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ये लक्षण मतलब आप भी हैं Phobia के शिकार, बीमारी जो आपको बना रही ‘पागल’

किसी ना किसी चीज से डर सबको लगता है, मगर जब ये सामान्य से ज्यादा हो जाए तो इस पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है। फोबिया एक ऐसी बीमारी है जो डर और भय के साथ जुड़ी होती है। इसमें पीड़ित व्यक्ति को किसी भी चीज, स्थान, परिस्थिति और वस्तु को लेकर डर हो सकता है। फोबिया में अत्यधिक और ओवर रिएक्शन शामिल होता है। जब डर जरूरत से ज्यादा बढ़ जाए तो वह मानसिक विकार का रूप ले लेता है।

फोबिया के लक्षण महसूस होने पर महत्वपूर्ण कदम उठाएं, चिकित्सक से परामर्श लें और सही उपचार कराएं। किसी भी डर यानी फोबिया का कारण और लक्षण होते हैं और इससे बचाव के लिए इलाज भी होता है। आइए विस्तार से जानते हैं फोबिया के कारण से निवारण तक सब कुछ –

‘फोबिया’ ग्रीक भाषा के शब्द फोबोस (Phobos) से बना है। फोबिया डर का एक खतरनाक लेवल होता है। फोबिया में डर इतना ज्यादा लगता है कि इंसान इसमें किसी की जान भी ले सकता है या अपनी जान भी ले सकता है। फोबिया के चलते अपने रिश्तों, सामाजिक जीवन और दफ्तर में भी बहुत दिक्कत आने लगती है। इसका लक्षण व्यवहार में तो दिखाई देता है मगर सामने से देखने में यानी व्यक्तित्व में यह लक्षण नहीं दिखता है इसलिए इसको गंभीरता से लेना चाहिए।

आज इसी पर बात करने के लिए आरोग्य इंडिया प्लेटफोर्म से जुड़े हैं लखनऊ स्थित बलरामपुर चिकित्सालय मनोरोग विभाग के परामर्शदाता डॉ सौरभ अहलावत। आइये उन्हीं से फोबिया के बारे में विस्तार से जानते हैं….

डॉक्टर के अनुसार, फोबिया का मतलब होता है कि किसी भी स्पेसिफिक चीज से डर लगना। जैसे किसी को कुत्ते से डर लगता है, तो ये कॉमन फोबिया है। किसी को भीड़भाड़ वाली जगह से डर लगता है तो ये एग्रो फोबिया है। अगर किसी को बंद कमरे से डर लगता है तो ये क्लस्ट्रोफोबिया है। खून से डर लगता है तो ये ब्लड टाइप फोबिया है। किसी को लिजर्ड से डर लगता है, स्पाइजर से लगता है, मकड़ियों से डर लगता है तो ये स्पेसिफिक फोबिया होता है। इसीलिए इसे ज्यादातर फोबिक एंग्जायटी कहते हैं।

कौन-सा फोबिया है जिसके मरीज सबसे ज्यादा देखने को मिल रहे हैं? कैसे पता चलता है कि मरीज फोबिया का शिकार है?

एनिमल टाइप फोबिया होता है जैसे किसी को कुत्ते से डर लगता है, भैंस से डर लगता है, शिर से डर लगता है, लिजर्ड से डर लगता है, जिसे एरेक्नो फोबिया कहते हैं। ये मोस्ट कॉमन एनिमल टाइप होते हैं।

फोबिया से ग्रसित मरीजों को लेकर समाज में किस तरह की भ्रांतियां हैं?

हमारी सोसाइटी में बहुत स्टिग्मा है। कोई भी पेशेंट साइकेट्रिक के पास तब जाता है जब उसको लगने लगता है कि उसका काम अब चलने वाला नहीं है। जैसे कुछ लोग गांव में लोग इलाज करा रहे हैं, 2-4 साल हो गये हैं, तब लगता है कि अब साइकेट्रिक के पास जाना चाहिए। जितना ज्यादा लेट होगा यह बढ़ता जायेगा। जब यह बहुत लेट होता है तो दिमाग में सुसाइड के ख्याल आने लगते हैं।

फोबिया का इलाज कैसे किया जाता है?

इसमें दवाएं,काउंसिलिंग और थेरेपी का प्रयोग किया जाता है। बिहेवियरल थेरेपी, कोग्निटिव थेरेपी और डिसेंसिटाइजेशन थेरेपी का इस्तेमाल किया जाता है।

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