गर्भावस्थास्वास्थ्य और बीमारियां

Delivery के बाद हर 8वीं महिला को होती है ये खतरनाक बीमारी, जानिए बचाव का तरीका 

Postpartum Depression: गर्भावस्‍था (Pregnancy) और बच्‍चा पैदा करना (Delivery) दोनों ही किसी महिला के लिए काफी चुनौतियों भरा होता है। किसी महिला को जितनी समस्याएं प्रेगनेंसी के नौ महीने में होती है, उससे भी अधिक बच्चे के जन्म के बाद हो सकती है। इसलिए, स्‍वास्‍थ्‍य विशेषज्ञ मां को विशेष सावधानी बरतने की सलाह देते हैं। गर्भावस्था के बाद कई महिलाओं को डिप्रेशन की समस्या होती है। रिपोर्ट्स के अनुसार, हर 8 में से एक महिला को पोस्टपर्टम डिप्रेशन (Postpartum Depression) की समस्या होती है। इसका खतरा पिछले कुछ सालों में ज्यादा बढ़ा है। 

पोस्टपर्टम डिप्रेशन, गर्भावस्‍था के दौरान या बच्चे के जन्म के एक साल बाद तक शुरू हो सकती है। यह एक मानसिक बीमारी है, जो सोचने, महसूस करने या काम करने के तरीके को नकारात्मक तौर से प्रभावित करती है। शुरुआत में पोस्टपर्टम डिप्रेशन और नॉर्मल तनाव या थकान में अंतर कर पाना मुश्किल होता है। गर्भावस्था या उसके बाद की थकान, उदासी, निराशा का भावना असामान्य नहीं है, लेकिन इसमें डेली रुटीन प्रभावित हो सकती है।

पोस्टमार्टम डिप्रेशन के संकेत (Postpartum Depression Symptoms)

बिना किसी कारण चिड़चिड़ाना या गुस्से में रहना।

जरूरत से ज्यादा मूडी हो जाना।

किसी काम पर ध्यान केंद्रित न कर पाना।

किसी काम को करने में खुशी न होना।

अस्पष्ट दर्द या कोई बीमारी महसूस होना खूब भूख लगना, लेकिन खाने का मन न करना।

डिलीवरी के बाद भी लगातार वजन बढ़ना।

खुद पर कंट्रोल न कर पाना और बिना कारण बहुत ज्यादा रोने का मन करना।

थकान लगना और आराम न करने के बाद भी नींद न आना।

आसपास के लोगों से बचकर रहना।

बच्चे को लेकर बहुत ज्यादा चिंता करना।

Postpartum Depression कितना खतरनाक?

अगर पोस्टमार्टम डिप्रेशन कुछ महीनों या उससे ज्यादा समय तक चलता है तो कई गंभीर समस्याओं का कारण बन सकता है। इसका मेंटल हेल्थ पर बुरा असर पड़ता है। इससे फिजिकल समस्याएं भी हो सकती है। डिप्रेशन की वजह से मोटापा, हार्ट अटैक, लंबी बीमारी का खतरा भी रहता है।

पोस्टमार्टम डिप्रेशन का इलाज (Postpartum Depression Treatment)

पोस्टमार्टम डिप्रेशन को लेकर अलर्ट रहें। डिप्रेशन के लक्षणों को पहचानकर सही समय पर डॉक्टर से इसका इलाज कराएं। डॉक्टर कुछ दवाईयों और थेरेपी की मदद से इसका इलाज करते हैं, जिससे लक्षण कम करने में मदद मिल सकती है।

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