ऑटिज़्म में स्पीच डिले की जटिलता: एक गहराई से समझ और समाधान


Speech Language Pathologist
The Hope Rehabilitation and Learning Centre, Jankipuram Branch, Lucknow
ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) में भाषण में देरी सिर्फ देर से बोलने का नाम नहीं है, बल्कि यह एक बहुआयामी चुनौती है जो मस्तिष्क की संरचना, सोचने की प्रक्रिया, और सामाजिक-संवाद क्षमताओं के बीच जटिल रिश्तों में छिपी होती है। शोध के अनुसार, लगभग 25-30% ऑटिस्टिक व्यक्तियों में कार्यात्मक भाषा का विकास नहीं हो पाता।

मस्तिष्क का भूगोल – कैसे ब्रेन संरचना प्रभावित करती है भाषा
–ब्रेन कनेक्टिविटी – रास्तों की जाल बुनावट: दिमाग एक नेटवर्क की तरह होता है जिसमें अलग-अलग हिस्से आपस में जुड़कर सोचने, समझने और बोलने में मदद करते हैं। ऑटिज़्म में ये रास्ते यानी “कनेक्टिविटी” असामान्य हो सकती है। fMRI और DTI स्कैन से पता चला है कि भाषा से जुड़े हिस्से जैसे ब्रॉका और वर्निके क्षेत्र, सामाजिक व्यवहार नियंत्रित करने वाले हिस्से (जैसे एमिगडाला, प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स) और मोटर कंट्रोल (सेरिबेलम, मोटर कॉर्टेक्स) में कनेक्टिविटी की गड़बड़ी होती है।
-मिरर न्यूरॉन सिस्टम – नकल से सीखने की ताकत: यह सिस्टम हमें दूसरों को देखकर उनके भाव, हरकतें और बोलचाल की शैली समझने और अपनाने में मदद करता है। ऑटिज़्म से ग्रसित बच्चों में मिरर न्यूरॉन एक्टिविटी कम होती है, जिससे वे इमिटेशन (अनुकरण) के ज़रिए भाषा सीखने में पीछे रह जाते हैं।
-सेरिबेलम – सिर्फ संतुलन नहीं, भाषा भी: सेरिबेलम ध्यान, स्मृति और भाषा संसाधन में भी अहम भूमिका निभाता है। 40% ऑटिस्टिक बच्चों में सेरिबेलर असामान्यता पाई गई है।
सोच की नींव – कॉग्निटिव प्रोसेस का योगदान
–कार्यकारी कार्यप्रणाली (Executive Function): योजना बनाना, बोलने से पहले विचार करना, और संवाद के दौरान ध्यान बनाए रखना शामिल है। 50-80% ऑटिस्टिक बच्चों में कार्यकारी कार्यक्षमता में कमी पाई जाती है।
-ध्यान और फोकस: 30-60% बच्चों में ADHD जैसे लक्षण पाए जाते हैं, जिससे वे भाषा सीखते समय ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते।
-संवेदी प्रक्रिया (Sensory Processing): 69-95% बच्चों में साउंड, लाइट या टच के प्रति अधिक संवेदनशीलता होती है, जिससे वे शोरगुल वाले वातावरण में बोलचाल नहीं कर पाते।

सामाजिक संवाद – जुड़ाव का दिल
-संयुक्त ध्यान (Joint Attention): 9 महीने की उम्र से ही ऑटिस्टिक बच्चों में संयुक्त ध्यान की कमी देखी जाती है।
-सामाजिक परस्परता (Social Reciprocity): संवाद की “लेन-देन” प्रक्रिया प्रभावित होती है।
–गैर-मौखिक संप्रेषण (Nonverbal Communication): चेहरे के भाव, हावभाव, और आवाज़ के उतार-चढ़ाव को समझने में कठिनाई होती है।

आपस में जुड़ी यह पूरी जाल – हर बच्चा है अलग
मस्तिष्क की संरचना, सोचने की प्रक्रिया और सामाजिक व्यवहार – ये तीनों एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं।
हस्तक्षेप की रणनीति – प्रभावी मदद के रास्ते
-जल्दी हस्तक्षेप (Early Intervention): EIBI से भाषा में उल्लेखनीय सुधार होता है।
-व्यक्तिगत मूल्यांकन और थेरेपी: बच्चे की जरूरतों के अनुसार थेरेपी।
-मल्टीडिसिप्लिनरी टीम: स्पीच थेरेपिस्ट, ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट, साइकोलॉजिस्ट, शिक्षक और माता-पिता मिलकर काम करें।
-कोर डिफिसिट्स पर ध्यान देना: केवल शब्द नहीं, बल्कि मूलभूत कठिनाइयों को सुधारें।
-संवेदी ज़रूरतों का सम्मान: शांत, संरचित और अनुकूल वातावरण जरूरी।
-अभिभावक की भागीदारी: माता-पिता की सक्रिय भूमिका से सुधार की गति बढ़ती है।

एक केस स्टडी – “नवांक” की बोलने की यात्रा
नवांक (बदला हुआ नाम), 3 वर्ष का एक बच्चा, जब The Hope Rehabilitation and Learning Centre, जानकीपुरम शाखा में लाया गया, तब वह बिल्कुल भी बोल नहीं पाता था। न तो वह किसी की आँखों में देखता था, न ही बातों का जवाब देता था। हल्की सी आवाज़ और भीड़भाड़ से घबरा जाता था। उसकी माँ के चेहरे पर हमेशा चिंता की लकीरें रहती थीं – “क्या मेरा बच्चा कभी बोल पाएगा?”
-उपचार की शुरुआत: संवेदी मूल्यांकन के साथ एक समर्पित थेरेपी प्लान तैयार किया गया, जिसमें स्पीच, OT और विशेष शिक्षा की संयुक्त शक्ति शामिल थी। सबसे पहले संयुक्त ध्यान (joint attention) और इमिटेशन पर काम किया गया। माता-पिता को घर पर भी थेरेपी को दोहराने के लिए प्रशिक्षित किया गया।
-परिणाम: 3 महीने में नवांक ने “पानी”, “माँ”, “ना” जैसे शब्द बोलने शुरू किए। 6 महीनों में वह दो शब्दों के वाक्य बोलने लगा – “मुझे दो”, “पापा आओ”। अब वह अपने साथियों के साथ खेलता है, और प्री-स्कूल में सम्मिलित हो गया है।
-यह क्या दर्शाता है?: यह केस एक प्रेरणास्पद उदाहरण है कि अगर सही समय पर सही हस्तक्षेप मिले, तो हर बच्चा अपनी संवाद क्षमता में आगे बढ़ सकता है।

संवाद की शक्ति को जगाना
स्पीच डिले कोई साधारण समस्या नहीं है, लेकिन सही जानकारी, सही समय पर हस्तक्षेप और संवेदनशील दृष्टिकोण के साथ हम बच्चों को संवाद और दुनिया से जुड़ने की शक्ति दे सकते हैं। हर बच्चा बोल सकता है, बस ज़रूरत है समझ और समर्थन की।
The Hope Rehabilitation and Learning Centre, Lucknow
स्पीच डिले, ऑटिज़्म, ADHD, और अन्य न्यूरोडायवर्स कंडीशनों के लिए संपूर्ण मूल्यांकन और इंटरवेंशन सुविधा।
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