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Alert: भारतीय बच्चों में देखी जा रही इन पोषक तत्वों की कमी, खतरनाक है ये!

Children Health: अच्छी सेहत के लिए स्वास्थ्य विशेषज्ञ सभी उम्र के लोगों को ऐसे आहार के सेवन की सलाह देते हैं जिनसे शरीर को आवश्यक पोषक तत्व प्राप्त हो सकें। जब बात बच्चों की सेहत की आती है तो ये और भी जरूरी हो जाता है। आज की तेज रफ्तार जिंदगी में जहां बच्चों की दिनचर्या स्क्रीन और जंक फूड तक सीमित हो गई है, वहीं उनकी सेहत पर गहरा असर पड़ रहा है। पहले बच्चे खेलकूद, धूप और घर के बने खाने से प्राकृतिक तौर पर सभी जरूरी पोषक तत्व प्राप्त कर लेते थे, लेकिन आज बदलती जीवनशैली और आहार की गड़बड़ी उनके विकास के लिए खतरा बनती जा रही है और कई गंभीर बीमारियों का जोखिम भी बढ़ा रही है।

अध्ययन बताते हैं कि दुनियाभर में बड़ी संख्या में बच्चे विटामिन, मिनरल्स और प्रोटीन जैसी बुनियादी पोषण की कमी का शिकार हो रहे हैं। विटामिन-डी, आयरन, जिंक और कैल्शियम की कमी सबसे आम पाई जाती है, जो उनकी हड्डियों, दांतों और इम्यून सिस्टम को कमजोर बना देती है। भारत बच्चों में पोषक तत्वों की कमी से संबंधित एक हालिया रिपोर्ट काफी चिंता बढ़ाने वाली है।

बच्चों में विटामिन डी और जिंक की कमी | Children Health

भारतीय बच्चों और किशोरों की पोषण स्थिति को लेकर गंभीर संकेत सामने आए हैं। केंद्रीय सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (एमओएसपीआई) की रिपोर्ट चिल्ड्रेन इन इंडिया के अनुसार देश में बड़ी संख्या में बच्चे विटामिन डी और जिंक की कमी से जूझ रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह कमी बच्चों की वृद्धि और रोग-प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित कर रही है और भविष्य में गंभीर बीमारियों की नींव रख सकती है। रिपोर्ट के अनुसार देश में 1 से 4 साल के 14 फीसदी बच्चे, 5 से 9 साल के 18 फीसदी बच्चे और 10 से 19 साल के 24 फीसदी किशोर विटामिन डी की कमी से पीड़ित हैं। यह पोषक तत्व हड्डियों की मजबूती और रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए जरूरी है।

बच्चों की गड़बड़ दिनचर्या पड़ रही है भारी | Children Health

विशेषज्ञ बताते हैं कि भारत जैसे धूप वाले देश में भी विटामिन डी की कमी इसलिए है क्योंकि बच्चे पर्याप्त समय धूप में नहीं बिताते, खानपान में कैल्शियम और विटामिन डी का अभाव है, साथ ही महानगरीय क्षेत्रों में प्रदूषण सूरज की किरणों को अवरुद्ध करता है। जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित शोध में मोटापा, आनुवांशिक कारण, त्वचा का गहरा रंग और कैफीन का अधिक सेवन भी इस समस्या के कारक बताए गए हैं।

रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि 10 से 19 साल के 32 फीसदी किशोर, 1 से 4 साल के 19 फीसदी और 5 से 9 साल के 17 फीसदी बच्चे जिंक की कमी से जूझ रहे हैं। यह तत्व बच्चों की वृद्धि, प्रतिरक्षा प्रणाली और बार-बार होने वाले संक्रमण से बचाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जिंक की कमी से नाटापन (स्टंटिंग) और कम वजन जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं।

Poshan Ki Kami Ke Lakshan,ज्‍यादा खाने पर भी बच्‍चों में हो जाती है पोषण की  कमी, पेरेंट्स कैसे पहचानें इसके लक्षण - nutritional deficiency symptoms in  toddlers - Navbharat Times

किशोरों में प्रीडायबिटीज और हृदय रोगों का भी खतरा | Children Health

एमओएसपीआई की रिपोर्ट किशोरों में बढ़ती जीवनशैली संबंधी बीमारियों की ओर भी इशारा करती है। 10.4 फीसदी किशोर प्री-डायबिटीज, 0.6 फीसदी डायबिटीज, 3.7 फीसदी हाई कोलेस्ट्रॉल और 4.9 फीसदी हाई ब्लड प्रेशर से प्रभावित हैं। वहीं 5 से 9 साल के 34 फीसदी बच्चे और 10 से 19 साल के 16 फीसदी किशोर हाई ट्राइग्लिसराइड के शिकार हैं। यह समस्या भविष्य में हृदय रोगों का बड़ा कारण बन सकती है। भौगोलिक स्थिति देखें तो छोटे बच्चों में यह समस्या पश्चिम बंगाल, सिक्किम और असम में सबसे ज्यादा पाई गई।

शिशु मृत्यु दर में सुधार | Children Health

रिपोर्ट के अनुसार भारत की शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) 2023 में घटकर 25 प्रति हजार जन्म हो गई, जबकि 2022 में यह 26 थी। ग्रामीण इलाकों में यह दर अब भी 28 है, जबकि शहरी इलाकों में 18 है। छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में आईएमआर सबसे अधिक 37, जबकि केरल में सबसे कम 5 दर्ज की गई। इसी तरह पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर 29 प्रति हजार रही, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में यह 33 और शहरी क्षेत्रों में 20 रही। मध्य प्रदेश 44, उत्तर प्रदेश 42 और छत्तीसगढ़ 41 इस मामले में सबसे खराब स्थिति में रहे, जबकि केरल ने सिर्फ 8 प्रति हजार जन्म के साथ सबसे अच्छा प्रदर्शन किया।

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