डिलीवरी के बाद शरीर काफी कमजोर हो जाता है। गर्भावस्था और प्रसव के दौरान शरीर को बहुत नुकसान होता है जिसे रिकवर करने के लिए खानपान और लाइफस्टाइल में बदलाव लाना महत्वपूर्ण है। यह मां के साथ-साथ बच्चे की सेहत के लिए जरूरी है। ऐसे में महिलाओं के स्वास्थ्य और सुरक्षा के प्रति जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस की पहल की गई।
हर साल 11 अप्रैल का दिन राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य और सुरक्षा के प्रति जागरूकता फैलाने और मातृ मृत्यु दर को कम करने के लिए समर्पित है। इस दिन उन माताओं को सम्मानित करते हैं जो अपनी संतान को जन्म देने के लिए अपना जीवन दांव पर लगा देती हैं। इस साल एक नई थीम ‘मातृ स्वास्थ्य देखभाल में समानता’ तैयार की गई है। इसके अनुसार सभी माताओं को उनकी सामाजिक, आर्थिक या भौगोलिक स्थिति की परवाह किए बिना गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच प्राप्त हो।
National Safe Motherhood Day को और अच्छी तरह से एक्सप्लेन करने के लिए एक्सपर्ट एडवाइस जरूरी है और आज एक्सपर्ट के रूप में आरोग्य इंडिया प्लेटफोर्म से एक ऐसी शख्सियत जुड़ी हैं जो डॉक्टर होने के साथ-साथ एक मां भी हैं। हमारे साथ मौजूद हैं डॉ रमा श्रीवास्तव, ये दर्शकों को बतायेंगी कि आखिर एक मां के लिए यह दिन ख़ास क्यों है।
सबसे पहले आपको डॉ रमा श्रीवास्तव से रूबरू करवा देते हैं। डॉ रमा general and laparoscopic surgeon भी हैं, उन्हें 28 वर्षों का अनुभव है। डॉ रमा से जानते हैं कि आखिर इस दिन का ख़ास उद्देश्य क्या है?
डॉ रमा श्रीवास्तव बताती हैं कि जो मांयें हैं उनका सुरक्षित रहना, सुरक्षित प्रसव, उनके स्वास्थ्य की देखभाल और बच्चे की उचित देखरेख जरूरी है। स्वास्थ्य संबंधी चीजें खासकर उनकी ग्रोथ, पर्सनालिटी, देखभाल, इन सबको ध्यान में रखते हुए यह दिन मनाया जाता है। ताकि पूरी दुनिया में पूरे भारतवर्ष में यह जागृति हो कि मां भी उतनी ही इंपार्टेंट है जितना बच्चा इंपार्टेंट है या जितना बच्चे का पिता इंपार्टेंट है। हमारे यहां सोसाइटी में अभी भी मेल डोमिनेंस है, इसमें कहीं कोई संदेह नहीं है। बहुत सारे प्रदेशों में जहां लोग इतने पढ़े-लिखे नहीं हैं या फिर अगर पढ़े-लिखें भी हैं तो वहां कुरीतियां चली आ रही हैं कि स्त्रियां सिर्फ सेवा के लिए हैं। उनको खाना मिले या न मिले, उचित देखभाल मिले या न मिले, प्रेग्नेंसी में जो प्रॉपर केयर होनी चाहिए वो मिले या न मिले, बस उन्हें अपने काम करते रहना है। चाहे वह गांव में हो या कई बार शहरों में भी ऐसा होता है। बहुत बार ऐसा भी देखा गया है कि अगर मदर इन लॉज बहू का ख्याल नहीं रखते तो पति भी इग्नोर करते हैं। ऐसा बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए, मां तो परिवार की धुरी है।
जितना जरूरी बच्चे, परिवार और समाज का ख्याल रखना है उतना ही जरूरी एक मां का ख्याल रखना भी होता है। यहां पर जिम्मेदारी पति और परिवार की बढ़ जाती है। डॉ रमा कुछ ख़ास टिप्स भी दे रही हैं कि आखिर कैसे एक मां का ख्याल रखा जा सकता है।
अगर कोई महिला प्रेग्नेंट है तो उसे डबल डाइट चाहिए होती है, रेस्ट चाहिए होता है, कुछ दवाओं की जरूरत होती है जिससे वह एनीमिक न रहे क्योंकि बच्चा मां के खून पर ही पलता है। बच्चा तो अपनी ताकत मां से खींच लेगा लेकिन अगर मां कमजोर हो जायेगी तो परेशानी की बात है। मां कमजोर न रहे इसलिए पूरे परिवार को प्रग्नेंट महिला का ध्यान रखें। अच्छा खानपान दें, दूध-फल-सब्जियां दें। अगर डॉक्टर्स की सुविधा है तो डॉक्टर्स के पास महीने में एक बार जरूर जायें।
एक मां को भी अपनी सेहत को लेकर थोड़ा सेल्फिश होना जरूरी है। ऐसा क्यों, इसे भी जान लीजिए…
प्रेग्नेंट महिलाओं को थोड़ा स्वार्थी होने की जरूरत है, इसका मतलब ये बिल्कुल भी नहीं है कि पति और बच्चे को इगनोर कर दें। बल्कि पति और परिवार को खिला-पिलाकर खुद के खानपान पर ध्यान देना जरूरी है जिससे उनको ताकत मिले। अपने लिये हरी सब्जियां, दूध, फल, दही इत्यादि जरूर रखें। साथ ही ड्राई फ्रूट्स भी ले सकती हैं क्योंकि इनसे ज्यादा ताकत मिलती है। हरी सब्जियां केला, पालक, टमाटर से खून बनता है इसलिए इन्हें अपनी डाइट में जरूर शामिल करें।
बता दें कि राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस के मौके पर कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। शहर, गांव और कस्बों में मेडिकल टीमें जाकर महिलाओं को प्रेगनेंसी, डिलीवरी और पोस्टपार्टम पीरियड के बारे में जागरूक करती हैं।