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Fertility पर फुल स्टॉप, क्यों नहीं होती इस पर बात? समय रहते न जाना तो पड़ेगा पछताना

महिलाएं अक्सर यह मानकर चलती हैं कि वो 35 या 40 की उम्र तक आसानी से गर्भधारण कर सकती हैं। मगर, सच्चाई यह है कि महिलाओं की फर्टिलिटी 30 की उम्र के बाद धीरे-धीरे घटने लगती है और 35 के बाद तेजी से गिरती है। ऐसा इसलिए, क्योंकि शरीर में इसका कोई साफ संकेत नहीं मिलता। महिलाएं तब जान पाती हैं, जब वे गर्भधारण का प्रयास करती हैं। इसलिए जरूरी है कि महिलाएं समय पर जांच कराएं और फर्टिलिटी के बारे में पहले से जागरूक रहें।

आजकल कई महिलाएं एग फ्रीजिंग यानी अंडाणु को सुरक्षित रखने की प्रक्रिया अपना रही हैं। मगर, यह कोई गारंटी नहीं कि भविष्य में बच्चा हो ही जाएगा। ये प्रक्रिया 35 साल से पहले करवाना अधिक फायदेमंद होती है। लेकिन, समाज में इस पर खुलकर बात नहीं होती और सही जानकारी भी नहीं मिलती।

Fertility पर फुल स्टॉप, क्यों नहीं होती इस पर बात? समय रहते न जाना तो पड़ेगा पछताना

बांझपन का खर्च सिर्फ पैसों तक सीमित नहीं | World IVF Day 2025

इनफर्टिलिटी ट्रीटमेंट जैसे- IVF महंगे होते हैं, लेकिन असली कीमत होती है मानसिक और भावनात्मक तनाव की। बार-बार की असफलता, समाज का दबाव और अकेलेपन की भावना बहुत भारी पड़ती है। एक रिसर्च के मुताबिक, फर्टिलिटी ट्रीटमेंट से गुजर रही महिलाओं का तनाव कैंसर या दिल की बीमारी से जूझ रहे मरीजों के बराबर होता है। फिर भी मानसिक स्वास्थ्य को अक्सर नजरअंदाज किया जाता है।

पुरुषों की फर्टिलिटी पर बात नहीं होती | World IVF Day 2025

बांझपन की समस्या जब सामने आती है तो जांच सबसे पहले महिलाओं की होती है। जबकि, 40% मामलों में पुरुषों की फर्टिलिटी कमजोर होती है। खराब जीवनशैली, धूम्रपान, तनाव और पर्यावरण प्रदूषण इसके बड़े कारण हैं। फिर भी पुरुषों के मुद्दों पर बात करना समाज में अब भी दुर्लभ है।

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IVF को प्रभावित करता है मानसिक और सामाजिक सहयोग | World IVF Day 2025

IVF एक मेडिकल प्रक्रिया जरूर है, लेकिन इसका मानसिक प्रभाव भी बहुत गहरा होता है। शोध बताता है कि जिन महिलाओं को परिवार या साथी का सहयोग मिलता है, उनके सफल होने की संभावना बढ़ जाती है और मानसिक तनाव कम होता है। अकेलापन इस प्रक्रिया को और कठिन बना सकता है।

हेल्‍थ एक्‍सपर्ट्स की मानें तो बांझपन आम है, शर्म की बात नहीं है और सबसे जरूरी बात ये सफर किसी महिला को अकेले तय नहीं करना चाहिए। अब जरूरत है खुलकर बात करने की, सही जानकारी देने की और ऐसे हेल्थकेयर सिस्टम की, जो इलाज के साथ भावनात्मक सहयोग भी दें।

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