एक नई स्टडी के अनुसार, कोरोना शुरू होने के बाद किशोरों और युवा वयस्कों, खासकर लड़कियों में एंटीडिप्रेसेंट दवाओं का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है। अध्ययन में पाया गया कि मार्च 2020 के बाद 12 से 25 वर्ष की आयु के युवाओं में एंटीडिप्रेसेंट दवाओं के इस्तेमाल की दर लगभग 64 प्रतिशत तेजी से बढ़ी। यह अध्ययन जर्नल “पीडियाट्रिक्स” में प्रकाशित हुआ है।
अध्ययन के मुख्य लेखक, अमेरिका के मिशिगन विश्वविद्यालय हेल्थ सी.एस. मॉट चिल्ड्रन्स हॉस्पिटल में बाल रोग विशेषज्ञ और शोधकर्ता काओ पिंग चुआ ने कहा, “मार्च 2020 से पहले ही किशोरों और युवा वयस्कों को एंटीडिप्रेसेंट दवाएं दी जा रही थीं और उनकी संख्या बढ़ रही थी। हमारे अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि महामारी के दौरान यह रुझान और तेजी से बढ़ा।”
एंटीडिप्रेसेंट दवाओं के इस्तेमाल की दर में वृद्धि
गौरतलब है कि महामारी के दौरान एंटीडिप्रेसेंट दवाओं के इस्तेमाल की दर में वृद्धि लड़कियों के कारण हुई: 12-17 साल की लड़कियों में 130 प्रतिशत और 18-25 साल की महिलाओं में 60 प्रतिशत तेजी से वृद्धि हुई।
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चुआ ने कहा कि कई अध्ययन बताते हैं कि महामारी के दौरान महिला किशोरों में चिंता और अवसाद की दर बढ़ गई थी। ये अध्ययन, हमारे अध्ययन के साथ मिलकर बताते हैं कि महामारी ने इस समूह में पहले से मौजूद मानसिक स्वास्थ्य संकट को और बढ़ा दिया। हालांकि, लड़कियों के विपरीत, मार्च 2020 के बाद पुरुष युवा वयस्कों में एंटीडिप्रेसेंट दवाओं के इस्तेमाल की दर में बहुत कम बदलाव आया और पुरुष किशोरों में यह दर कम हो गई, जो चुआ के लिए आश्चर्यजनक था। उन्होंने कहा कि यह मानना मुश्किल है कि यह गिरावट बेहतर मानसिक स्वास्थ्य को दर्शाती है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि पुरुष किशोरों ने महामारी के दौरान शारीरिक जांच और अन्य स्वास्थ्य देखभाल यात्राओं को छोड़ दिया हो, जिससे चिंता और अवसाद का निदान और उपचार करने के अवसर कम हो गए। चुआ ने कहा कि किशोरों और युवा वयस्कों को एंटीडिप्रेसेंट दवाएं देने में समग्र वृद्धि केवल खराब मानसिक स्वास्थ्य से ही संबंधित नहीं हो सकती है। उदाहरण के लिए, मनोचिकित्सा के लिए लंबी प्रतीक्षा सूची भी एक भूमिका निभा सकती हैं।
उन्होंने कहा कि अपने प्राथमिक देखभाल क्लिनिक में, मैंने अक्सर मरीजों और परिवारों से सुना कि उन्हें महामारी के दौरान थेरेपी के लिए 6-9 महीने की प्रतीक्षा सूची का सामना करना पड़ रहा था। ऐसे मामलों में केवल एंटीडिप्रेसेंट दवाएं देना और सिर्फ थेरेपी की सलाह देना सही नहीं था।