पीसीओएस यानी पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम महिलाओं को होने वाला एक एंडोक्राइन और मेटाबॉलिक डिसऑर्डर है। यह रोग महिलाओं को रजोनिवृत्ति से ठीक पहले के समय (प्रीमेनोपॉजल) होता है। पीसीओएस में महिलाओं के शरीर में असाधारण मात्रा में एंड्रोजन हार्मोन बनने लगता है। एंड्रोजन पुरुष हार्मोन होता है और बहुत ही कम मात्रा में महिलाओं के शरीर में पाया जाता है। पीसीओएस में एंड्रोजन बढ़ने के साथ-साथ मासिक धर्म अनियमित होना और अंडाशय पर छोटी-छोटी सिस्ट (अल्सर जैसी संरचनाएं) बनने लग जाती हैं।
ओव्यूलेशन (डिंबोत्सर्जन) तब होता है, जब अंडाशय से अंडा इस प्रकार निकले की शुक्राणु उसे फर्टिलाइज (निषेचित) कर ले। पीसीओएस से ग्रस्त महिलाओं में ओव्यूलेशन के लिए जरूरी हार्मोन पर्याप्त मात्रा में नहीं बन पाता है। ऐसी स्थिति में जब ओव्यूलेशन हो नहीं पाता है, तो अंडाशय पर छोटी-छोटी सिस्ट बनने लगती हैं। ये सिस्ट अधिक मात्रा में एंड्रोजन बनाती हैं, जो महिलाओं को मासिक धर्म को अनियमित करने के साथ-साथ पीसीओएस से संबंधित कई लक्षण पैदा कर देता है।
पीसीओएस के प्रकार
रॉटरडैम क्राइटेरिया के अनुसार पीसीओएस के चार अलग-अलग प्रकार हैं –
- क्लासिक पॉलिसिस्टिक ओवरी पीसीओएस – इसमें लंबे समय तक ओव्यूलेशन नहीं होता है और ओवरी में सिस्ट बनने के साथ-साथ एंड्रोजन का स्तर भी बढ़ जाता है। जिन महिलाओं को पीसीओएस का यह प्रकार होता है उनमें मेटाबॉलिक व हृदय संबंधी बीमारियां होने का काफी खतरा रहता है।
- क्लासिक नोन-पॉलिसिस्टिक ओवरी पीसीओएस – इसमें ओव्यूलेशन कम होता है और एंड्रोजन का स्तर बढ़ा हुआ होता है। हालांकि, इसमें ओवरी सामान्य रहती हैं।
- नोन-क्लासिक ओव्यूलेटरी पीसीओएस – इसमें ओव्यूलेशन भी होता है और मासिक धर्म भी नियमित रहते हैं। लेकिन इस दौरान एंड्रोजन का स्तर बढ़ जाता है और ओवरी पर सिस्ट भी बन जाती हैं।
- नोन-क्लासिक माइल्ड पीसीओएस – पीसीओएस के इस प्रकार के ओव्यूलेशन कम हो जाता है और ओवरी पर सिस्ट भी बन जाती हैं।
पीसीओएस के लक्षण
पीसीओएस ऐसा रोग है जिसके कारण कई अन्य रोग भी विकसित हो सकते हैं। पीसीओएस से प्रमुख रूप से तीन समस्याएं जुड़ी होती हैं और वे हैं मासिक धर्म में अनियमितता, एंड्रोजन का स्तर बढ़ना और अंडाशय में सिस्ट बनना। रॉटरडैम के क्राइटेरिया के अनुसार यदि किसी महिला को इन तीन लक्षणों में से कोई दो महसूस हो रहे हैं, तो वह पीसीओएस से ग्रस्त है। हालांकि, पीसीओएस से होने वाले संकेत व लक्षण ग्रसित महिला की स्थिति के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं। पीसीओएस से आमतौर पर देखे जाने वाले लक्षणों में निम्न को भी शामिल किया जा सकता है –
- इनफर्टिलिटी (बांझपन)
- मोटापा बढ़ना
- चेहरे, छाती और पेट पर अधिक बाल उगना
- ऑयली स्किन और मुंहासे होना
पीसीओएस के कारण
पीसीओएस के सटीक कारणों का अभी तक पता नहीं चल पाया है। हालांकि, यह अनुवांशिक, वातावरणीय और पारिवारिक स्थितियों से जुड़ा हो सकता है। निम्न स्थितियां पीसीओएस का कारण बन सकती हैं –
- वातावरणीय कारक – इन स्थितियों में संतुलित आहार न ले पाने के कारण और पर्याप्त शारीरिक गतिविधियां न कर पाने के कारण मोटापा बढ़ने लगता है। शरीर का वजन बढ़ना पीसीओएस समस्या से जुड़ा होता है। हालांकि, सामान्य वजन वाली कुछ महिलाओं को भी पीसीओएस हो सकता है। इसके अलावा किसी संक्रामक या विषाक्त चीज के संपर्क में आना भी वातावरणीय कारक के रूप में पीसीओएस का कारण बन सकता है।
- पारिवारिक समस्या – जिन महिलाओं के परिवार में पहले किसी को पीसीओएस या टाइप 2 डायबिटीज हो चुका है, तो ऐसे में उन्हें भी पीसीओएस होने का खतरा बढ़ जाता है। किसी महिला में पीसीओएस के लक्षण कितने गंभीर हो सकते हैं, यह भी उसकी फैमिली हिस्ट्री पर निर्भर कर सकता है।
- इंसुलिन रेजिस्टेंस – जब शरीर की कोशिकाएं इंसुलिन पर प्रतिक्रिया न दे पाएं, तो शरीर अधिक मात्रा में इंसुलिन बनने लगता है। इस प्रकार शरीर में इंसुलिन का स्तर सामान्य न होना, एंड्रोजन का स्तर बढ़ने का कारण बन सकता है। जीवनशैली से जुड़ी खराब आदतें जैसे पौष्टिक व संतुलित आहार न लेना और शारीरिक गतिविधियां न करना भी इंसुलिन रेजिस्टेंस का कारण बन सकता है। इस कारण से भी महिलाओं का वजन बढ़ने लगता है और पीसीओएस के लक्षण गंभीर हो जाते हैं।
