बॉर्डरलाइन पर्सनालिटी डिसऑर्डर मेंटल हेल्थ से जुड़ी एक ऐसी समस्या जो व्यक्ति के मूड को पल-पल बदलने, उसे गुस्सा दिलाने, चीजों को लेकर इनसिक्योरिटी पैदा करने का काम करती है। शुरुआती स्टेज में लोग अक्सर इसकी पहचान नहीं कर पाते हैं, लेकिन धीरे-धीरे ये स्थिति बढ़ने पर गंभीर मानसिक बीमारी का रूप ले सकती है।
कभी-कभी लोगों में उम्र बढ़ने के साथ ये समस्या देखी जाती है। इस रोग से ग्रसित होने पर सोचने-समझने और चीजों पर रिएक्ट करने के तरीके पर काफी असर पड़ता है। मेंटल हेल्थ अवेयरनेस मंथ के मद्देनज़र आज इसी डिसऑर्डर के बारे में बात करते हैं।बॉर्डरलाइन पर्सनालिटी डिसऑर्डर की विशेष जानकारी देने के लिए एक्सपर्ट के रूप में आरोग्य इंडिया प्लेटफोर्म से जुडी हैं डॉ पारुल प्रसाद। ये लखनऊ की एक प्रसिद्ध मनोचिकित्सा विशेषज्ञ हैं और पिछले कई वर्षों से मरीजों को उनकी समस्याओं से निजात दिला रही हैं। उन्हीं से जानते हैं कि आखिर बॉर्डरलाइन पर्सनालिटी डिसऑर्डर है क्या है?
डॉ पारुल प्रसाद बताती हैं कि बॉर्डरलाइन पर्सनालिटी डिसऑर्डर, पर्सनालिटी डिसऑर्डर का एक सब टाइप है, जिसमें आपके व्यक्तित्व में कुछ प्रवृत्तियां रहती हैं, कुछ समस्यायें रहती हैं। जिसकी वजह से आपकी डे टू डे फंक्शनिंग इंम्पेयर होती है। इसकी वजह से आपकी ओवरऑल क्वालिटी ऑफ लािफ डिस्टर्ब होती है। इसमें अकेले व्यक्ति को अन्किल्यर सेंस ऑफ सेल्फ रहता है। उसके लाइफ का उद्देश्य क्या है, इसके बारे में वह कंफ्यूज रहता है।
लोगों को नहीं पता होता है कि वे मानसिक बीमारी से जूझ रहे हैं,
इस बीमारी से जूझ रहे लोगों को नहीं पता होता है कि वे मानसिक बीमारी से जूझ रहे हैं। सामान्यतया जो इस बीमारी से जूझ रहे होते हैं, उनके आसापास रहने वाले लोगों को ही पता होता है जिसकी वजह से उनकी लाइफ बहुत ज्यादा डिटेल हो जाती है। ऐसे में मरीजों की काउंसिलिंग कराना बहुत जरूरी हो जाता है। ऐसे पेशेंट्स में डिप्रेशन बहुत ज्यादा कॉमन होता है।
इस बीमारी से जूझ रहे लोगों का इलाज करना आसान काम नहीं है
पेशेंट में इनसाइट नहीं रहती इसलिए वो खुद से ट्रीटमेंट के लिए तैयार नहीं होते। ऐसे में फैमिली मेंबर्स को उन लोगों को कन्विंस करना पड़ता है और पूरी फैमिली सेटिंग में काऊंसिलिंग होती है। उनके अलग से सेशन्स होते हैं, जिसको हम डीबीटी या डायलेक्टिकल बिहेवियर थेरेपी बोलते हैं। इसके अलावा मेडिसिन्स का रोल है, लेकिन बहुत ज्यादा रोल नहीं है क्योंकि मेडिसिन्स, बहुत लंबे समय के लिए पेशेंट्स न तो लेते हैं और न ही दिया जाता है।
युवाओं को ये डिसऑर्डर किस तरह अपनी गिरफ्त में ले रहा है?
पर्सनालिटी डिसऑर्डर्स का 15-16 से लेकर 20 साल तक में पहचान कर ली जाती है। जिसको भी पर्सनालिटी डिसऑर्डर शुरू होगा वो इस एज ग्रुप में शुरू हो चुका होगा। मुख्यता एज ग्रुप भी ऐसी होती है जो टीनेजर्स एक्सपेरिमेंटल वाले फेज में रहते हैं लेकिन जो टीनएज वाला एक ग्रोथ है, वो काफी अलग होता है।
इस डिसऑर्डर से कैसे बचें?
- ज्यादा समय अकेले न बितायें।
- दोस्तों, परिवार या किसी अपने के साथ फीलिंग्स को शेयर करने की कोशिश करें।
- अपनी पसंदीदा हॉबी को समय दें।
- दिमाग पर ज्यादा जोर न पड़ने दें, कुछ ऐसा करने के लिए खोजिए जिससे आपको खुशी मिलती हो।
- अपने अच्छे समय को याद कीजिए, ध्यान रखिए कि वो पल दोबारा आ सकते हैं। आपको बस अपने दिमाग पर काबू पाना है।
- मनोरोग विशेषज्ञ से सलाह लेने में बिल्कुल मत झिझकिए।