विश्व स्वास्थ्य संगठन के अध्ययन में पता चला है कि कोरोना महामारी के दौरान दिए गए एंटिबायोटिक्स ने सुपरबग यानी एंटिबाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (एएमआर) को और ज्यादा फैला दिया है। एएमआर एक तरह की प्रतिकूल क्षमता है, जो अत्यधिक एंटिबायोटिक्स शरीर में जाने से पैदा होती है। इससे शरीर पर एंटिबायोटिक्स का असर कम हो जाता है।
डब्ल्यूएचओ की अध्ययन रिपोर्ट जनवरी 2020 से मार्च 2023 के बीच 65 देशों में कोविड के कारण भर्ती करीब साढ़े चार लाख मरीजों के डेटा पर आधारित है। WHO का कहना है कि दुनियाभर में कोविड महामारी के कारण जितने लोग अस्पताल में भर्ती हुए थे, उनमें सिर्फ आठ फीसदी को बैक्टीरियल संक्रमण हुआ था। उन्हें ही एंटिबायोटिक्स की जरूरत थी, लेकिन अतिरिक्त सावधानी के नाम पर करीब 75 फीसदी मरीजों को एंटिबायोटिक दवाएं दे दी गईं। सबसे ज्यादा एंटिबायोटिक दवाएं 81 फीसदी उन मरीजों को दी गईं, जिनमें कोविड के लक्षण बहुत तीव्र थे। मध्यम से कम तीव्रता वाले कोविड लक्षणों के मरीजों को भी एंटिबायोटिक दवाएं दी गईं।
Also Read – शिलाजीत कुछ भी नहीं इसके आगे, ये आदतें बना देंगी अंदर से जवान
जरूरत नहीं होने पर दवाएं लेने के खतरे ज्यादा
UN के स्वास्थ्य संगठन के एएमआर प्रभाग में सर्विलांस, एविडेंस एंड लैबोरेट्री यूनिट के प्रमुख डॉ. सिल्विया बरटैग्नोलियो का कहना है कि खतरों या साइड इफेक्ट्स के मुकाबले किसी मरीज में एंटिबायोटिक्स के फायदे ज्यादा होते हैं, लेकिन जरूरत नहीं होने पर एंटिबायोटिक्स दिए जाएं तो फायदे के मुकाबले खतरे ज्यादा होते हैं। इनका गैर-जरूरी इस्तेमाल एएमआर का प्रसार बढ़ा देता है।
2019 में गई 12.7 लाख लोगों की जान
सुपरबग (एंटिबायोटिक दवाओं का शरीर पर असर खत्म हो जाना) वैश्विक स्तर पर सेहत के लिए बड़े खतरों में से एक माना जाता है। एक अनुमान के मुताबिक 2019 में इससे 12.7 लाख लोगों की जान गई। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि 2050 तक यह खतरा इतना बड़ा हो जाएगा कि हर साल करीब एक करोड़ लोगों की मौत हो सकती है, क्योंकि उन पर एंटिबायोटिक दवाएं असर नहीं करेंगी।