फेफड़ों का कैंसर फेफड़ों के भीतर असामान्य कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि है, जो स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा करती है। यह अक्सर मृत्यु सहित गंभीर परिणामों का कारण बनती है। फेफड़ों के कैंसर के लक्षण लंबे समय तक बने रहते हैं। जिसमें खांसी के साथ खून आना, सीने में दर्द और सांस लेने में परेशानी शामिल है। अभी तक स्मोकिंग को ही इसका सबसे बड़ा कारण बताया जा रहा था। पर हाल ही में एक नए शोध में फेफड़ों के कैंसर के लिए जिम्मेदार अनुवांशिक कारकों का उल्लेख किया गया है।
संभावित गंभीर स्वास्थ्य प्रभावों को कम करने के लिए शीघ्र चिकित्सा सहायता लेना आवश्यक है। उपचार का कोर्स रोगी के चिकित्सा इतिहास और बीमारी की गंभीरता से निर्धारित होता है। नॉन-स्माल सेल लंग कैंसर और स्मॉल सेल लंग कैंसर फेफड़ों के कैंसर के दो मुख्य प्रकार हैं। एससीएलसी कम बार होता है, यह आमतौर पर तेजी से विकसित होता है, जबकि एनएससीएलसी, अधिक सामान्य होने के कारण धीरे-धीरे आगे बढ़ता है।
द लांसेट में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन ने फेफड़ों के कैंसर के पारिवारिक इतिहास के बारे में बात की है। जो इस बीमारी के विशिष्ट प्रकार के विकसित होने के बढ़ते जोखिम के बीच संबंध पर प्रकाश डाला है। सिगरेट धूम्रपान फेफड़ों के कैंसर का प्रमुख कारण बना हुआ है। मगर आनुवंशिक प्रवृत्ति और पारिवारिक कारक भी किसी व्यक्ति की संवेदनशीलता में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
क्या कहता है अध्ययन
यह अध्ययन ताइवान में आयोजित किया गया था और इसमें 12,011 प्रतिभागियों को शामिल किया गया। जिसमें ऐसे व्यक्तियों में फेफड़ों के कैंसर के पारिवारिक इतिहास को जोड़ने के संकेत मिले, जिन्होंने कभी धूम्रपान नहीं किया। विशेष रूप से ताइवान में, जहां फेफड़ों का कैंसर धूम्रपान न करने वालों में प्रचलित है। यहां लगभग 60% मामलों का निदान चरण IV में किया जाता है।
किसको लंग कैंसर का ज्यादा जोखिम
यदि माता-पिता या भाई-बहन को यह बीमारी है, तो फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। इसका मतलब यह नहीं है कि यदि परिवार के किसी सदस्य को यह बीमारी है, तो उस व्यक्ति को फेफड़ों का कैंसर होगा ही। जिन लोगों में वंशानुगत कारकों के कारण फेफड़ों का कैंसर होने का खतरा अधिक होता है उनमें वे लोग शामिल हैं:
- 50 वर्ष से कम उम्र के लोग
- धूम्रपान न करने वाले
- महिलाओं को ज्यादा होता है पुरुषों की तुलना में जोखिम
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भारत में फेफड़ों का कैंसर
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के 2022 के अध्ययन के अनुसार, भारत में फेफड़ों के कैंसर के लगभग 70,275 मामले सामने आए थे। फेफड़ों का कैंसर उच्च मृत्यु दर के साथ देश में सबसे आम घातक बीमारियों में से एक है। जो कैंसर से संबंधित सभी मौतों का 9.3% है। वर्तमान पूर्वानुमान मामलों की संख्या में तेज वृद्धि दर्शाते हैं, जो इसकी बढ़ती आवृत्ति और विलंबित निदान को देखते हुए चिंताजनक है। अगले दो से तीन वर्षों में भारत में पुरुषों के लिए 81,219 मामले और लड़कियों के लिए 30,109 मामलों में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है।
फेफड़ों के कैंसर और आनुवंशिकी के बीच संबंध:
हालांकि धूम्रपान अभी भी फेफड़ों के कैंसर का मुख्य कारण है। पिछले अध्ययनों से पता चला है कि आनुवंशिक कारक भी इसमें अहम भूमिका निभा सकते हैं। वैश्विक रोगी डेटा के अनुसार, फेफड़ों के कैंसर के 80-90% मामले धूम्रपान के कारण माने जाते हैं। लगभग 8% मामलों में आनुवंशिक और पारिवारिक इतिहास होता है। फेफड़ों के कैंसर का पारिवारिक इतिहास हमेशा उसी या भविष्य की पीढ़ियों में बीमारी के उच्च जोखिम का संकेत नहीं देता है। अन्य शोध से पता चला है कि धूम्रपान न करने वालों 50 वर्ष से कम उम्र के लोगों और महिलाओं में फेफड़ों के कैंसर के विकास में आनुवंशिकता प्रमुख भूमिका निभाती है।
इस कैंसर के पारिवारिक इतिहास के आधार पर स्तरीकरण के बाद भी निष्क्रिय धूम्रपान जोखिम, खाना पकाने के लिए संचयी जोखिम, वेंटिलेशन के बिना खाना बनाना और पुरानी फेफड़ों की बीमारियों का पूर्व इतिहास फेफड़ों के कैंसर से जुड़ा नहीं था। परिवारों में देखे जाने वाले कुछ आनुवंशिक उत्परिवर्तन फेफड़ों के कैंसर के खतरे को बढ़ाते हैं, हालांकि ये सभी उत्परिवर्तन पीढ़ियों तक नहीं चलते हैं। इसलिए यह जरूरी है कि आप फेफड़ों के स्वास्थ्य पर उचित ध्यान दें। अगर फैमिली हिस्ट्री में ऐसा कुछ रहा है, तो समय रहते उपचार की पहल करें।