स्वास्थ्य और बीमारियां

सोते समय सांस लेने में तकलीफ हो सकती है जानलेवा, जानें कैसे

एक प्रारंभिक अध्ययन के अनुसार नींद में सांस लेने में बार-बार रुकावट पैदा करने वाली गंभीर बीमारी स्लीप एपनिया से पीड़ित लोगों में याददाश्त या सोचने-समझने की समस्या होने का खतरा ज्यादा होता है। यह अध्ययन अप्रैल में होने वाली अमेरिकन एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजी की 76वीं वार्षिक बैठक में प्रस्तुत किया जाएगा। अध्ययन में पाया गया संबंध केवल संकेत देता है और यह दावा नहीं करता कि स्लीप एपनिया सीधे दिमागी कमजोरी का कारण बनता है।

क्या है स्लीप एपनिया?

स्लीप एपनिया के दौरान लोगों की सांस बार-बार रुकती है, साथ ही वे नींद में खर्राटे लेते हैं और हांफते हैं। इससे खून में ऑक्सीजन का स्तर कम हो जाता है, जो जानलेवा भी हो सकता है।

अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि इस बीमारी से ग्रस्त लोगों में सुबह सिरदर्द होना या कामों में ध्यान लगाने में परेशानी होना ज्यादा आम है। अमेरिका के मैसाचुसेट्स स्थित बोस्टन मेडिकल सेंटर के डॉमिनिक लो ने कहा, “स्लीप एपनिया एक आम बीमारी है जिसका अक्सर पता नहीं चल पाता, लेकिन इसका इलाज मौजूद है।”

स्लीप एपनिया के लक्षण

उन्होंने आगे कहा, “हमारे अध्ययन में पाया गया कि जिन लोगों में स्लीप एपनिया के लक्षण थे, उनमें याददाश्त या सोचने-समझने की समस्या होने की संभावना ज्यादा थी।” अध्ययन में 4,257 लोगों को शामिल किया गया, जिन्होंने नींद की गुणवत्ता और याददाश्त व सोचने-समझने की समस्याओं के बारे में एक प्रश्नावली भरी। जहां 1,079 लोगों ने नींद में खर्राटे लेना, हांफना या सांस रुकने जैसे स्लीप एपनिया के लक्षण बताए, वहीं 357 लोगों (33%) ने याददाश्त या सोचने-समझने की समस्या बताई। जबकि बिना लक्षण वाले 628 लोगों में से केवल 20% ने ऐसी समस्या बताई।

इसके अलावा, टीम ने पाया कि लक्षण वाले लोगों में बिना लक्षण वाले लोगों की तुलना में याददाश्त या सोचने-समझने की समस्या होने की संभावना लगभग 50% ज्यादा थी।

इस तरह होगा सुधार

लो ने कहा, “ये निष्कर्ष स्लीप एपनिया की जल्दी जांच कराने के महत्व को रेखांकित करते हैं। निरंतर सकारात्मक वायुमार्ग दबाव (सीपीएपी) मशीन जैसा प्रभावी उपचार आसानी से उपलब्ध है। अच्छी नींद, साथ ही स्वस्थ आहार, नियमित व्यायाम, सामाजिक जुड़ाव और दिमागी उत्तेजना अंततः किसी व्यक्ति के सोचने-समझने और याददाश्त की समस्याओं के खतरे को कम कर सकती है, जिससे उनकी जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है।”

अध्ययनकर्ताओं ने यह भी स्वीकार किया कि अध्ययन की सीमाएं हैं, जिनमें से एक यह है कि डेटा एक सर्वेक्षण से लिया गया था और प्रतिभागियों ने चिकित्सा पेशेवरों द्वारा जांच कराने के बजाय अपने लक्षणों की जानकारी दी।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button