पिछले कुछ सालों में हुए अध्ययन से पता चला है कि स्वास्थ्य के ऊपर अपने जेब से खर्च करने पर (OOPE) की वजह से हर साल 3-7 फीसदी भारतीय गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं। जबकि, गांव और गरीब राज्यों में इसका अधिक असर पड़ता है। स्वास्थ्य में ओओपीई की वजह से ऐसे समूह जो सुविधाओं से वंचित है, उनके ऊपर बुरा असर पड़ता है। हाल ही में भारत में स्वास्थ्य नीति पर काफी अधिक फोकस किया है। 25 सितंबर, 2024 को भारत सरकार (GOI) ने साल 2020-21 और 2021-22 के लिए भारत के राष्ट्रीय स्वास्थ्य खाता (NH) जारी किए है।
2021-22 के लिए उपलब्ध नई एनएचए रिपोर्ट के अनुसार, पिछले सालों में स्वास्थ्य वित्तपोषण मापदंडों में कई तरह के बदलाव दिखते हैं। 2013-14 और 2021-22 (चित्र 1) के बीच स्वास्थ्य में OOPE में तीव्र गिरावट देखी गई है, जो 2013-14 में 64.2 प्रतिशत से घटकर 2021-22 में 39.4 प्रतिशत हो गई है, जिस साल सरकार द्वारा नवीनतम डेटा जारी किया गया था। जबकि, महामारी के कारण स्वास्थ्य व्यय में वृद्धि की आवश्यकता थी। ऐतिहासिक आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि यह पूरे दशक में एक सतत प्रवृत्ति रही है। इसी अवधि के दौरान सरकारी स्वास्थ्य व्यय (GHE) 28.6 प्रतिशत से बढ़कर 48.0 प्रतिशत हो गया है। OOPE घटक को पीछे छोड़ने वाले GHE का अनुपात भारत की स्वास्थ्य नीति के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है, जिसे बनाने में कई साल लगे हैं।
कुल स्वास्थ्य व्यय (THE)
पिछला दशक ऐसा दौर भी रहा है, जब सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में कुल स्वास्थ्य व्यय (THE) में कमी आई। दूसरे शब्दों में राज्य और केंद्र सरकार दोनों की ओर से बढ़ा हुआ सार्वजनिक व्यय देश के स्वास्थ्य वित्तपोषण परिदृश्य को बदलने वाला प्राथमिक चालक था, जिससे भारतीय परिवारों पर स्वास्थ्य व्यय के बोझ में भारी कमी आई। साथ ही सुधार के बावजूद, कुल खर्च का 39.4 फीसदी अभी भी जेब से खर्च किया जाता है, जो आने वाले वर्षों के लिए एक बड़ी नीतिगत चुनौती है। 2021-22 के आंकड़ों को देखें तो भारत को अभी भी राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (NHP) 2017 के अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए एक लंबी दूरी तय करनी है, जो साल 2025 तक स्वास्थ्य पर सरकारी व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के 2.5 प्रतिशत तक पहुंचाने का है।
OOPE की रिपोर्ट
कुल GHE का करीब दो-तिहाई हिस्सा राज्यों द्वारा और एक-तिहाई हिस्सा केंद्र सरकार द्वारा वहन किया गया है। महामारी के दौरान केंद्र सरकार द्वारा खर्च में वृद्धि ने संरचना को थोड़े अंतर से बदल दिया है। हालांकि, 2022 के बाद, स्वास्थ्य के क्षेत्र में केंद्रीय बजट आवंटन का उपयोग आश्वस्त करने वाला नहीं रहा है। बजट अनुमानों की तुलना में वर्ष के अंत में बड़ी मात्रा में अप्रयुक्त धन शेष रह गया है।
स्वास्थ्य क्षेत्र के भीतर वास्तविक व्यय को प्रभावित करने वाले व्यवधानों और महामारी-प्रेरित आपातकालीन निधि की आवश्यकता कम होने के बावजूद, केंद्र सरकार द्वारा वास्तविक आवंटन महामारी-पूर्व स्तरों तक कम नहीं हुआ है, जो भविष्य में सरकारी कार्रवाई द्वारा संचालित OOPE में और कटौती की संभावना का संकेत है। सभी 70+ नागरिकों को शामिल करने के लिए AB-PMJAY के महत्वाकांक्षी विस्तार और सरकारी अस्पतालों द्वारा सार्वजनिक प्रणाली में धन वापस डालने की योजना की संभावनाओं के साथ सार्वजनिक क्षेत्र में धन को अवशोषित करने की क्षमता में सुधार होना तय है।