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New Pandemic Alert 2025: नई ‘साइलेंट महामारी’ का अलर्ट, सभी हो रहे इसका शिकार

New Pandemic Alert 2025: दुनियाभर ने कोरोना जैसी घातक महामारी का सामना किया है। करोड़ों लोग न केवल संक्रमण का शिकार हुए, बल्कि बड़ी संख्या में लोगों की मौतें भी हुई। हालांकि वैश्विक स्वास्थ्य संगठनों के लिए कोरोना महामारी अकेली चिंता नहीं है, कई अन्य प्रकार की स्वास्थ्य स्थितियां भी परेशान करती रही हैं। ऐसी ही एक समस्या है अकेलापन, जिसको लेकर स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने अलर्ट किया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि दुनिया का हर छठा व्यक्ति अकेलेपन का शिकार है, ये स्थिति खामोश महामारी का रूप लेती जा रही है। अकेलापन यानी लोगों से अलग-थलग रहना, बातचीत न हो पाना एक बड़े खतरे के तौर पर उभरती स्थिति है। इसका शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार की सेहत पर नकारात्मक असर हो रहा है। इतना ही नहीं अकेलेपन का दुष्प्रभाव ऐसा है कि ये हर घंटे करीब सौ लोगों की जानें ले रहा है।

गंभीर वैश्विक स्वास्थ्य खतरा घोषित हुआ ‘अकेलेपन’ | New Pandemic Alert 2025

डब्ल्यूएचओ ने अकेलेपन को एक गंभीर वैश्विक स्वास्थ्य खतरा घोषित किया है। अमेरिकी विशेषज्ञों ने कहा कि इसके घातक दुष्प्रभाव एक दिन में 15 सिगरेट पीने के बराबर हैं। विशेषज्ञ कहते हैं, वैसे तो अकेलेपन की समस्या नई नहीं है, ये लंबे समय से स्वास्थ्य के लिए चिंता का कारण बनी रही है, हालांकि कोविड-19 महामारी के दौरान आर्थिक और सामाजिक गतिविधियों के रुकने और कई प्रकार की नकारात्मक स्थितियों ने खतरे को कई गुना बढ़ा दिया है। साल 2023 में डब्ल्यूएचओ  ने अकेलेपन की बढ़ती समस्या पर एक अंतरराष्ट्रीय आयोग का गठन भी किया था।

अकेलेपन के कारण स्वास्थ्य पर होने वाले दुष्प्रभावों पर नजर डालें तो पता चलता है कि वृद्ध वयस्कों में, अकेलेपन के कारण डिमेंशिया जैसी गंभीर समस्या विकसित होने का जोखिम 50% जबकि कोरोनरी आर्टरी रोग या स्ट्रोक होने का जोखिम 30% तक बढ़ जाता है। ये युवाओं के जीवन को भी प्रभावित कर रही है। आंकड़ों के अनुसार, 5% से 15% किशोर अकेलेपन का अनुभव करते हैं। अफ्रीका में 12.7%, जबकि यूरोप में यह आंकड़ा 5.3% है।

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अकेलेपन की बढ़ती भावना चिंताजनक | New Pandemic Alert 2025

आज के दौर में तकनीकी साधनों के माध्यम से लोगों से जुड़ाव पहले से कहीं ज्यादा आसान हो गया है। मोबाइल फोन, वीडियो कॉल, ऑनलाइन संदेश और वर्चुअल बैठकें अब आम हो गई हैं, लेकिन इन सबके बावजूद अकेलेपन की बढ़ती भावना काफी चिंताजनक है। अकेलापन केवल मानसिक पीड़ा नहीं है, बल्कि इसके दुष्प्रभाव हर वर्ष आठ लाख सत्तर हजार से ज्यादा लोगों की जान ले रहा है, यानी हर घंटे सौ से अधिक लोगों की मृत्यु इसके कारण हो रही है।

रिपोर्ट के अनुसार अकेलापन और सामाजिक अलगाव की परिभाषा में फर्क है। अकेलापन वह पीड़ा है जो तब महसूस होती है जब किसी व्यक्ति को अपेक्षित सामाजिक जुड़ाव नहीं मिलता, जबकि सामाजिक अलगाव तब होता है जब व्यक्ति के पास संबंधों का ही अभाव होता है। यह समस्या समाज के हर वर्ग को प्रभावित कर रही है, लेकिन युवाओं, बुजुर्गों और गरीब देशों में रहने वाले लोगों में इसका प्रभाव सबसे अधिक देखा जा रहा है।

सोशल मीडिया पर हजारों दोस्त, चैट लिस्ट में ढेरों नाम और हर पल मिलने वाले संदेश, असल जिंदगी के उस सन्नाटे को नहीं भर पाते जो दिल और दिमाग में धीरे- धीरे घर कर जाता है। आभासी रिश्तों में तात्कालिक प्रतिक्रिया तो मिलती है, लेकिन वह अपनापन और सहारा नहीं, जिसकी इंसान को वास्तव में जरूरत होती है। यह दुनिया जितनी आकर्षक दिखती है, उतनी ही एकाकी और कृत्रिम भी हो सकती है।

महामारी से पहले भी युवाओं में भावनात्मक समस्याएं तेजी से बढ़ रही थीं

क्या कहते हैं विशेषज्ञ? | New Pandemic Alert 2025

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सोशल कनेक्शन कमीशन की रिपोर्ट में इस संकट को उजागर किया गया है। रिपोर्ट के सह-अध्यक्ष डॉ. विवेक मूर्ति का कहना है कि यह अकेलापन न केवल लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है बल्कि शिक्षा, रोजगार और अर्थव्यवस्था पर भी गहरा असर डाल रहा है। खास तौर पर युवाओं में अत्यधिक मोबाइल और स्क्रीन समय और नकारात्मक ऑनलाइन व्यवहार मानसिक तनाव को और बढ़ा रहे हैं। जबकि सामाजिक जुड़ाव जीवन को लंबा, स्वस्थ और खुशहाल बनाता है। वहीं अकेलापन स्ट्रोक, हृदय रोग, मधुमेह, स्मृति की समस्या और समय से पहले मृत्यु का खतरा बढ़ा देता है।

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