शर्मिला टैगोर ने Parenting पर बताई गहरी बात, बोलीं- बच्चों को बात के बीच में न टोकें

बॉलीवुड अभिनेत्री शर्मिला टेगोर (Actress Sharmila Tagore) ने अपने एक इंटरव्यू में पेरेंट्स को सलाह दी थी। उन्होंने कहा था कि माता-पिता को अपने बच्चों की बातें ध्यान से सुननी चाहिए, क्योंकि बच्चे सीधे तौर पर नहीं बताते कि वे आपसे क्या चाहते हैं। वो काफी घुमा-फिरा कर कहते हैं। इसलिए, आपको उन्हें बिना सोचे-समझे तुरंत जवाब नहीं देना चाहिए। इस गलती का भुगतान वे सैफ अली खान के समय कर चुकी हैं।
ऐसे में आपको भी अपने बच्चों की बातों को ध्यान से पहले सुनना चाहिए, उसके बाद ही उन्हें उसका जवाब देना चाहिए। वरना बीच में टोकने से बच्चों पर इसका गलत प्रभाव पड़ता है। आज के इस लेख में हम जानेंगे कि बच्चों की बात को काटने से कौन से नुकसान हो सकते हैं?

आत्मविश्वास में कमी
अगर बच्चों की बात को हर बार काट दिया जाता है तो पेरेंटस से बातचीत करने में उनका आत्मविश्वास कम हो जाता है। बात खत्म होने से पहले उन्हें लगेगा कि उन्हें गलत समझा गया है। ऐसे बच्चे भविष्य में अपने विचारों को माता-पिता के साथ शेयर नहीं कर पाते।
सीखने के मौके छूटते हैं
छोटे बच्चे अपनी बातों को बहुत क्लियर तरीके से नहीं बता पाते। हो सकता है कि आप समझने से चूंक जाएं कि वे क्या कहना चाहते हैं? उन्हें अपनी बात खत्म करने देने से बेहतर संचार को बढ़ावा मिलता है। वहीं, उनकी बात पूरी हुए बिना अपना रिप्लाई देने से उनके सीखने के मौके छूट जाते हैं।
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एक्टिव लिसनर नहीं बन पाते बच्चे
पेरेंट्स भले ही इस बात पर ध्यान न दें, लेकिन जो बच्चे पेरेंट्स को उनकी बातों को बीच में रोकते हुए देखते हैं, वे वैसे ही संचार करने लगते हैं। ऐसे बच्चे ध्यान से किसी की बात नहीं सुन सकते।

लैंग्वेज डेवलपमेंट में परेशानी
लैंग्वेज डेवलपमेंट बच्चों की ग्रोथ का जरूरी हिस्सा है। जब माता-पिता बच्चों के वाक्यों को काट देते हैं, इससे उनके वाक्य बनाने का अभ्यास करने की क्षमता कम हो जाती है। उन्हें भाषा के साथ एक्सपेरिमेंट करने, वाक्य बनाने और अपनी बात पूरी तरह से कहने के लिए समय चाहिए।
सेल्फ एस्टीम पर असर
बच्चों को इमोश्नली स्ट्रांग होने के लिए उनकी भावनाओं को महत्व देना जरूरी है। मगर, जब उन्हें टोका जाता है तो उन्हें लगता है कि उनका कोई महत्व नहीं है। इससे उनकी सेल्फ एस्टीम पर गहरा असर पड़ता है।