स्वास्थ्य और बीमारियां

युवाओं में क्यों बढ़ रहा Cancer का खतरा? आंकड़े हैं चौंकाने वाले

अगर आप सोचते हैं कि कैंसर सिर्फ बुजुर्गों को ही होता है, तो गलत सोंचते हैं. एक्सपर्ट्स का कहना है कि मोटापा, गलत खानपान और व्यायाम की कमी की वजह से आजकल युवाओं में भी तेजी से कैंसर फैल रहा है. पिछले 30 सालों में पेट के पित्त की थैली, कोलोन (बड़ी आंत), किडनी और अग्नाशय का कैंसर बहुत तेजी से बढ़ा है. पहले ये बीमारियां बुजुर्गों में ही होती थीं, लेकिन अब 40-50 साल से कम उम्र के लोगों में भी ये देखने को मिल रही हैं.

शोध के मुताबिक ज्यादा मीठा, नमक और जंक फूड खाना और व्यायाम ना करना इस बीमारी का मुख्य कारण है. सिडनी यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर रॉबिन वार्ड का कहना है कि 30 से 39 साल के उम्र वालों में पिछले 30 सालों में पित्त की थैली का कैंसर 200%, गर्भाशय का 158%, कोलोरेक्टल (बड़ी आंत) का 153%, किडनी का 89% और अग्नाशय का कैंसर 83% ज्यादा बढ़ गया है.

प्रोफेसर वार्ड कहती हैं कि ये बीमारी पुरुषों में ज्यादा होती है और उनमें इससे होने वाली मौत का खतरा भी ज्यादा रहता है. पुरुषों में प्रोस्टेट, फेफड़े और कोलोरेक्टल (बड़ी आंत) का कैंसर ज्यादा होता है, जबकि महिलाओं में ब्रेस्ट, फेफड़े और कोलोरेक्टल (बड़ी आंत) का कैंसर ज्यादा पाया जाता है.

कैंसर से बचाव

कुछ तरह के कैंसर जैसे सर्वाइकल और कोलोरेक्टल (बड़ी आंत) का इलाज शुरुआती स्टेज में पकड़ने पर आसानी से हो जाता है. लेकिन ब्रेन कैंसर जैसी बीमारियों में शुरुआती जांच का भी फायदा नहीं होता.

प्रोफेसर वार्ड कहती हैं कि सर्वाइकल और कोलोरेक्टल कैंसर से बचाव के सबसे अच्छे तरीके हैं. टीका लगवाने से सर्वाइकल कैंसर को रोका जा सकता है और शुरुआत में पता चलने पर इसका इलाज भी हो सकता है. ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (HPV) का संक्रमण सर्वाइकल कैंसर का मुख्य कारण होता है और टीका लगवाकर इससे बचा जा सकता है.

इसके अलावा, ब्रेस्ट, सर्वाइकल और कोलोरेक्टल (बड़ी आंत) कैंसर के लिए राष्ट्रीय जांच कार्यक्रमों को बढ़ाया जाए तो इससे इलाज में मदद मिलेगी और मौत का खतरा भी कम होगा.

प्रोफेसर वार्ड कहती हैं कि सही तरह के कैंसर के लिए शुरुआती जांच फायदेमंद होती है, मगर अभी जो जांच कार्यक्रम चल रहे हैं वो उम्र के हिसाब से होते हैं, ना कि जोखिम के हिसाब से. कुछ युवाओं में कैंसर का खतरा ज्यादा हो सकता है जबकि कुछ बुजुर्गों में कम. ऐसे में उम्र के हिसाब से जांच करवाना फायदेमंद नहीं हो सकता है. लेकिन जीनोमिक्स, बड़े डेटा और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) जैसी नई टेक्नोलॉजी से भविष्य में रिस्क-बेस्ड स्क्रीनिंग (खतरे के हिसाब से जांच) प्रोग्राम बनाए जा सकते हैं. इससे हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग जांच कार्यक्रम बनाए जा सकेंगे.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button