Sunset Anxiety: ढलती शाम, बढ़ता तनाव! सनसेट एंग्जाइटी का हो रहे आप शिकार!

Know What is Sunset Anxiety: क्या आपका भी सूरज ढलते ही मन बेचैन होने लगता है? उदासी, घबराहट या अजीब-सा खालीपन महसूस होता है? अगर हां, तो हो सकता है कि आप “सनसेट एंग्जाइटी” का अनुभव कर रहे हों। यह एक मानसिक स्थिति है, जिसमें शाम ढलते ही व्यक्ति के मन में नकारात्मक भावनाएं घर करने लगती हैं। आज हम आपको सनसेट एंग्जाइटी के लक्षणों और कारणों के बारे में बताने जा रहे हैं। इसके साथ ही इसे मैनेज करने के खास तरीकों के बारे में भी बताने जा रहे हैं। आइए जानते हैं।
सनसेट एंग्जाइटी के लक्षण | Know What is Sunset Anxiety
अगर आप इनमें से कुछ महसूस कर रहे हैं, तो यह सनसेट एंग्जायटी का संकेत हो सकता है—
- बेचैनी और घबराहट – सूर्यास्त के समय मन अस्थिर और चिंतित महसूस करना।
- मूड स्विंग्स – अचानक से उदासी या चिड़चिड़ापन आ जाना।
- नींद से जुड़ी समस्याएं – शाम होते ही अनिद्रा या थकान महसूस होना।
- अकेलापन महसूस होना – लोगों से कटने का मन करना या खुद को अलग-थलग महसूस करना।
- नकारात्मक विचारों का आना – अतीत की चिंताएं या भविष्य को लेकर डर लगना।
ऐसा क्यों होता है? | Know What is Sunset Anxiety
- बायोलॉजिकल कारण – शाम होते ही मेलाटोनिन (नींद को नियंत्रित करने वाला हार्मोन) बढ़ता है और सेरोटोनिन (खुशी का हार्मोन) कम होने लगता है, जिससे मूड प्रभावित होता है।
- रूटीन का बदलना – दिनभर की व्यस्तता के बाद अचानक से खालीपन महसूस होना।
- अकेलापन और डर – कई लोगों को रात की खामोशी असहज लगती है।
- सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर (SAD) – मौसम में बदलाव से भी कई लोगों की मानसिक स्थिति प्रभावित होती है।

सनसेट एंग्जाइटी को कैसे मैनेज करें? | Know What is Sunset Anxiety
- शाम का रूटीन बनाएं – कोई दिलचस्प एक्टिविटी करें, जैसे योग, वॉक, पेंटिंग, या किताब पढ़ना।
- घर में रोशनी सही रखें – हल्की और गर्म रोशनी से वातावरण को खुशनुमा बनाएं।
- म्यूजिक थेरेपी अपनाएं – रिलैक्सिंग या पसंदीदा संगीत सुनें, जिससे मन शांत हो।
- परिवार और दोस्तों से जुड़ें – अकेलापन महसूस होने पर अपनों से बात करें।
- कैफीन और स्क्रीन टाइम कम करें – शाम को चाय-कॉफी और मोबाइल/टीवी का ज्यादा इस्तेमाल न करें।
इस बात का जरूर रखें ख्याल | Know What is Sunset Anxiety
अगर यह परेशानी लंबे समय तक बनी रहे और आपकी रोजमर्रा की जिंदगी पर असर डालने लगे, तो मनोचिकित्सक या थेरेपिस्ट से सलाह लेना एक बेहतर विकल्प हो सकता है।
