बच्चों में भाषण में देरी अनुवांशिक भी हो सकती है। परिवार में किसी सदस्य को पहले ऐसा अनुभव रहा हो तो यह कारण बन सकता है।

क्या है इस समस्या का समाधान?
अगर किसी बच्चे में बोलने में देरी (speech delay) के लक्षण दिखाई दें, तो सबसे पहला कदम यह होना चाहिए कि उसकी विस्तृत जांच एक बच्चों के विकास विशेषज्ञ डॉक्टर (developmental pediatrician) से कराई जाए। यह जांच यह समझने में मदद करती है कि बोलने में देरी का मुख्य कारण क्या है, जैसे- सुनने की समस्या, संज्ञानात्मक विकास की चुनौती, या अन्य कोई कारण, ताकि उसी के अनुसार समय रहते उपचार शुरू किया जा सके।
इस प्रक्रिया में कुछ महत्वपूर्ण कदम शामिल हैं, जैसे- बच्चे की सुनने की क्षमता की जांच (hearing test), समग्र विकास मूल्यांकन (developmental assessment), और विशेष रूप से बोलने से संबंधित मूल्यांकन (speech delay assessment)। यदि जरूरत पड़ी तो जल्दी हस्तक्षेप (early intervention) बहुत जरूरी होता है, क्योंकि प्रारंभिक उपचार का बच्चों की भाषा और संज्ञानात्मक विकास पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
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स्क्रीन टाइम करें सीमित
इसके साथ-साथ बच्चे के स्क्रीन टाइम को सीमित करना बेहद जरूरी है। बच्चे को संवाद के लिए प्रेरित करना चाहिए, जैसे कि उसके साथ किताबें पढ़ना, अन्य बच्चों के साथ खेलने और बातचीत के मौके देना, गाने और कविताएं सुनाना, रोज़मर्रा की चीज़ों के नाम बताना, “दिखाओ और बताओ” (Show and Tell) जैसी गतिविधियों में शामिल करना और इशारों के माध्यम से संप्रेषण को बढ़ावा देना, जैसे- किसी चीज़ की ओर इशारा करके उसका नाम लेना। इस तरह के प्रयास बच्चे के भाषा विकास को गति देने में मदद कर सकते हैं।
ऐसे में बच्चों के बोलने में देरी को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। समय रहते सही जांच और इलाज से बच्चे को सामान्य बोलचाल की ओर लाया जा सकता है। जितनी जल्दी मदद शुरू की जाती है, उतना बेहतर उसका विकास होता है। सही माहौल, संवाद की आदतें और नियमित प्रोत्साहन बच्चे के बोलने की क्षमता को मजबूत बनाते हैं।