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दिव्यांशु कुमार (प्रबंध निदेशक), द होप रिहैबिलिटेशन एंड लर्निंग सेंटर (द होप फाउंडेशन द्वारा संचालित एवं प्रबंधित)
ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (Autism Spectrum Disorder – ASD) एक न्यूरोडेवलपमेंटल विकार है, जिसमें व्यक्ति को सामाजिक संपर्क, संचार और व्यवहार में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस विकार के लक्षण अलग-अलग बच्चों में अलग तरह से दिख सकते हैं।
शोध बताते हैं कि यदि ऑटिज़्म की शीघ्र पहचान हो और समय पर सही उपचार दिया जाए, तो यह संज्ञानात्मक (Cognitive), संचार (Communication) और सामाजिक (Social) विकास में महत्वपूर्ण सुधार ला सकता है।
शीघ्र पहचान क्यों आवश्यक है? (न्यूरोप्लास्टिसिटी और विकासात्मक चरण)
मस्तिष्क (Brain) की प्लास्टिसिटी (Neuroplasticity) बचपन में अधिक होती है। न्यूरोप्लास्टिसिटी का अर्थ है कि मस्तिष्क नए अनुभवों और सीखने के अनुरूप अपने न्यूरॉनल कनेक्शन्स (Neuronal Connections) को बदल सकता है। जितनी जल्दी सही थेरेपी दी जाएगी, उतना ही मस्तिष्क को नई चीज़ें सीखने और अनुकूलन (Adaptation) करने में मदद मिलेगी। अधिकांश बच्चों में 6 महीने से 2 साल के बीच कुछ विशेष विकासात्मक चरण (Developmental Milestones) पूरे होने लगते हैं। लेकिन ऑटिज़्म से प्रभावित बच्चों में ये माइलस्टोंस देरी से पूरे होते हैं या पूरी तरह विकसित नहीं हो पाते। इनमें शामिल हैं:
- 6 महीने तक मुस्कुराने या आंखों से संपर्क करने में कमी।
- 9 महीने तक अन्य लोगों की आवाज़ या चेहरे की भावनाओं पर प्रतिक्रिया ना देना।
- 12 महीने तक कोई भी शब्द ना बोलना या इंगित (Pointing) ना करना।
- 16 महीने तक साधारण शब्दों का उपयोग ना करना।
- 24 महीने तक 2 शब्दों के वाक्य ना बोल पाना।
संवेदी (Sensory) समस्याएँ और ऑटिज़्म
ऑटिज़्म से प्रभावित कई बच्चों में संवेदी समस्याएँ (Sensory Issues) देखी जाती हैं, जिसके कारण वे रोज़मर्रा की गतिविधियों में कठिनाई महसूस कर सकते हैं। इनमें शामिल हैं:
- तेज़ आवाज़ या हल्की रोशनी से चिढ़ होना।
- किसी विशेष स्पर्श (Touch) से बचने की प्रवृत्ति।
- घूमने, उछलने या किसी विशेष बनावट को छूने की अधिक आवश्यकता।
- स्वाद, गंध या बनावट के प्रति अत्यधिक संवेदनशीलता।
वैज्ञानिक शोध और प्रमाण
- Dawson et al., 2010 के अनुसार, शीघ्र उपचार से संज्ञानात्मक (Cognitive) विकास में 17 अंकों तक की वृद्धि हो सकती है।
- Rogers et al., 2012 के एक अध्ययन में यह पाया गया कि जिन बच्चों को जल्दी स्पीच और ऑक्यूपेशनल थेरेपी मिली, उनमें 40% तक भाषा कौशल (Language Skills) में सुधार हुआ।
- Zwaigenbaum et al., 2015 के शोध में कहा गया कि शीघ्र निदान वाले बच्चों में स्कूल और समाज में अनुकूलन क्षमता बेहतर होती है।
शीघ्र हस्तक्षेप के लाभ
शोध बताते हैं कि शीघ्र उपचार से बच्चों के संज्ञानात्मक (Cognitive) और भाषा कौशल (Language Skills) में सुधार हो सकता है।
- आईक्यू (IQ) स्तर में सुधार (Dawson et al., 2010)।
- भाषा कौशल में 40% तक बढ़ोतरी (Reichow et al., 2012)।
- स्कूल रेडीनेस प्रोग्राम (School Readiness Program) से बेहतर एकेडमिक तैयारी।
- ऑक्यूपेशनल थेरेपी (Occupational Therapy) से बच्चे के संवेदी और मोटर स्किल्स (Motor Skills) में सुधार।
- स्पीच थेरेपी (Speech Therapy) से बेहतर संचार और सामाजिक संपर्क।
- विशेष शिक्षा (Special Education) से अकादमिक और व्यवहारिक विकास।
सफलता की प्रेरणादायक कहानियाँ
आरव की कहानी: आरव 2 साल की उम्र में बोलने में पूरी तरह असमर्थ था। उसे जल्दी ही स्पीच थेरेपी और विशेष शिक्षा (Special Education) मिलनी शुरू हुई। अब 8 साल की उम्र में, वह स्वतंत्र रूप से संवाद कर सकता है और एक नियमित स्कूल में पढ़ाई कर रहा है।
कियारा की कहानी: कियारा को 3 साल की उम्र में संवेदी संवेदनशीलता (Sensory Sensitivity) के कारण भारी दिक्कतें हो रही थीं। ऑक्यूपेशनल थेरेपी शुरू करने के बाद, अब वह स्कूल में बेहतर तालमेल बैठा पा रही है और खेल-कूद में भी भाग ले रही है।
देर से निदान के नुकसान
- संज्ञानात्मक (Cognitive) और भाषा विकास में बाधा।
- स्कूल और समाज में समायोजन में कठिनाई।
- आत्मविश्वास (Confidence) और आत्मनिर्भरता (Independence) में कमी।
- भविष्य में नौकरी और सामाजिक जीवन (Social Life) में संघर्ष।
क्या किया जाना चाहिए?
- 18 महीने के अंदर सभी बच्चों की ऑटिज़्म स्क्रीनिंग (Screening) करानी चाहिए।
- माता-पिता और शिक्षकों को ऑटिज़्म के शुरुआती संकेतों की जानकारी होनी चाहिए।
- डॉक्टर से M-CHAT टेस्ट और अन्य नैदानिक मूल्यांकन (Diagnosis) कराना चाहिए।
- स्पीच थेरेपी (Speech Therapy), ऑक्यूपेशनल थेरेपी (Occupational Therapy) और विशेष शिक्षा (Special Education) जल्द शुरू करनी चाहिए।
- स्कूल रेडीनेस प्रोग्राम (School Readiness Program) में बच्चों को शामिल करना चाहिए।
- सरकार और निजी संस्थानों को अधिक उपचार केंद्र (Therapy Centers) खोलने चाहिए।