स्वस्थ’ और ‘फिट’ शब्द अक्सर एक-दूसरे के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं, लेकिन असल में देका जाये तो दोनों में काफी अंतर है। सख्त व्यायाम और डाइट फॉलो करने वाला व्यक्ति भी कई तरह की अंदरूनी बीमारियों से ग्रस्त हो सकता है। हाल ही में Zerodha के CEO निथिन कामथ को हल्का स्ट्रोक होने की खबर ने इसी ओर ध्यान दिलाया है कि ‘फिट’ दिखना जरूरी नहीं कि ‘स्वस्थ’ होना भी हो।
स्वस्थ होने का वास्तव में मतलब क्या है?
हैदराबाद के अपोलो हॉस्पिटल्स के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ सुधीर कुमार का कहना है, “हम अक्सर यह गलती करते हैं कि अगर कोई बाहरी रूप से फिट दिखता है (जिसमें अच्छी मांसपेशियां और कार्डियोरेस्पिरेटरी क्षमता है), तो वह किसी भी बीमारी से ग्रस्त नहीं होगा। लेकिन एक फिट व्यक्ति भी बहुत अस्वस्थ हो सकता है।
इंटीग्रेटिव लाइफस्टाइल विशेषज्ञ ल्यूक कॉउटिन्हो का कहना है कि सच्चा स्वास्थ्य तब हासिल होता है “जब मन, शरीर और आत्मा एक साथ काम करते हैं।”
कॉउटिन्हो ने कहा, “आप फिट दिख सकते हैं, भारी वजन उठाने में सक्षम हो सकते हैं, शानदार फिगर के साथ सिक्स-पैक एब्स और बेदाग त्वचा हो सकती है, हफ्ते में सात दिन वर्कआउट कर सकते हैं और एक आकर्षक व्यक्तित्व हो सकता है। हालांकि, अगर आपके मन में नकारात्मकता है, आप दुखी और कृतघ्न रहते हैं, जल्दबाजी में समाधान ढूंढते हैं, संतुलन, लचीलापन और गतिशीलता की कमी रखते हैं, अपने शरीर के धीमे चलने के संकेतों को नजरअंदाज करते हैं, बुरा व्यवहार करते हैं और दया और करुणा की कमी रखते हैं, तो आप स्वस्थ नहीं हैं।” उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य और कल्याण की हमारी परिभाषा को व्यापक बनाने की जरूरत है, न कि केवल बाहरी दिखावट के आधार पर निर्णय लेने की।
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डॉ. दयानंद यलिगार ने स्वस्थ होने को “पूर्ण शक्ति और जोश रखने के साथ-साथ बीमारी के संकेतों से मुक्त होना बताया, जहां शारीरिक प्रणालियां सामंजस्य के साथ काम करती हैं।” स्वस्थ होने का मतलब शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक पहलुओं को मिलाकर समग्र कल्याण से है।
स्पर्श हॉस्पिटल के इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. सुराज कुमार कुलकर्णी ने कहा, “इसमें बीमारी या अस्वस्थता का न होना और शरीर के कार्यों का बेहतर तरीके से चलना और मानसिक स्पष्टता शामिल है। दूसरी ओर, फिट होने का मतलब शारीरिक फिटनेस से है, जिसमें कार्डियोवास्कुलर एंड्यूरेंस, मांसपेशियों की ताकत, लचीलापन और शरीर का संयोजन शामिल है।
कॉउटिन्हो ने कहा कि फिटनेस ज्यादातर बाहरी है, यह कहते हुए कि कई लोग जो शानदार शरीर के साथ फिट दिखते हैं, वे कैलोरी गिन रहे हैं, जिम में कड़ी मेहनत कर रहे हैं, फैट बर्नर या स्टेरॉयड पर निर्भर हैं, नींद की कमी के साथ मैराथन दौड़ रहे हैं, और आध्यात्मिक कक्षाओं में भाग ले रहे हैं, “फिर भी भावनात्मक रूप से, वे मानसिक उथलपुथल, नींद की कमी, हताशा, जहरीलेपन और नाखुशी से जूझते हैं – अपनी आत्मा से अलग हो जाते हैं।