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थैलेसीमिया में सूखने लगता है खून, जानिए इस डिसऑर्डर के लक्षण और बचाव के उपाय

भारत में थैलेसीमिया (Thalassemia) आज भी बच्चों और उनके परिवारों के लिए शारीरिक और जज़्बाती तौर पर बहुत अधिक परेशानी का कारण बना हुआ है। थैलेसीमिया बच्चों से जुड़ी एक ऐसी बीमारी है, जिसके बारे में लोगों को बहुत कम जानकारी है। हर साल भारत में 10 हज़ार से लेकर 12 हज़ार बच्चे इस बीमारी का शिकार होते हैं। थैलेसीमिया में शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर कम होने लगता है। इस वजह से शरीर में धीरे-धीरे खून की कमी होने लगती है और बच्चा चलने फिरने में असहाय होने लगता है।

क्‍या है थैलेसीमिया? (What is Thalassemia?)

थैलेसीमिया खून से संबंधित एक आनुवंशिक बीमारी है, जिसकी वजह से शरीर में सामान्य से कम मात्रा में हीमोग्लोबिन बनता है। इससे एनीमिया, थकान और सेहत से जुड़ी अन्य गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। स्टेम सेल ट्रांसप्लांट से थैलेसीमिया से पीड़ित मरीजों का संभावित तौर पर इलाज किया जा सकता है, जिसमें उनके शरीर में खराब हो चुकी खून बनाने वाली कोशिकाओं को किसी डोनर की स्वस्थ कोशिकाओं से बदल दिया जाता है।

थैलेसीमिया के लक्षण (Symptoms of Thalassemia)

बहुत ज़्यादा थकान

कमज़ोरी होना

स्किन का पीला पड़ना

 एनीमिया

सांस लेने में तकलीफ़

कैसे करें थैलेसीमिया से बचाव? (Prevention from Thalassemia)

ब्लड ट्रांसफ्यूजन इसका एक अस्थायी समाधान है, लेकिन स्टेम सेल ट्रांसप्लांट ही एकमात्र ऐसा रास्ता है जिससे इसे पूरी तरह ठीक किया जा सकता है। कई मरीजों के सहोदर भाई-बहन भी उनके मैचिंग डोनर नहीं होते हैं, लिहाजा ऐसे मामलों में मेल खाने वाले असंबंधित डोनर (MUD) की मदद से ट्रांसप्लांट ही उनकी ज़िंदगी का एकमात्र सहारा होता है। हालांकि, लाखों में से एक मैचिंग डोनर ढूंढना सबसे बड़ी चुनौती है।

डीकेएमएस (DKMS) फाउंडेशन द्वारा किए गए सर्वे के अनुसार, भारत में हर साल 10,000 से ज़्यादा बच्चे थैलेसीमिया के साथ पैदा होते हैं। ऐसे में थैलेसीमिया के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए यह फाउंडेशन कई तरह के कार्यक्रम करती है। ब्लड ट्रांसफ्यूजन इनमें से ज़्यादातर बच्चों की ज़िंदगी का हिस्सा बन गया है, लेकिन ब्लड स्टेम सेल ट्रांसप्लांट ही उन्हें पूरी तरह ठीक करने का एकमात्र विकल्प है।

थैलेसीमिया में कराएं ये टेस्ट (Test for Thalassemia)

कम्प्लीट ब्लड काउंट (CBC)- लाल रक्त कोशिकाओं की मात्रा और गुणवत्ता को मापता है।

हीमोग्लोबिन इलेक्ट्रोफोरेसिस (Hemoglobin Electrophoresis)- रक्त में मौजूद हीमोग्लोबिन के प्रकारों की पहचान करता है, जिसमें असामान्य वेरिएंट भी शामिल हैं।

जेनेटिक टेस्टिंग (Genetic Testing)- थैलेसीमिया के लिए जिम्मेदार जेनेटिक उत्परिवर्तन की पहचान करता है।

आयरन स्टडीज़ (Iron Studies)- रक्त में आयरन के स्तर को बताता है जो थैलेसीमिया और आयरन की कमी को पहचानने में मदद करता है।

बोन मैरो बायोप्सी (Bone Marrow Biopsy)- यह टेस्ट थैलेसीमिया की गंभीरता को पहचानने और ट्रीटमेंट कैसी शुरू करनी है यह बताता है।

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