Pneumonia in India: स्वास्थ्य क्षेत्र पर श्वसन की समस्याएं, अतिरिक्त दबाव बढ़ाने वाली मानी जाती हैं। अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और निमोनिया जैसी बीमारियों का जोखिम सभी उम्र के लोगों में देखा जा रहा है जिसपर अगर ध्यान न दिया जाए तो इसके कारण गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। निमोनिया एक गंभीर रोग है जिसके कारण हर साल लाखों लोगों की मौत हो जाती है। फेफड़ों में होने वाला ये संक्रमण गंभीर स्वास्थ्य जटिलताओं का कारण बनता है। बच्चों में इस रोग का जोखिम सबसे ज्यादा देखा जाता रहा है।
इस बीमारी के इलाज की दिशा में भारत को बड़ी कामयाबी मिली है। भारत ने समुदाय-अधिग्रहित बैक्टीरियल निमोनिया (सीएबीपी) नामक संक्रमण का तोड़ खोज निकाला है। वैज्ञानिकों ने पहली स्वदेशी एंटीबायोटिक दवा “नेफिथ्रोमाइसिन” तैयार की है, जिसकी तीन खुराक से संक्रमण कम किया जा सकता है। केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आधिकारिक तौर पर भारत की इस सफलता की घोषण की।
बच्चों की मौत का सबसे बड़ा संक्रामक कारण है निमोनिया | Pneumonia in India
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट के मुताबिक निमोनिया दुनियाभर में बच्चों की मौत का सबसे बड़ा संक्रामक कारण है। हर वर्ष निमोनिया के कारण पांच वर्ष से कम आयु के 7.25 लाख से अधिक बच्चों की मृत्यु हो जाती है, जिनमें लगभग 1.90 लाख नवजात शिशु भी शामिल हैं, जो संक्रमण के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं। बुजुर्गों में भी इस रोग का खतरा अधिक होता है। डॉक्टर बताते हैं, बैक्टीरिया, वायरस और फंगस किसी के कारण भी ये रोग हो सकता है।
विकसित की गई स्वदेशी एंटीबायोटिक | Pneumonia in India
एंटीबायोटिक नैफिथ्रोमाइसिन को बायोटेक्नोलॉजी इंडस्ट्री रिसर्च असिस्टेंस काउंसिल (BIRAC) के सहयोग से विकसित किया गया है। यह देश का पहला स्वदेशी रूप से विकसित एंटीबायोटिक है जिसका उद्देश्य एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध से निपटना है। यह दवा सीएबीपी रोगियों के लिए दिन में एक बार, तीन दिन तक दी जाएगी। यह पहला उपचार है, जिसमें मल्टी-ड्रग प्रतिरोधी (एमडीआर) संक्रमण वाले मरीज भी शामिल हैं। इस दवा पर 15 वर्षों में कई नैदानिक परीक्षण किए गए हैं। इनमें अमेरिका और यूरोप में हुए पहले व दूसरे चरण के परीक्षण भी शामिल हैं। भारत में इस दवा ने हाल ही में तीसरा चरण पूरा किया था।
प्रभाविकता काफी बेहतर | Pneumonia in India
नैफिथ्रोमाइसिन की प्रभावकारिता कई मायने में अलग है, यह सामान्य और असामान्य दोनों तरह के रोगजनकों को लक्षित करता है। उल्लेखनीय रूप से, यह एजिथ्रोमाइसिन की तुलना में दस गुना अधिक प्रभावी है। अपनी प्रभावकारिता से परे, नैफिथ्रोमाइसिन बेहतर सुरक्षा और सहनशीलता का भी दावा करता है। इस एंटीबायोटिक दवा के के न्यूनतम गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल साइड इफेक्ट हो सकते हैं।
कम हो सकता है मृत्युदर | Pneumonia in India
केंद्र सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि यह यह दवा इसलिए भी काफी अहम है क्योंकि सीएबीपी के कारण हर साल लाखों की संख्या में बुजुर्ग मरीजों की मौत हो रही है। अगर वैश्विक स्तर पर बात करें तो सीएबीपी से सालाना दुनियाभर में मरने वालों में 23 फीसदी हिस्सा भारत का है। इसकी मृत्यु दर 14 से 30% के बीच है। इस दवा के माध्यम से मृत्य के जोखिमों को कम करने में मदद मिल सकती है।