मनोचिकित्सक डॉ. पारुल प्रसाद ने बताया- सुसाइड करने से पहले इंसान में दिखते हैं लक्षण
लखनऊ (अभिषेक पाण्डेय)। आत्महत्या के बढ़ते मामले, वैश्विक स्तर पर एक गंभीर चिंता का विषय हैं। आत्महत्या के कारण हर साल दुनियाभर में लाखों लोग अपना जीवन समाप्त कर लेते हैं। भारत में भी ये समस्या बड़ी चिंता बनकर उभर रही है। विशेषज्ञ कहते हैं, आत्महत्या के विचार आना गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का संकेत है। इससे यह भी पता चलता है कि व्यक्ति लंबे समय से तनाव-अवसाद में जी रहा है, जिसका अगर समय रहते निदान और उपचार हो गया होता तो स्थिति को बेहद खराब होने से रोका जा सकता है।

(मनोचिकित्सक डॉ. पारुल)
हाल ही में एक खबर ने पूरे बॉलीवुड हिला दिया था। दरअसल, एक्ट्रेस मलाइका अरोड़ा और अमृता अरोड़ा के पिता अनिल कुलदीप मेहता ने छठी मंजिल से कूदकर आत्महत्या यानी सुसाइड कर लिया था। हालांकि, कारण की पुष्टि ही नहीं हो पाई है, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या सुसाइड करने से पहले इंसान को रोका नहीं जा सकता है? इसी सवाल को लेकर हम मनोचिकित्सक डॉ. पारुल प्रसाद के पास पहुंचे। डॉ. पारुल प्रसाद ने बताया कि मेंटल हेल्थ खराब होने से आत्महत्या करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। सबसे बड़ी वजह है कि उन्हें पहचानना मुश्किल होता है, जिस वजह से आत्महत्याओं को रोकना मुश्किल हो रहा है। लेकिन, अगर आप बारीकी से ध्यान दें तो ऐसे लोग आत्महत्या की कोशिश करने से पहले कई सारे संकेत देते हैं। लोग इन लक्षणों को आम समझ लेते हैं और इग्नोर कर देते हैं। सुसाइड करने की इच्छा को सुसाइड टेंडेनसी कहा जाता है।

आत्महत्या के भी होते हैं प्रकार!
मनोचिकित्सक डॉ. पारुल बताती हैं कि आत्महत्या के दो प्रकार होते हैं। पहले- किसी मानसिक बीमारी के कारण और दूसरा- इम्पल्सिव। उन्होंने बताया, ‘इन्पस्लिव सुसाइड की वजह होती है घरेलू विवाद, परीक्षा के नतीजे मन मुताबिक न आना, यानी कुल मिलाकर अचानक से आत्महत्या करने की सोचना। दूसरे पहलू की बात करें तो मानसिक बीमारियों की वजह से भी यह कदम उठाया जाता है। बीमारियों की बात की जाए तो अवसाद, बाईपोलर डिसऑर्डर, स्किजोफ्रेनिया, क्रोनिक बीमारियां जैसे- कैंसर, टीबी आदि से ग्रसित मरीजों में आत्महत्या करने का रिस्क रहता है।’
इन लक्षणों पर ध्यान देने की है जरूरत
डॉ. पारुल द्वारा दी गई जानकारियों के मुताबिक, मानसिक बीमारियों से जूझ रहे मरीजों में ‘सुसाइडल थॉट्स’ आना आम बात है। हालांकि, कुछ लक्षणों पर ध्यान देने की सबसे ज्यादा जरूरत है, जिससे उन्हें रोका जा सके। सबसे पहले मन उदास रहने लगता है। जो सुसाइड एटेम्पट करने की कोशिशों में रहते हैं, उनकी बातचीत में ये साफ झलकता है कि उनके पास अब ऑप्शंस की कमी है। इंसान दूसरों से अलग रहने लगता है, न ज्यादा बात करता है और ना ही हंसी-मजाक करता है।
इसके अलावा जो ये ठान लेते हैं कि उन्हें आत्महत्या करनी ही है, वे अचानक से वसीहत लिखना शुरू कर देते हैं, पुराना कर्जा उतारने की कोशिशों में लग जाते हैं, दोस्त-रिश्तेदारों से कॉल-मैसेज पर बातचीत करके माफी मांगते हैं। हालांकि, ये कॉमन लक्षण जरूर हैं, लेकिन मानसिक रूप से बीमार लोगों में अगर के लक्षण नजर आएं तो ये स्ट्रोंग पॉइंटर्स हैं, जिन्हें तुरंत इंडीकेट करना जरूरी होता है। इसके साथ ही निराशाजनक व्यवहार भी एक महत्वपूर्ण लक्षण है, जिससे पहचानना जरूरी है।
कन्वर्सेशन पर भी ध्यान देने की जरूरत
डॉ. पारुल बताती हैं कि ऐसा इंसान अचानक से अलग बर्ताव करने लगता है, जोकि उसकी बातचीत में साफ नजर आता है। जैसे- मजाक या गंभीर होकर मरने की इच्छा बताना, गंभीर शर्म और गिल्ट की बात करना, दूसरों पर बोझ बनने की बात करना, अत्यधिक दुखी, चिंतिंत, गुस्से में रहना, मरने के बारे में प्लान या रिसर्च करना, दोस्तों व अपनों से दूरी बना लेना और अलविदा की बात करना, अत्यधिक मूड स्विंग्स होना, ड्रग्स या शराब की लत होना आदि। उन्होंने यह भी बताया कि अगर किसी को आत्महत्या करने के विचार आते हैं तो उसे तुरंत लोगों, दोस्तों व एक्सपर्ट की मदद लेनी चाहिए। यह एक मानसिक समस्या है, जिसे आसानी से दूर किया जा सकता है।
क्या कहते हैं आंकड़ें?
