क्रोनिक बीमारियां गंभीर चिंता का विषय बनी हुई हैं। 90 के दशक में जिन स्वास्थ्य समस्याओं को उम्र बढ़ने के साथ होने वाली दिक्कतों को रूप में जाना जाता था, वह आज के समय में युवाओं और बच्चों में भी देखी जा रही हैं। इस संबंध में किए गए अध्ययनों से पता चलता है कि कई तरह के पर्यावरणीय और आहार में गड़बड़ी वाले कारक जिम्मेदार हो सकते हैं। वैज्ञानिकों ने पाया कि हम सभी खान-पान के माध्यम से रोजाना जाने-अनजाने कई प्रकार के रसायनों को निगल रहे हैं, जिनसे सेहत को गंभीर खतरा हो सकता है।
शरीर में प्रवेश कर रहे हानिकारक तत्व
एक हालिया रिपोर्ट में शोधकर्ताओं की टीम ने चेताया है कि खान-पान की चीजों के माध्यम से हमारे शरीर में दैनिक रूप से कई प्रकार के हानिकारक तत्व प्रवेश कर रहे हैं। मुख्यरूप से पैक्ड फूड वाली प्लास्टिक की थैलियों, बोतलों, कंटेनर और प्लास्टिक बैग के माध्यम से रसायन और माइक्रोप्लास्टिक हमारे शरीर में पहुंच रहे हैं। शोधकर्ताओं ने बताया कि इनमें से कई कैंसर, स्थाई आनुवंशिक परिवर्तन, प्रजनन प्रणाली में गड़बड़ी और शरीर में विषाक्तता बढ़ाने वाले हो सकते हैं। हम इन चीजों से इस किदर घिरे हुए हैं कि खतरे को समझते हुए भी इनसे दूरी नहीं बना पा रहे हैं, ये भविष्य के लिए निश्चित ही बहुत समस्याकारक स्थिति हो सकती है।
अध्ययन में वैज्ञानिकों को मिले चौकानें वाले साक्ष्य
जर्नल ऑफ एक्सपोजर साइंस एंड एनवायरमेंटल एपिडेमियोलॉजी में प्रकाशित अध्ययन में वैज्ञानिकों ने भोजन के संपर्क में आने वाले 14,000 से अधिक अलग-अलग रसायनों-यौगिकों की पहचान की है। नए अध्ययन से पता चला है कि उनमें से करीब 3,601 मानव शरीर में पाए गए हैं। इसे फूड कॉन्टैक्ट कैमिकल (एफसीसी) का करीब 25 फीसदी माना जा सकता है। वैज्ञानिकों ने चिंता जताई है कि इनमें से अधिकांश रसायनों के बारे में बहुत ज्यादा पता भी नहीं है कि ये हमारे शरीर को किस-किस तरह से नुकसान पहुंचा सकते हैं? ज्यादातर ज्ञात रसायनों को कैंसर कारक और प्रजनन विकारों के लिए जिम्मेदार पाया गया है।
अध्ययन में दुष्प्रभावों के बारे में भी पता चला
वैज्ञानिकों ने बताया कि इन हानिकारक रसायनों और तत्वों में बिस्फेनॉल ए (BPA) को प्रमुख रूप से हाइलाइट किया गया है। अध्ययनों में इसके कई दुष्प्रभावों के बारे में पता चलता है। इससे होने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण कई जगहों पर इसे प्रतिबंधित किया जा चुका है। मुख्यरूप से कंटेनरों और शिशु की बोतलों में इस कैमिकल की पहचान की गई थी। इतना ही नहीं उत्पाद बनाने वाली कंपनियों को निर्देश भी दिया गया है कि वह स्पष्ट करें कि ये बीपीए फ्री हैं या नहीं?
शोधकर्ताओं ने प्लास्टिक की थैलियों, बोतलों, कंटेनर के माध्यम से शरीर में कई प्रकार के मेटेल, कीटनाशक और वाष्पशील कार्बनिक यौगिक भी पाए जो सांस के साथ शरीर में जा सकते हैं। इसके अलावा फथलेट्स रसायन को लेकर भी चिंता जताई गई है जिनका उपयोग प्लास्टिक, परफ्यूम-डियोड्रेंट और व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों को बनाने के लिए किया जाता है। टीम ने इंसानों के शरीर में पाए जाने वाले एफसीसी के बारे में जानने की कोशिश की तो पता चला कि कई रसायनों और यौगिकों के दुष्प्रभावों के बारे में जानकारियों का अभाव है।
इन्हें प्रतिबंधित करना जरूरी
शोधकर्ताओं ने बताया, मनुष्यों में एफसीसी का पता लगाने के लिए रक्त, मूत्र, त्वचा और स्तन के दूध के सैंपलों की जांच की गई है। खाद्य पैकेजिंग फोरम में वरिष्ठ वैज्ञानिक और अध्ययन के प्रमुख लेखक बिरगिट ग्यूके कहते हैं, ये शोध खाद्य पदार्थों के संपर्क में आने वाले रसायनों और इसके मानव स्वास्थ्य पर जोखिम के बीच संबंध स्थापित करने में मदद करता है। इनमें से कई के खतरनाक प्रभाव हो सकते हैं और अभी भी कई रसायन-यौगिक हैं जिनका परीक्षण होना बाकी है। ये दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म देने वाली समस्या हो सकती है। इन्हें प्रतिबंधित करना जरूरी है।