सिंघाड़ा पानी में पैदा होता है. इसका पौधा भी जल में ही बड़ा होता है. इस फल का सेवन ठंड में किया जाता है, जो शरीर को अंदर से गर्म रखता है. बुंदेलखंड इलाके में सिंघाड़े की खेती गिने-चुने क्षेत्रों में कई जाती है, जिन क्षेत्रों में से एक दमोह भी है. यहां के अभाना, पाठादो, नरगवा ग्रामो के जलाशयों में किसान सिंघाड़े की खेती करते हैं।
आयुर्वेद की दृष्टि यह जलीय फल लाभकारी होता है. ठंडी का मौसम आते ही दुकानों पर सिंघाड़ा मिलना शुरू हो जाता है, जिसे लोग पानी में उबालकर बड़े चाव से खाना पसंद करते हैं. इतना ही नहीं, सिंघाड़े के आटे से बहुत से व्यंजन भी तैयार किए जाते हैं. इसके अलावा सिंघाड़े की सब्जी और आचार भी बनता है. लेकिन सिंघाड़ा कई बीमारियों के लिए रामबाण भी है।
यह जलीय फल औषधीय गुणों की खान
अस्थमा के मरीजों के लिए सिंघाड़ा बहुत फायदेमंद है. सिंघाड़े को नियमित रूप से खाने से सांस संबधी समस्याओं से भी आराम मिलता है. बवासीर जैसी बीमारी से भी निजात दिलाने में यह फल कारगर होता है।
फटी एड़ियों को भरने में, शरीर के किसी हिस्से में दर्द और सूजन को कम करने में यह कारगर है. इसमें कैल्शियम की मात्रा भरपूर होती है, इसलिए हड्डियों और दांतों को मजबूती मिलती है. प्रेगनेंसी में सिंघाड़ा खाने से मां और बच्चा दोनों स्वस्थ रहते हैं. इससे गर्भपात का खतरा भी कम होता है।
व्रत में बनाए रखता है मजबूत
आयुर्वेद चिकित्सक डॉ. दीप्ति नामदेव ने बताया कि सिंघाड़े के सेवन से यह शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को उत्पन्न कर देता है. इसमें भरपूर मात्रा में कैल्शियम, प्रोटीन और फाइबर होता है, जिस कारण हम जो व्रत रखते हैं तो हमारी बॉडी में मजबूती बनी रहती है. इसके अलावा यह कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से बचाता है।