दुनियाभर में प्री-बर्थ के मामले बढ़ रहे हैं। इसपर आई कई रिपोर्ट्स के मुताबिक बच्चों का जन्म समय से पहले होने के मामले पिछले कुछ समय से तेजी से बढ़े हैं। ऐसी स्थिति बच्चे की सेहत पर प्रभाव डाल सकती है। इससे उन्हें स्वास्थ्य से जुड़ी कई समस्याएं हो सकती हैं। हाल ही में लांसेट जर्नल में प्रकाशित एक स्टडी के मुताबिक दुनियाभर में प्री-बर्थ यानि समय से पहले जन्म होने के मामले भारत में 20 फीसदी हैं।
क्या कहती है स्टडी?
स्टडी के मुताबिक समय से पहले होने वाले बच्चों के जन्म के मामले में भारत काफी आगे है। दुनियाभर में ऐसे मामलों की पुष्टि भारत में 20 फीसदी से भी ज्यादा होती है। रिपोर्ट्स की मानें तो साल 2020 में भारत में पाकिस्तान, चीन, बांगलादेश, यूएस और नाइजीरिया आदि की तुलना में प्री-बर्थ के मामले 3.3 मिलियन थे। जो दुनियाभर का 20 प्रतिशत होते हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक अगर 37 हफ्ते से कम में भ्रूण का प्रसव हो रहा है तो यह समय से पहले जन्म माना जाता है। ऐसी स्थिति में कई बार नवजात शिशुओं की मृत्यु होने का भी जोखिम रहता है।
कम आय वाले देशों में भी बढ़े मामले
स्टडी के मुताबिक कम आय वाले देशों में भी नवजात के समय से पहले जन्म होने के मामले बढ़े हैं। हालांकि, ग्रीस और यूनाइटेड स्टेट्स जैसे कुछ ज्यादा आय वाले देशों में भी इसके 10 से 11 प्रतिशत मामले बढ़े हैं। एक रिपोर्ट की मानें तो साल 2010 में प्री बर्थ के मामले भारत में 3.49 मिलियन थे, जो साल 2020 में 3.02 मिलियन हो गए हैं यानि पहले के मुकाबले इनमें 0.14 प्रतिशत की गिरावट आई है। साल 2020 में 37 हफ्तों से पहले पैदा होने वाले शिशुओं की संख्या दुनियाभर में 13.4 मिलियन थी।
प्री-बर्थ से होने वाली समस्याएं
- इस विषय पर हमने पुणे स्थित मदरहुड हॉस्पिटल में कंसलटेंट नियोनेटोलॉजिस्ट और बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. जगदीश कथवाटे से बातची की।
- उन्होंने बताया कि प्री-बर्थ यानि जल्दी जन्म होने से शिशुओं को स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं।
- इस स्थिति में कई बार शिशुओं में हार्ट से समस्याएं विकसित हो सकती है।
- ऐसे में उनमें कई बार जान जाने तक का भी जोखिम होता है।
- प्री बर्थ की स्थिति में शिशु को सांस लेने में कठिनाई होने का भी सामना करना पड़ सकता है।