50 साल से अधिक आयु के भारतीय वयस्कों में से 80 प्रतिशत से अधिक लोगों को दाद की समस्या होती है लेकिन इसके आजीवन जोखिम के बारे में जानकारी नहीं होती है। जबकि यह वही आयु सीमा है जिन्हें इस बीमारी का सबसे ज्यादा खतरा होता है।
यह जानकारी एक वैश्विक रिपोर्ट से सामने आई है, जिसे चल रहे दाद जागरूकता सप्ताह के तहत जारी किया गया है। दवा निर्माता कंपनी ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन द्वारा जारी यह रिपोर्ट 12 देशों के 50 वर्ष और उससे अधिक उम्र के 3,500 वयस्कों पर किए गए सर्वेक्षण पर आधारित है, जिनमें भारत भी शामिल है।
अध्ययन से यह सामने आया
अध्ययन के अनुसार, दुनियाभर में लोगों के एक बहुत बड़े हिस्से को दाद होने के जोखिम के बारे में समझ नहीं है। सर्वेक्षण में शामिल 86 प्रतिशत लोगों ने इस जोखिम को कम आंका। भारत में किए गए सर्वेक्षण में 500 लोगों को शामिल किया गया था, जिनमें से 250 हिंदी बोलने वाले और 250 अंग्रेजी बोलने वाले थे।
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यह पाया गया कि भारत में 81 प्रतिशत अंग्रेजी बोलने वाले और 86 प्रतिशत हिंदी बोलने वाले लोगों को दाद के खतरे का कम आंकलन किया गया। सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि एक बड़ी संख्या को इस दर्दनाक स्थिति के लक्षणों के बारे में भी जानकारी नहीं थी। दाद वैरीसेला-जोस्टर वायरस (वीजेडवी) के पुन: सक्रिय होने के कारण होता है, जो वही वायरस है जो चेचक का कारण बनता है। जैसे-जैसे लोग बूढ़े होते जाते हैं, संक्रमण के प्रति उनकी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया की क्षमता कम हो जाती है, और इससे उन्हें दाद होने का खतरा बढ़ जाता है। यह रोग आम तौर पर दाने के रूप में होता है, जिसमें छाती, पेट या चेहरे पर दर्दनाक फफोले होते हैं। दर्द को अक्सर जलन, चुभन या झटके जैसा बताया जाता है।
डॉक्टर ने क्या कहा
ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन फार्मास्युटिकल्स इंडिया की कार्यकारी उपाध्यक्ष (चिकित्सा मामले) डॉ. रश्मि हेगड़े ने एक बयान में कहा, “यह सर्वेक्षण 50 से अधिक उम्र के वयस्कों में दाद के जोखिम के बारे में जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता को रेखांकित करता है। दाद 50 साल से अधिक उम्र के लोगों के दैनिक जीवन को काफी बाधित कर सकता है और उन्हें बहुत असुविधा का कारण बन सकता है। इस दाद जागरूकता सप्ताह में, हम सभी को अपने डॉक्टर से इस पीड़ादायक स्थिति और इससे बचाव के तरीकों के बारे में बात करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”