स्वास्थ्य और बीमारियां

Kidney Transplant vs Dialysis, डॉक्‍टर से समझें कब पड़ती है किसकी जरूरत?

हमारे शरीर में किडनी (Kidney) एक तरह से लाइफलाइन है। इसकी सेहत खराब हुई तो बाकी अंग भी अधिक दिन नहीं चलेंगे। खानपान और लाइफस्टाइल से जुड़ी हमारी छोटी-छोटी खराब आदतें भी किडनी की हेल्थ पर असर डालती हैं, जिसकी वजह से किडनी डिजीज (Kidney Disease) के मामले बढ़ रहे हैं। साल 2018-2023 में किडनी डिजीज के 16.38% मामले बढ़े हैं। जर्नल ‘नेफ्रोलॉजी’ में छपी एक स्टडी के मुताबिक, क्रॉनिक किडनी डिजीज (CKD) से ग्रामीण इलाकों में 15.34% और शहरों में 10.65% लोग प्रभावित हैं।

जब किडनी ठीक से काम करना बंद कर देती है, तब मरीज और उसके परिवार के सामने सबसे बड़ा सवाल होता है। डायलिसिस कराएं या किडनी ट्रांसप्लांट। दोनों ही इलाज गंभीर स्थिति में किए जाते हैं, लेकिन ये हर किसी के लिए एक जैसे असरदार नहीं होते हैं। आज के इस लेख में जानेंगे कि कब, किस ट्रीटमेंट की जरूरत पड़ती है और डॉक्टर क्या सलाह देते हैं?

किडनी फेल होने पर क्या हैं रास्ते?

जब किसी की किडनी 85-90% तक खराब हो जाती है तो यह एंड स्टेज किडनी डिजीज (ESRD) कहलाता है। इस स्टेज पर शरीर से टॉक्सिन और एक्स्ट्रा फ्लूइड बाहर निकालने के लिए दो ही विकल्प होते हैं- डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट। डॉक्टर इनमें से ही चुनने की सलाह देते हैं।

कब जरूरी है डायलिसिस?

डायलिसिस (Dialysis) एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें मशीन के जरिए खून को फिल्टर किया जाता है। यह इलाज तब दिया जाता है, जब मरीज की हालत ट्रांसप्लांट के लिए तैयार नहीं होती या तुरंत डोनर उपलब्ध नहीं होता है। डायलिसिस दो तरह की होती है, पहला- हीमोडायलिसिस जो मशीन से होती है, दूसरा- पेरिटोनियल डायलिसिस, जो पेट की परत के जरिए होती है।

कब पड़ती है डायलिसिस की जरूरत?

अचानक किडनी फेल हो जाए

उम्र अधिक हो या कोई दूसरी गंभीर बीमारी हो जैसे हार्ट डिजीज

मरीज ट्रांसप्लांट के लिए फिट न हो

जब तक डोनर किडनी नहीं मिलती।

ट्रांसप्लांट कब बेहतर विकल्प होता है?

स्‍वास्‍थ्‍य विशेषज्ञों के मुताबिक, किडनी ट्रांसप्लांट (Kidney Transplant) में एक हेल्दी डोनर की किडनी मरीज को ट्रांसफर की जाती है। ये स्थायी समाधान माना जाता है, क्योंकि इसमें मरीज को बार-बार डायलिसिस की जरूरत नहीं पड़ती है।

कब जरूरी हो जाता है ट्रांसप्लांट?

मरीज शारीरिक रूप से फिट हो

कोई एक्टिव इन्फेक्शन या कैंसर न हो

डोनर (जैसे परिवार का सदस्य) उपलब्ध हो

डायलिसिस से थक चुका हो या उसकी क्वालिटी ऑफ लाइफ खराब हो रही हो

ट्रांसप्लांट के बाद इम्यूनो-सप्रेसिव दवाएं लेनी होती हैं, जिससे शरीर नई किडनी को एक्सेप्ट कर सके।

क्‍या है डॉक्टर की सलाह?

डॉक्टरों के मुताबिक, अगर मरीज फिट है और डोनर उपलब्ध है तो ट्रांसप्लांट हमेशा बेहतर विकल्प होता है। मगर, जब तक डोनर नहीं मिलता या ट्रांसप्लांट संभव नहीं है, तब तक डायलिसिस ही जिंदगी बचाने का तरीका होता है।

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