बसंत ऋतु में उत्तराखंड के पहाड़ हमेशा ही फूलों की खुशबू से महकते रहते हैं. इन्हीं फूलों में मध्य हिमालयी क्षेत्रों में उगने वाला एक अद्भुत और बेहद खूबसूरत बुरांश भी शामिल है. उत्तराखंड में इसकी 5 प्रजातियां पाई जाती हैं, जो आमतौर पर 1500 से 4000 मीटर के बीच की ऊंचाई में खिलती हैं लेकिन सफेद बुरांश का इस ऊंचाई पर खिलना एक बेहद दिलचस्प बात है और यह एक जहरीला फूल होता है.
इन दिनों चमोली जिले के जोशीमठ ब्लॉक में समुद्र तल से 1800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित सेलंग गांव में सफेद बुरांश खिले हैं, जो बेहद खूबसूरत दिखाई देते हैं. गौरतलब है कि सफेद बुरांश समुद्रतल से 9 हजार से 10 हजार फीट की ऊंचाई पर खिलता है, लेकिन सेलंग गांव में पिछले कई सालों से सफेद बुरांश का खिलना लोगों को काफी हैरत में डाल रहा है.
हिमालयी क्षेत्रों में 1500 से 4000 मीटर की ऊंचाई पर बुरांश का पेड़ पाया जाता है. बुरांश के फूलों की बात की जाये तो ये सिर्फ लाल रंग का नहीं होता है. बल्कि ये कई रंगों में पाया जाता है. लेकिन उत्तराखंड में ये लाल और सफेद रंगों में पाया जाता है. बुरांश में कई औषधीय गुण पाए जाते हैं. बुरांश में एंटीऑक्सीडेंट, एंटीडायरिल और एंटी डाइबिटिक गुण पाये जाते हैं. इस जूस का उपयोग हृदय रोगी, किडनी, लीवर, रक्त कोशिकाओं को बढ़ाने के लिए किया जाता है.
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किन रोगों में कारगर
रुद्रप्रयाग के आयुर्वेदिक अस्पताल में कार्यरत फार्मासिस्ट एसएस राणा बताते हैं कि सफेद बुरांश को स्थानीय भाषा में चिमुल, रातपा कहते हैं, जिसका पारंपरिक औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. वे बताते हैं कि इसकी पत्तियां, फूल और शाखाओं को पीसकर लेप बनाया जाता है, जो जोड़ों के दर्द, गठिया और सिर दर्द को ठीक करने में मदद करता है. सफेद बुरांश की पत्तियों और तने में फिनोलिक एसिड होता है, इससे एचआईवी की दवाएं बनाई जाती हैं. जिसके कारण यह एलोपैथिक की दवाइयों के निर्माण में काफी महत्वपूर्ण माना जाता है.
सफेद बुरांश निचले इलाकों में ही क्यों खिलता है
राणा कहते हैं कि बसंत ऋतु में बुरांश के खिलने के कारण बच्चे इसके फूलों का इस्तेमाल फुलारी (फूलदेई पर्व) के दौरान करते हैं, जिसके कारण यह पारंपरिक औषधि, सांस्कृतिक, धार्मिक और पर्यावरण के लिए भी काफी अच्छा है.
वहीं शिवानंद नौटियाल राजकीय स्नाकोत्तर महाविद्यालय में वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर वीपी भट्ट के मुताबिक, कभी-कभी किन्ही कारणों से सफेद बुरांश का बीज निचले स्थानों पर पहुंच जाता है. अलग एनवायरमेंटल सेटअप के कारण इसके पेड़ की पहली और दूसरी पीढ़ी में मॉर्फोलॉजिकल बदलाव आ जाता है. यही नहीं, 5वीं और 6ठी पीढ़ी में तो आनुवांशिक गुणों के बदलने की भी संभावना रहती है. ऐसे में यह नई प्रजाति या सब प्रजाति बन जाती है.
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