बैक्टीरिया यादों को संजोकर रखते हैं और इन्हें अपनी अगली पीढ़ियों तक आगे बढ़ाते हैं। अमरीका की टेक्सास यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक रिसर्च में पाया कि बैक्टीरिया याद रखते हैं कि कब कौन-सी रणनीति इंसानों में खतरनाक संक्रमण का कारण बन सकती है। अपनी यादों के कारण ही वे खुद को एंटीबायोटिक दवाओं के खिलाफ मजबूत बनाते रहते हैं।
नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित शोध के मुताबिक, बैक्टीरिया के पास दिमाग नहीं होता, लेकिन वे वातावरण की जानकारी एकत्रित कर सकते हैं और बाद में वैसे ही वातावरण से सामना होने पर अपना बचाव करते हैं।
ई. कोली नाम के बैक्टीरिया विभिन्न व्यवहारों के बारे में जानकारी जमा करने के लिए लौह स्तर का इस्तेमाल करते हैं। इसके जरिए वे यादें बनाते हैं और इन्हें अपनी बाद की पीढिय़ों तक पहुंचाते हैं। यादों के सहारे ही एंटीबायोटिक दवाओं के प्रतिरोध के लिए लाखों बैक्टीरिया एक ही सतह पर जमा होकर मरीज की जान के लिए खतरा बढ़ा देते हैं। ई. कोली बैक्टीरिया से भारत में हर साल लाखों लोगों की मौत होती है। हाल ही भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ने जिन प्रमुख जानलेवा बैक्टीरिया की सूची तैयार की, उनमें यह शीर्ष पांच में से एक है।
पहले से ही बनाते हैं खुद को मजबूत
शोध के प्रमुख लेखक सौविक भट्टाचार्य का कहना है कि इंसानों की तरह बैक्टीरिया में न्यूरॉन्स, सिनैप्स या तंत्रिका तंत्र नहीं होते। इसलिए माना जाता था कि इंसानों की तरह वे यादें संभालकर नहीं रख सकते, लेकिन शोध के दौरान पाया गया कि जिन जीवाणुओं को अपना झुंड बनाने का अनुभव है, वे समय के साथ ज्यादा क्षमतावान होकर पहले से ज्यादा मजबूत झुंड बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
डार्विन के सिद्धांत का सटीक उदाहरण
शोधकर्ताओं का कहना है कि बीसवीं सदी में कई नई एंटीबायोटिक दवाओं की खोज के बाद अनुमान लगाया गया था कि हमें बैक्टीरिया से डरने की जरूरत नहीं होगी। ऐसा नहीं हुआ। यादें संजोने के कारण कुछ ही दशक में बैक्टीरिया एंटीबायोटिक के खिलाफ जिंदा रहना सीख गए। यह डार्विन के प्राकृतिक चुनाव के सिद्धांत का सटीक उदाहरण है। बैक्टीरिया के खिलाफ अब नए एंटीबायोटिक खोजे जा रहे हैं।