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जोखिम कारक
पीसीओएस सिर्फ प्रजनन प्रणाली को नहीं बल्कि शरीर के अन्य हिस्सों को भी प्रभावित करता है। यह महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए खतरा बढ़ा देता है, जिससे जीवन भर समस्याएं हो सकती हैं। पीसीओएस के प्रमुख जोखिम कारकों में निम्न शामिल हैं –
- मां या बहन को पहले से ही पीसीओएस होना
- इंसुलिन रेजिस्टेंस की समस्या होना
- गर्भाशय की मोटाई बढ़ने के कारण एंडोमेट्रियल कैंसर होने का खतरा बढ़ना
- स्लीप एपनिया और डिप्रेशन जैसी समस्याएं होना
पीसीओएस की रोकथाम
पीसीओएस आमतौर पर प्यूबर्टी के दौरान विकसित होता है, जिसके कारण वयस्क होने पर डायबिटीज और बांझपन की समस्याएं होने लगती हैं। ऐसी स्थितियों से बचने के लिए समय रहते ही पीसीओएस की रोकथाम करना बेहद जरूरी है।
जो महिलाएं मोटापे से ग्रस्त है उन्हें अपने वजन को कम करने के लिए उपयुक्त उपाय करने चाहिए, जिससे पीसीओएस की गंभीरता को कम करने में भी मदद मिलेगी।
इंसुलिन और एंड्रोजन लेवल के स्तर पर नजर रखना बहुत जरूरी है, क्योंकि ये पीसीओएस विकसित होने का कारण बन सकते हैं।
पीसीओएस की जांच
पीसीओएस में होने वाले लक्षण आमतौर पर अन्य कई स्वास्थ्य समस्याओं में भी हो सकते हैं। पीसीओएस की गंभीरता और उसके प्रकार का पता लगाने के लिए उचित निदान करना जरूरी होता है। पीसीओएस का निदान करने के लिए डॉक्टर मरीज की शारीरिक जांच करते हैं और साथ ही उनके स्वास्थ्य से जुड़ी पिछली जानकारियां (मेडिकल हिस्ट्री) भी लेते हैं। इसके बाद कुछ अन्य टेस्ट भी किए जाते हैं, जिनकी मदद से पीसीओएस की पुष्टि की जाती है, जैसे –
- अल्ट्रासाउंड या पेल्विक एग्जाम
- ब्लड टेस्ट
पीसीओएस का इलाज
पीसीओएस से होने वाली समस्याओं को ठीक करने के कई इलाज उपलब्ध हैं। पीसीओएस का इलाज आमतौर पर हर महिला को महसूस हो रहे लक्षणों, स्वास्थ्य स्थिति और वह गर्भधारण करना चाहती है या नहीं आदि के आधार पर किया जाता है।
यदि महिला गर्भधारण करना चाहती है –
- जीवनशैली में बदलाव – महिला की डाइट में विशेष बदलाव किए जाते हैं और साथ ही उसे व्यायाम आदि भी करने को कहा जाता है, ताकि उसके शारीरिक वजन को नियंत्रित किया जा सके।
- फर्टिलिटी की दवाएं – इस दौरान कुछ इंजेक्शन व खाने की दवाएं दी जाती हैं, जो ओवरी को अंडे निकालने में मदद करती हैं। हालांकि, इन दवाओं के कुछ साइड इफेक्ट्स भी हो सकते हैं जैसे जुड़ा बच्चे होना या फिर पेल्विक में दर्द होना आदि।
यदि महिला गर्भधारण नहीं करना चाहती है –
- गर्भ निरोधक गोलियां – ये दवाएं गर्भधारण रोकने के साथ-साथ मासिक धर्म को नियंत्रित करने, एंड्रोजन लेवल को कम करने, मुंहासे दूर करने और बालों के उगने की समस्या को नियंत्रित करने में भी मदद करती हैं।
- डायबिटीज की दवाएं – यदि महिला को डायबिटीज है, तो उसके लिए इन दवाओं को का इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि, यदि महिला को डायबिटीज नहीं है, तो भी इंसुलिन के स्तर को नियंत्रित करने के लिए इन दवाओं का इस्तेमाल किया जा सकता है। डायबिटीज की दवाएं आमतौर पर मोटापे से ग्रस्त महिलाओं को भी दी जा सकती हैं, जो शरीर का वजन कम करने और असामान्य रूप से उग रहे बालों को नियंत्रित करने में भी मदद करती है।
- सप्लीमेंट्री दवाएं – इन दवाओं की मदद से भी पीसीओएस से ग्रसित महिलाओं में मोटापा, बालों का असामान्य रूप से उगना और अन्य समस्याओं को नियंत्रित किया जा सकता है।
इसके अलावा अगर दवाओं व अन्य इलाज विकल्पों से स्थिति को नियंत्रित नहीं किया जा रहा है, तो सर्जरी भी की जा सकती है। हालांकि, अगर सर्जरी से भी इलाज संभव नहीं है तो असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (ART) जिसकी मदद से फर्टिलिटी का इलाज किया जाता है। इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) सबसे आम प्रकार की एआरटी थेरेपी है।