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट एक्सीडेंटल डेथ्स एंड स्यूसाइड्स इन इंडिया 2022 के अनुसार, वर्ष 2021 में 10,881 किसानों और कृषि श्रमिकों के मुकाबले 2022 में 11,290 लोगों ने आत्महत्या की। 2022 में अखिल भारतीय आत्महत्या दर (एक लाख की आबादी पर आत्महत्या) 12.4 फीसदी रही जो इससे पहले 12 फीसदी थी। आंकड़ों के लिहाज से इनकी गणना की जाए देश में 2022 में हर घंटे 19 लोगों ने आत्महत्या की। खेती-बाड़ी के क्षेत्र में हर घंटे एक से अधिक किसानों और कृषि श्रमिकों ने आत्महत्या की। देशभर में हुईं 18.4 फीसदी आत्महत्याओं की वजह गंभीर बीमारियां रहीं। व्यावसायिक क्षेत्र में 2022 के दौरान आत्महत्या करने वालों में सबसे अधिक संख्या 26.4% दिहाड़ी मजदूरों की थी। इसी अवधि के दौरान 14.8% घरेलू महिलाओं ने भी आत्महत्या की, जबकि 2021 में इनकी संख्या क्रमश: 25.6 और 14.1 फीसदी थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, 15 से 19 साल के युवाओं के बीच मौत की चौथी सबसे बड़ी वजह आत्महत्या है. लोग अवसाद, लाचारी और जीवन में कुछ नहीं कर पाने की हताशा के चलते आत्महत्या करते हैं। इसके अलावा आत्महत्या करने की मेडिकल वजहें भी हो सकती हैं।
छात्रों के बीच बढ़ती आत्महत्या की दर इन दिनों सुर्खियों में है। साल 2022 में कुल छात्र आत्महत्याओं में 53% पुरुष छात्र थे। हालांकि, 2021 और 2022 के बीच, पुरुष छात्र आत्महत्याओं में 6% की कमी आई, जबकि छात्राओं की आत्महत्या में 7% की वृद्धि हुई है। छात्रों पर पड़ रहा पढ़ाई का अनावश्यक दबाव, हम उम्र साथियों के साथ तुलना जैसी स्थितियां मानसिक तनाव बढ़ा रही हैं।
10 सितंबर को मनाया जाता है विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस
वैश्विक स्तर पर बढ़ते आत्महत्या की रोकथाम के लिए योजना बनाने, विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से आत्महत्याओं को रोकने के प्रयास को लेकर लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से हर साल 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाया जाता है। आत्महत्या रोकथाम में समाज के हर एक व्यक्ति की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। अपने आसपास रहने वाले, दोस्तों, रिश्तेदारों, साथ काम करने वाले लोगों की स्थिति की हम सभी को समझ होती है। ऐसे लोगों में चाहे वह मूड हो या व्यवहार या यहां तक कि उनके द्वारा कही गई बातों में भी कुछ अलग सा बदलाव या निराशा महसूस कर रहे हैं तो उसपर गंभीरता से ध्यान दिया जाना चाहिए। इस तरह के संकेतों का समय रहते पहचान और इसपर गौर करना, व्यक्ति से बात करना एक संभावित आत्महत्या की रोकथाम में मददगार हो सकता है।